वाराणसी (ब्यूरो)अनादिकाल से चली आ रही रंगभरी एकादशी की परंपरा में बाबा संग रंग-अबीर गुलाल खेलने के लिए काशी ही नहीं पूरे देश के लोग इंतजार करते हैंइसी के साथ काशी में होली पर्व की शुरूआत होती हैकाशी की होली की अपनी परंपरा हैयहां काशी विश्वनाथ धाम में रंगभरी से शुरू होने वाली होली की परंपरा में मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर होने वाली चिता भस्म होली चार चांद लगाती हैइन परंपराओं में शामिल होने और देखने के लिए देश-विदेश से लोग काशी पहुंचते हैंइस बार भी इन त्योहारों को लेकर शहर के गेस्ट हाउस, होटल और लॉज बुक हो चुके हैंकई पर तो नो रूम के बोर्ड भी टंग गए हैं.

20 को रंगभरी एकादशी

इस बार 20 मार्च को रंगभरी एकादशी मनायी जाएगीइसके लिए अभी से टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास और बाबा विश्वनाथ के दरबार में तैयारियां जोरों पर चल रही हैंबाबा के वस्त्र से लेकर चांदी के सिंहासन को सजाने-संवारने का कार्य शुरू हो गया हैवहीं विश्वनाथ मंदिर में भी बाबा के विवाहोत्सव की तैयारी में लोग जुट गए हैं.

360 वर्ष से जीवंत है परंपरा

महंत पंकुलपति तिवारी ने बताया कि पिछले 360 वर्ष से स्वमहंत महाबीर प्रसाद त्रिपाठी की परंपरा को हम लोग आगे बढ़ा रहे हंैबाबा विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोंद्धार होने के बाद बाबा की परंपराएं भी शुरू हुईंआज 10वी पीढ़ी के लोग इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हंैरंगभरी एकादशी पर कई टन अबीर-रंग गुलाल से लोग होली खेलते हैं.

खादी को शामिल किया गया

आजादी की लड़ाई के समय परिधान में खादी को शामिल किया गयाउस समय पंजवाहर लाल नेहरू की माता स्वरूप रानी खादी का वस्त्र लेकर आई थीवर्तमान में दसवीं पीढी में डॉकुलपति तिवारी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे है

21 को चिता भस्म होली

रगंभरी एकादशी के दूसरे दिन महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है चीता भस्म की होलीइस दिन यूथ ही नहीं पूरी काशी बाबा श्मशाननाथ के साथ चिता भस्म की होली खेलने के लिए मणिकर्णिका घाट पर उमड़ पड़ती हैअबीर गुलाल के अलावा जलती चिता से भस्म की होली खेलते है

शिवगणों का हुड़दंग

मणिकर्णिका घाट पर जहां दु:ख व अपनों से बिछडऩे का संताप देखा जाता है, वहां उस दिन शहनाई की मंगल ध्वनि बजती हैहर शिवगण अपने लिए उपयुक्त स्थान खोज कर इस दिव्य व अलौकिक दृश्य को अपनी अन्तंरआत्मा में उतार कर शिवोहम् होने को अधिर हो जाता है

बाबा दोपहर में आते हैं

आयोजक गुलशन कपूर का कहना है कि कहा जाता हैं कि बाबा दोपहर में मध्याह्न स्नान करने मणिकर्णिका तीर्थ पर आते हैंइसके पश्चात सभी तीर्थ स्नान करके यहां से पुण्य लेकर अपने स्थान जाते हैं और वहां स्नान करने वालों को वह पुण्य बांटते हैंअंत में बाबा स्नान के बाद अपने प्रिय गणों के साथ मणिकर्णिका महामशान पर आकर चीता भस्म से होली खेलते हैं.

अनादिकाल की परंपरा

गुलशन कपूर का कहना है कि अनादि काल से जिता भस्म की होली खेली जाती हैइस परम्परा को पुनर्जीवित किया बाबा महाश्मसान नाथ मंदिर के व्यवस्थापक गुलशन कपूर ने जो पिछले 22 वर्षों से इस परम्परा को भव्य रूप देकर दुनिया के कोने कोने तक जन सहयोग से पहुंचाया हैगुलशन कपूर का कहना है कि काशी में यह मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन बाद बाबा विश्वनाथ माता पार्वती का गौना (विदाई) करा कर अपने धाम काशी लाते हैं, जिसे उत्सव के रूप में काशीवाशी मनाते हैंइस दिन से रंगों का त्योहार होली का प्रारम्भ माना जाता है.

गणों के साथ मौज मस्ती

इस उत्सव में देवी, देवता, यछ, गन्धर्व, मनुष्य शामिल होते हैं, लेकिन बाबा के प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच, किन्नर, दृश्य, अदृश्य, शक्तियां इसमें शामिल नहीं हो पाते हैंकहा जाता है कि उन्हें बाबा ने स्वयं मनुष्यों के बीच जाने से रोक रखा हैयही वजह है कि बाबा रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन चिता भस्म खेलने मशान जाते हैं और अपने गणों के साथ मौज मस्ती में शामिल होते हैं.

होटल, लॉज हुए फुल

रंगभरी एकादशी और चिताभस्म की होली में शामिल होने के लिए शहर के होटल लॉज फुल हो चुके हैंहोटल संचालकों का कहना है कि होली पर लोग अपने घर वापस आते हैं, इसकी भीड़ तो समझ में आती है, लेकिन इस बार साउथ, महाराष्ट्र समेत कई शहरों के लोग रंगभरी एकादशी में शामिल होने के लिए आ रहे हैं

रंगों के त्योहार पर इस बार काफी भीड़ आ रही हैइसके लिए घाट किनारे से लेकर शहर के होटल लॉज फुल हो चुके हैं.

राहुल मेहता, अध्यक्ष टीडब्ल्यूए

360 साल से रंगभरी एकादशी की परंपरा निभायी जा रही हैदस पीढ़ी से लोग इसमें जुड़े हुए हैं.

पंकुलपति तिवारी, महंत

चिता भस्म की होली में यूथ ज्यादा शामिल होते हैंइस होली को देखने के लिए देश-दुनिया से लोग आते हैं.

गुलशन कपूर, व्यवस्थापक, बाबा महाश्मसान नाथ मंदिर