वाराणसी (ब्यूरो)संत रविदास का जन्म लहरतारा के मांडूर नगर में हुआ था, लेकिन उनकी उपस्थिति हर तरफ दिखती हैमांडूर गांव, सीरगोवर्धन के अलावा राजघाट पर संत रविदास का भव्य मंदिर हैकहां जाता है कि राजघाट पर गंगा की धारा में संत रविदास की धर्म की परीक्षा हुई थीवर्ण विशेष लोगों के विरोध के बावजूद उन्होंने ईश्वर की साधना नहीं छोड़ीइसके लिए उन्हें परीक्षा से भी गुजरना पड़ा थासंत रविदास मानवता, समता व समरसता के पोषक थेइसी भावना को लेकर पूर्व डिप्टी पीएम बाबू जगजीवन राम ने मंदिर का निर्माण कराया था

जगजीवन राम ने रखी थी नींव

दी रविदास स्मारक सोसायटी के महासचिव सतीश कुमार उर्फ फगुनी राम ने बताया कि संत रविदास की धर्म की परीक्षा राजघाट पर ही गंगा में हुई थीयही वजह है कि बाबू जगजीवन राम ने यही पर उनका मंदिर बनवाने का निर्णय लियामंदिर का शिलान्यास 12 अप्रैल 1979 में हुआ और 1986 में बनकर तैयार हो गया, जो अध्यात्म की नगरी काशी गंगा जमुनी तहजीब की जीती जागती मिसाल है

काशी नरेश से मांगी थी जमीन

फगुनी राम के अनुसार बाबू जगजीवन राम को पता चला था कि राजघाट के जिस स्थान पर संत रविदास साधना करते थे, वह जमीन काशी नरेश की हैइसलिए जगजीवन राम ने खुद काशी नरेश डाविभूति नारायण सिंह से मिलकर मंदिर के लिए जमीन मांगीकाशी नरेश ने दान में जमीन दी, लेकिन भविष्य में कोई विवाद न हो, इसलिए जगजीवन राम ने रजिस्ट्री करने की बात कीउन्होंने जमीन की रजिस्ट्री भी कर दी

गंगा में नहीं डूबी पत्थर मूर्ति

शहर का हर मंदिर अपने आप में अनूठा और सभी की अपनी अलग-अलग कहानी हैराजघाट पर स्थित संत रविदास के मंदिर की कहानी हैफगुनी राम के अनुसार राजघाट पर संत रविदास ईश्वर की साधना करते थे, जिसका वर्ण जाति के लोगों ने विरोध किया, लेकिन वह अड़े रहेइसके बाद यह मामला राजा नागर के दरबार में गयासुनवाई के दौरान रविदास ने कहा कि ईश्वर का नाम लेने से मुझे कोई रोक नहीं सकता हैईश्वर का सच्चा साधक होने के लिए परीक्षा देने की नौबत आ गयीराजघाट पर गंगा की धारा में संत रविदास ने पत्थर की मूर्ति डाली, लेकिन वह डूबी नहींयह देखकर विरोधी भाग गए

सर्वधर्म समभाव का इकलौता मंदिर

संत रविदास सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थेइसका अंदाजा उनकी स्मृति में राजघाट में बनाए गए मंदिर को देखकर सहज ही लगाया जा सकता हैयह मंदिर संत रविदास के संदेशों के अनुकूल बनाया गया हैराजघाट स्थित संत रविदास का मंदिर सर्वधर्म समभाव का इकलौता ऐसा प्रतीक है जहां पर हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और बौद्ध धर्म के दर्शन होते हैंसभी धर्मों के प्रतीक चिन्ह को मंदिर के गुंबद पर स्थान दिया गया है

14 से शुरू होगा कार्यक्रम

संत रविदास की जयंती बनाने के लिए पंजाब, हरियाणा, राजस्थान समेत कई प्रदेशों से बड़ी संख्या में लोग वाराणसी आते हैं, जो राजघाट स्थित संत रविदास मंदिर में आकर मत्था टेकते हैंइसके अलावा पूर्व लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार आएंगीजयंती को लेकर मंदिर में 14, 15 16 17 फरवरी को कार्यक्रम होंगे। 14, 15 16 फरवरी को दोपहर 12 बजे से प्रसाद वितरण, 16 को दोपहर 2.30 से रात्रि 8 बजे तक भजन कीर्तन होगामुख्य कार्यक्रम 16 फरवरी को होगा