-सुरगंगा में कलाकारों की प्रस्तुति से श्रोता रहे मुग्ध

-भैंसासुर घाट पर सुर गंगा की दशवीं शाम रही भारतरत्न पं। रविशंकर को समर्पित

VARANASI

भैंसासुर घाट पर सुरगंगा महोत्सव की दसवीं शाम भारतरत्‍‌न पं। रविशंकर को समर्पित रही। 'सप्तक' नामक इस निशा में गायन, वादन और नृत्य की त्रिवेणी बही तो श्रोताओं का मन मयूर होकर नाच उठा। प्रो। ऋत्विक सान्याल ने गायकी से गंगा तट पर स्वराजंली अर्पित की। विकास महाराज के सरोद की धुन ने सबके मन को झंकृत कर दिया। कृष्ण रास ने ब्रज भूमि के रास की छवि उकेरी तो डॉ। कमला शंकर ने गिटार की मोहक धुन प्रस्तुत कर निशा का समापन किया।

शिवमय हुआ समारोह

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय संगीत विभाग के प्रो। ऋत्विक सान्याल ने

पं। रविशंकर को स्वराजंली दी। उनकी गायकी ने माहौल को शिवमय स्वरूप प्रदान किया। उन्होंने सबसे पहले राग जोग में संक्षिप्तअलाप के बाद शिवस्तुति 'योगीवर जय शिव' से गायकी की शुरूआत की। उसके बाद

डागर परम्परा में राग अणाना में निबद्ध पारम्परिक ध्रुपद 'शिव -

शिव -शिव शंकर आदिदेव' पेश किया। उसके बाद प्रख्यात सरोद वादक पं। विकास महाराज ने मंच संभाला। सबसे पहले राग पूरिया धनाश्री, तीन ताल मध्य लय और द्रुत में निबद्ध धुन बजाई। अगली प्रस्तुति शास्त्रीय गायिका सुचरिता गुप्ता की रही। उन्होंने राग बागेश्वरी, तीन ताल में निबद्ध बंदिश 'ऐ री रे मै कैसे

घर जाउ' के बाद ठुमरी राग मिश्रपीलू में 'भवरा रे हम परदेशी लोग' पेश

किया। अगली प्रस्तुति पं। रविशंकर की शिष्या प्रो। कृष्णा चक्रवर्ती के सितार वादन की रही। उनके साथ तबले पर पं। कुबेरनाथ मिश्र ने संगत की। समारोह की अंतिम प्रस्तुति डॉ। कमला शंकर के गिटार वादन की रही। उन्होंने राग जोग तीन ताल, विलम्बित मध्य लय में निबद्ध धुन सुनाई। उसके बाद ठुमरी 'नदिया किनारे मोरागांव सावरें अई जाइयो' पेश किया। उनके साथ भी पं। कुबेरनाथ मिश्र ने संगत की। कार्यक्रम के चीफ गेस्ट बीएचयू के वीसी प्रो। गिरीश चन्द्र त्रिपाठी रहे। विशिष्ट अतिथि एयर कमाण्डर घैर सिंह रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता हथियाराम मठ के महन्त भवानी यति जी महाराज ने की। अतिथियों का स्वागत मेयर रामगोपाल मोहले ने किया।