- जेल सुप्रिटेंडेंट को हटाने के लिए जेल में चल रही है बड़ी साजिश, बंदियों समेत बंदीरक्षक भी थे अधीक्षक की सख्ती से परेशान

- शनिवार को हुए बवाल में बंदीरक्षकों और बंदियों के बीच सांठ-गांठ की बात जांच में आई सामने

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शनिवार को जेल के अंदर हुआ उत्पात सिर्फ बंदियों की ओर से प्लैन कर नहीं किया गया था बल्कि बंदियों को इसके लिए उकसाने का काम बंदीरक्षकों ने किया था। ये बात सोमवार को आई नेक्स्ट की पड़ताल में सामने आई है। जेल के कुछ कर्मचारियों ने खुद कबूल किया है कि जेल के अंदर अधीक्षक आशीष तिवारी की सख्ती से बंदियों से ज्यादा बंदीरक्षक परेशान थे क्योंकि अधीक्षक ने बंदीरक्षकों को मिलने वाली ऊपरी कमाई को रोकवा दिया था और पैसे के बल पर चल रहे खेल को दबाने का प्रयास किया जा रहा था। जिसके कारण बंदीरक्षकों ने बंदियों संग मिलकर बवाल की भूमिका बनाई और हंगामा कर जेल सुप्रिटेंडेंट को हटाने में सफल हो गए।

जमे हैं कई सालों से

जेल में बंदियों संग बंदीरक्षकों का दोस्ताना कोई नई बात नहीं है। पहले भी जेल में बंदीरक्षकों और बंदियों के के गठजोड़ ने हंगामा कराया है। 2012 में सेंट्रल जेल में सीनियर जेल सुप्रिटेंडेंट कैप्टन एसके पाण्डेय को हटाने के लिए ऐसा ही बवाल हुआ था। जांच में बंदीरक्षकों की भी भूमिका सामने आई थी। ठीक उसी तरह इस मामले में भी जिला जेल में पिछले सात सालों से ज्यादा वक्त से डटे कुछ बंदीरक्षकों की भूमिका संदिग्ध मिली है। इस बारे में डीआईजी जेल संतोष श्रीवास्तव का कहना है कि अभी कुछ कहना जल्दीबाजी होगी लेकिन हर पहलू की जांच गहनता से की जा रही है।

मंत्री ने कबूली गठजोड़ की बात

भले ही डीआईजी जेल बंदीरक्षकों और बंदियों के गठजोड़ के कारण इस हंगामे की बात न कबूल रहे हो लेकिन शासन की ओर से जांच के लिए आये कारागार मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया ने कबूला है कि जेल में बंदीरक्षकों का वर्चस्व चल रहा है और लंबे वक्त से एक ही जेल में डटे बंदीरक्षक अधिकारियों की सख्ती से तंग आकर बंदियों संग मिलकर काम कर रहे हैं। कारागार मंत्री का कहना था कि ऐसे बंदीरक्षकों की सूची तैयार हो रही है और जल्द इनको हटाया जाएगा।

सिपाही होते हैं बंदीरक्षक

- जेल मैनुअल के हिसाब से सिपाहियों को बंदीरक्षक कहा जाता है

- बंदीरक्षकों का काम बंदियों की रक्षा करना और उनकी समस्याओं को सुनना है

- हर जेल में बंदीरक्षक बैरकों से लेकर जेल की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होते हैं

- इनको वेपेंस भी दिए जाते हैं

स्वीकृत पदों से कम है संख्या

- जिला कारागार में 1800 से ज्यादा बंदी हैं

- जबकि इसकी क्षमता 750 है

- इन बंदियों की देखरेख के लिए बंदीरक्षकों के लगभग 145 पद स्वीकृत हैं

- लेकिन स्वीकृत पदों से कम संख्या में बंदीरक्षक यहां तैनात हैं

- प्रेजेंट में 120 बंदीरक्षक जेल की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभा रहे हैं

निर्धारित है पोस्टिंग का वक्त

- बंदीरक्षक एक जेल में आठ साल तक तैनात रह सकते हैं

- लेकिन बनारस की जिला जेल में कई बंदीरक्षक ऐसे हैं जो इससे भी ज्यादा वक्त से यहां पर हैं

- इनको हटाने के लिए शासन स्तर पर भी प्रयास हुए हैं लेकिन सोर्स के बल पर ये बने हुए हैं

- ऐसे बंदीरक्षक ही बंदियों संग मिलकर बगावत कराने का काम कर रहे हैं

करते हैं बंदियों की मदद

- बंदीरक्षकों के बल पर जेल में बंद कई क्रिमिनल्स जेल से अपना नेक्सस चला रहे हैं

- प्रतिबंधित चीजों को पैसों के दम पर बंदीरक्षक बंदियों तक पहुंचाते हैं

- इसके अलावा जेल में बड़े अपराधी बंदीरक्षकों के जरिए अपने गुर्गो तक अपने मैसेज कनवे कराते हैं