वाराणसी (ब्यूरो)90 के दशक में बनारस जिले में करीब डेढ़ लाख करघों पर बनारस की ट्रेडिशनल साडिय़ां तैयार होती थींवह इस समय सिमट कर करीब 8 हजार के पास पहुंच गई हैंअब इन करघों पर सिर्फ प्रीमियम क्वालिटी की बनारसी साड़ी ही तैयार हो रही हैंवजह करघों की जगह अब पावरलूम मशीनों का हावी होना बताया जा रहा हैइन मशीनों पर क्वालिटी नहीं बल्कि क्वांटिटी वाली साडिय़ां व कपड़े तैयार हो रहे हैंहथकरघा से जुड़े बुनकर भी अब पावरलूम से साडिय़ों का प्रोडक्शन कर रहे है.

35 हजार साडिय़ां

इस सेक्टर से जुड़े बुनकरों का कहना है कि तीन दशक पहले बनारस में करीब डेढ़ लाख करघा चलते थेइन करघों पर प्रतिदिन करीब 30 से 35 हजार बनारसी साड़ी तैयार होती थीइन साडिय़ों को लेने मऊ, आजमगढ़ समेत कई जिलों से लोग आते थेयहीं नहीं विदेशों में भी साडिय़ां भेजी जाती थींसमय के साथ खरीदार भी बदल गए और कारोबार में भी काफी चेंज आया.

बढ़ गए पावरलूम

बनारसी साड़ी के बिजनेस में इतना अधिक कॉम्प्टीशन बढ़ गया कि लोग क्वालिटी को छोड़ सस्ती साडिय़ां पावरलूम पर तैयार करने लगेवाराणसी जिले में धीरे-धीरे पावरलूम की संख्या बढ़ती गईआज हथकरघा की जगह पावरलूम ने ली हैहथकरघा के जितने बुनकर थे, उनमें से कुछ पावरलूम से जुड़ गए कई दूसरे पेशे में चले गए

3 लाख से हुए डेढ़ लाख

रेशम का दाम लगातार बढऩे लगा, साड़ी में इस्तेमाल होने वाली जरी का रेट भागने लगाइस बीच मार्केट में पालिस्टर की इंट्री हुईपालिस्टर सस्ता होने की वजह से लोग इसी से पावरलूम पर साडिय़ां तैयार करने लगेबनारस की पहचान बनारसी साड़ी की पूछ धीरे-धीरे कम होने लगीपालिस्टर की साडिय़ां सस्ती होने की वजह से वाराणसी जिले के आसपास अन्य राज्यों में भी डिमांड बढऩे लगीइसके चलते हथकरघे का कारोबार सिमट गया

एक करघे पर दो बुनकर

एक करघे पर दो बुनकर मिलकर काम करते थेतब जाकर साडिय़ां तैयार होती थींएक मास्टर विवर तो दूसरा बुनकर बूटी को काढ़ता थाजब से पावरलूम आया बुनकरों की संख्या घटती गयीपहले 3 लाख बुनकर करघे से जुड़े थे जो अब घटकर दो लाख के आसपास पहुंच गए हैं.

खत्म हुई कठुआ तकनीक

बुनकरों का कहना है कि पावरलूम के आगे बनारस की ट्रेडिशनल साड़ी की मांग खत्म हो गयी हैबुनकरों का कहना है कि हथकरघा पर साड़ी को तैयार करने की तीन तकनीक थीइनमें से एक तकनीक कठुआ तो खत्म हो गई, वहीं इसके बाद आई जाला और जकाट तकनीक वर्तमान में चल रही हैपावरलूम की साडिय़ों की बुनाई में प्लास्टिक जरी का प्रयोग होता है जबकि हैंडलूम में टेस्टेड जरी का उपयोग होता है.

दूर हो गए कारीगर

पावरलूम से साड़ी व ड्रेस मैटेरियल्स तो बल्क में तैयार हुए लेकिन बुनकरों को उनके अनुसार वेटेज न मिलने की वजह से इस सेक्टर को छोड़कर दूर होते गएक्योंकि रॉ मैटेरियल्स के दाम बढ़े, लेकिन साडिय़ां व ड्रेस मैटेरियल्स और कारीगरों के वेटेज में बढ़ोतरी नहीं हुईबिजली, पानी टैक्स की मार से लाखों कारीगर इस फिल्ड को छोड़कर पलायन कर चुके हैं

मार्केट में साड़ी की मांग कम हो गईहैंडलूम की तो एकदम नहीं आ रही हैपावरलूम की भी नहीं के बराबर हो गई है.

हाजी एखलाख अंसारी, बुनकर

रेशम, कतान के दाम बढृ गए हैंलगातार दाम बढ़ रहे हैंइससे लोगों ने दूरी बना ली हैमार्केट में खरीदार नहीं हैं.

महफूज आलम मुन्ना, बुनकर

हाथ का हूनर पूरी तरह से खत्म होने की कगार पर पहुंच गया हैहूनरमंद कारीगर अब दूर हो चुके हैंइसे बचाने की जरूरत है

जुनैद अंसारी, पूर्व अध्यक्ष, पूर्वांचल निर्यातक संघ

हैंडलूम की डिमांड धीरे-धीरे बढ़ रही हैहैंडलम वस्त्रों की मांग बनी रहे इसके लिए प्रयास किया जा रहा है.

अरुण कुरील, अपर आयुक्त, हथकरघा