-रामपुर तिहरा हत्याकांड में सबसे पहले तड़तड़ाई थी एके-47

-मडि़याहूं के ब्लॉक प्रमुख, भाजपा नेता और एक बच्ची की हुई थी हत्या

-विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बाद चार साल गायब रहा मुन्ना

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पूर्वाचल के जरायम जगत में पिछले कई दशकों से बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी के बाद मुन्ना बजरंगी सबसे बड़ा नाम माना जाता था। मगर पुलिस फाइलों की मानें तो पूर्वाचल में सबसे पहले बजरंगी ने ही एके-47 राइफल का इस्तेमाल किया था। 1984 में रामपुर में तिहरे हत्याकांड में यह राइफल तड़तड़ाई थी। पिछले कुछ दशकों में पूर्वाचल की सबसे चर्चित राजनीतिक हत्या कृष्णानंद राय हत्याकांड में भी बजरंगी शामिल रहा था।

पहला मामला मारपीट का

गैंग में रंगरूट से लेकर सरगना तक का सफर तय करने वाले बजरंगी के खिलाफ 1982 में सुरेरी (जौनपुर) में मारपीट का पहला मामला दर्ज हुआ था। कुछ ही महीनों बाद उसने लूट की नीयत से एक व्यापारी की हत्या कर दी थी। इसके बाद उसने धीरे-धीरे पांव जमाने शुरू कर दिए। उसने जौनपुर जिला जेल के बाहर बख्शा के ब्लॉक प्रमुख रामचंद्र सिंह की हत्या की और उनके गनर की कारबाइन लूट ली थी।

आका के कहने पर की थी हत्या

1984 में रामपुर तिहरा हत्याकांड में बजरंगी ने पूर्वाचल में पहली बार एके-47 चलाई। फायरिंग में मडि़याहूं के ब्लॉक प्रमुख कैलाश दुबे, भाजपा नेता राजकुमार सिंह के अलावा रास्ते से गुजर रही एक बच्ची भी मारी गई थी। यह हत्या उसने अपने आका गजराज सिंह के कहने पर की थी। जो नहीं चाहते थे कि कैलाश दुबे भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ें।

बसनियां में गरजीं थीं 8 एके-47

बृजेश के करीबी विधायक कृष्णानंद राय एक समय मुख्तार गिरोह के लिए चुनौती बनते जा रहे थे। गाजीपुर के भांवरकोल थाने के बसनिया चट्टी में हुई यह हत्या पूर्वाचल की सबसे चर्चित हत्याओं में एक है। वारदात के लिए पूरब और पश्चिम के शार्प शूटर बुलाए गए थे। इनमें मुन्ना बजरंगी, संजीव जीवा, अताउर्रहमान बाबू, शहाबुद्दीन, रुपेश मोनू, अनुराग सिंह आदि थे। विधायक की क्वालिस को घेरकर बदमाशों ने 8 एके-47 राइफलों से कम से कम 400 राउंड फायर किए थे। सिर्फ विधायक के शरीर में 60 से 80 गोलियां लगी थीं।

टेंपो चालक बन मुंबई में छिपा था

वारदात के बाद गुर्गो के साथ बजरंगी मुंबई भाग निकला। पुलिस ने मुंबई में ही रुपेश और अनुराग को एनकाउंटर में मार गिराया। इसके बाद बजरंगी ने एक चाल में शरण ली और अगले चार साल तक टेंपो चालक बनकर छिपा रहा। दबाव बढ़ने के बाद दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने बेहद नाटकीय ढंग से उसकी गिरफ्तारी की थी। इसी सेल ने उड़ीसा से बृजेश सिंह को भी गिरफ्तार किया था।

पुलिस फाइल्स में रंगरूट से सरगना बनने तक का सफर

- 1982 में सुरेरी जौनपुर में मारपीट और बलवा का पहला मुकदमा

- 1984 में रामपुर में ब्लॉक प्रमुख समेत तीन लोगों की हत्या

- 6 जून-1995 को कैंट के खजुरी में राजेंद्र व कृष्ण कुमार सिंह की हत्या

- 6 अप्रैल-1997 को नरिया में विद्यापीठ के छात्रसंघ अध्यक्ष रामप्रकाश पांडेय, पूर्व अध्यक्ष सुनील राय समेत चार लोगों की हत्या

- 30 मार्च-2002 को दशाश्वमेध में साहू होटल के मालिक सुरेश साहू की हत्या

- 23 मई-2002 को लहुराबीर में लक्ष्मण सेठ की हत्या, इस घटना में बरी हो गया

- 17 दिसंबर-2002 को मलदहिया में छात्रनेता अनिल राय समेत पांच लोगों की हत्या

- 29 नवंबर-2005 को गाजीपुर के भांवरकोल में विधायक कृष्णानंद राय समेत छह की हत्या

- 25 जनवरी-2012 को नदेसर स्थित बर्गर किंग के मालिक से मांगी रंगदारी