वाराणसी (ब्यूरो)आपका बच्चा अपने में गुमसुम तो नहीं रहता हैयदि ऐसा है तो ऑटिज्म के लक्षण हो सकते हैं, क्योंकि ऑटिज्म पिछले कुछ दशकों से एक गंभीर समस्या बनी हुई हैआमतौर पर लोग ऑटिज्म के शिकार बच्चों को मंदबुद्धि कहते हैंएक अध्ययन के मुताबिक, भारत में हर 66 बच्चों में से एक ऑटिज्म से पीडि़त हैवहीं, पिछले एक दशक में भारत में ऑटिज्म से पीडि़तों की संख्या तेजी से बढ़ी हैवहीं, बात करें वाराणसी की तो यहां भी ऑॅटिज्म बच्चों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है.

शहर के मंडलीय अस्पतालों के बाल रोग विभाग के ओपीडी में आने वाले लगभग 80 बच्चों में औसतन तीन बच्चे ऐसे आते हैं, जिनमें ऑटिज्म के लक्षण पाए जाते हैंहालांकि स्वास्थ्य विभाग के पास इसका कोई आंकड़ा नहीं है कि वाराणसी में ऑटिज्म बच्चों की संख्या कितनी है, लेकिन एक संस्था के सर्वे के मुताबिक वाराणसी में ऑटिज्म बच्चों की संख्या हजार से भी ऊपर बताया गया हैगौरतलब है कि शहर में ऐसा कोई सेंटर नहीं है, जहां बच्चों का समुचित इलाज हो सकेहालांकि मानसिक रोग विशेषज्ञों से ऐसे बच्चों का इलाज तो कराया जाता है, लेकिन कई लोग ऐसे हैं जो आर्थिक कमजोरी के चलते बच्चों का इलाज समुचित तरीके से नहीं करा पाते हैंशहर के कुछ ऐसे बच्चे ऑटिज्म के शिकार है, शहर में बेहतर व्यवस्था नहीं मिलने के कारण वो अपने बच्चों का इलाज बाहर करा रहे हैं

केस 1

पुण्य के इलाज में 15 लाख हो चुके हैं खर्च

शिवपुर में रहने वाली पूजा सिंह ने बताया कि उनका बेटा पुण्यव्रत सिंह अब 13 साल का हैपूजा बताती हैं कि उन्हेें 3 सालों के बाद पता चला कि उनका बेटा पुण्य आटिज्म का शिकार हैइसके बाद पुण्य का इलाज मुंबई और दिल्ली जैसी जगहों पर कराया गयावहीं पूजा का कहना है कि अब तक पुण्य के इलाज में लगभग 15 लाख रुपए तक खर्च हो चुका हैहालाकि पूजा बताती हैं कि पुण्य अब पहले से बहुत बेहतर है और उसका आईक्यू लेवल बहुत ही तेज हैखासतौर पर वो गेम बहुत ही तेज खेलता है.

केस 2

आयु में पहले से अब काफी सुधार

पांडेयपुर में रहने वाली कोमल सिंह ने बताया कि उनका बेटा आयु 7 साल का हैआयु के बारे में शुरू में तो कछ पता नहीं चला, लेकिन जब वो तीन साल का हुआ तो उसका आटिज्म का इलाज कराया गयाकोमल सिंह ने बताया कि उनके लिए आयु एक चैलेंज की तरह था, लेकिन लगातार इलाज के बाद आयु की स्थिति में पहले से काफी सुधार हुआ हैकोमल बताती हैं कि उनके बेटे का आईक्यू लेवल बहुत ही तेज हैकोमल का मानना है कि अगर समय रहते ऑटिज्म वाले बच्चों का इलाज हो तो वो पुरी तरह से ठीक हो सकते हैं.

केस 3

वाराणसी में नहीं है सुविधा

दशाश्वमेध में रहने वाली खुशबू गुप्ता ने बताया कि उनका बेटा शिवाय अभी साढ़े 3 साल का हैवर्तमान में उसका ऑटिज्म को लेकर इलाज चल रहा हैखुशबू बताती हैं कि जब उनका बेट डेढ़ साल का था उसका आई कांटैक्ट बिल्कुल ही नहीं थावो कंप्लीट पैरों पर भी नहीं चलता थातब इसके बाद वाराणसी में ही डॉक्टर से दिखाया तो मुझे पता चला कि शिवाय आटिज्म का शिकार हैअभी उसका लगातार थैरेपी कराया जा रहा है और आने वाले दिनों में इसका बाहर ही इलाज संभव है क्योंकि वाराणसी में सुविधाएं नहीं हैं.

क्या है ऑटिज्म

कबरीचौरा मंडलीय अस्पताल के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉरविंद्र कुशवाहा ने बताया कि ऑटिज्म एक मानसिक रोग हैइस रोग के शिकार ज्यादातर बच्चे होते हैंइस बीमारी में बच्चे का मानसिक विकास पूरी तरह नहीं हो पाता और इसके लक्षण बचपन से ही दिखने लगते हैंऐसे बच्चों का विकास सामान्य बच्चों की तुलना में अलग होता हैसाथ ही ऐसे बच्चे का सामाजिक व्यवहार प्रभावित होता हैवे अपनी ही धुन में लगे रहते हैं और किसी बात पर प्रतिक्रिया देने में ज्यादा समय लगाते हैंऑटिज्म से ग्रस्त कुछ बच्चों में एक डर सा दिखाई देता हैआटिज्म से ग्रस्त बच्चे का मानसिक संतुलन संकुचित हो जाता हैहालाकि वाराणसी में अभी ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है कि ऑटिज्म के शिकार कितने बच्चे हैं.