डॉली बताती हैं कि शुरुआत इतना आसान नहीं था। कुछ करने के लिए आपको बहुत से पॉजिटिव और निगेटिव थॉट्स से गुजरना होता है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप किस चीज को खुद पर हावी होने देते हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। यह तो तय था कि कुछ करना है। लेकिन क्या करना है, सक्सेस मिलेगी कि नहीं जैसे तमाम सवाल मुझे बहुत परेशान करते थे। एक दिन मेरी बेटी के मुंह से एक ऐसी बात निकली जिसने मेरे सारे निगेटिव थॉट्स को दरकिनार कर दिया। उस बात का हिन्दी तर्जुमा है  कि आप बिना पासा फेंके 'सिक्सÓ की उम्मीद नहीं लगा सकते। यानि सक्सेस के लिए आपको एफर्ट करना ही होगा। बस उसी समय मैंने तय किया अब बहुत सोचना नहीं है। अब कुछ करना है और मैंने कोचिंग शुरू की। जिसका नतीजा आज आप देख ही रहे हैं।

ऑनेस्ट एफर्ट बहुत जरूरी है

जरूरी नहीं है कि हर एफर्ट आपको सक्सेस दिला ही दे लेकिन इतना तो तय है कि यह आपको सक्सेस के करीब ले जाती है। 1998 में मैंने छह बच्चों को लेकर एक कोचिंग की शुरुआत की। जिसे बाद में यूनिक एकेडमी का रूप दिया। आज यूनिक एकेडमी के चार ब्रांचेज में तकरीबन 2200 स्टूडेंट्स पढ़ते हैं। प्री क्लास से लेकर एड्थ क्लास तक का एजुकेशन हम देते हैं। मैं यह अपनी तारीफ नहीं कर रही लेकिन यह सच है कि इस शहर का पहला किंडर गारटेन यूनिक एकेडमी ही है। हमारी एकेडमी सिर्फ नाम से यूनिक नहीं है बल्कि अपने काम से इसे प्रूव भी किया है।

जब लेते हैं तो देना भी बनता है

मैंने युनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। फिर मैंने वहीं के रामजस कॉलेज से एमबीए भी किया। मेरे फादर आर्मी में डॉक्टर थे। एजुकेशन और डिसिप्लिन के प्रति लगाव मुझे वहीं से मिला है। शादी होने के बाद मैं बनारस आयी। मेरी शादी बनारस के एक रेप्यूटेड फैमिली में हुई। सोसाइटी में हमारी एक अलग पहचान है। इज्जत, शोहरत, दौलत सब कुछ था हमारे पास। यह सब इसी सोसाइटी की देन थी। लेकिन जब आप किसी से ले रहे होते हैं तो उसे देना भी बनता है। बस मैंने एजुकेशन को इसका जरिया बनाया। जिसमें मुझे मेरे हसबैंड और दोनों बेटियों और खासकर सोसाइटी का भरपूर सहयोग मिला। सोसाइटी के लिए कुछ अलग करने का जज्बा था इसलिए क्लब से भी जुड़ी। 1978 में वाराणसी में लायनेस क्लब की स्थापना की। उसके बाद लायंस क्लब की प्रेसिडेंट भी हुई।

कुछ बातें पैरेंट्स से

मैं आपके जरिये आज के पैरेंट्स से कुछ कहना चाहूंगी। पहली बात कि स्कूल दो कमरों और कुछ किताबों से नहीं बनता। इसके लिए एक माहौल बहुत जरूरी है। इसलिए बच्चों के स्कूल सेलेक्ट करते समय खासी सावधानी बरतें। दूसरी बात कि बच्चों को स्कूल भेज कर ही उनकी जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती। मैं तो कहती हूं कि तब आपकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। स्कूल वाले तो अपनी तरफ से बेहतर करते ही हैं आपको भी उनका सहयोग करना होगा। तभी आपका बच्चा एक जिम्मेदार और योग्य नागरिक बन सकेगा।