वाराणसी (ब्यूरो)बनारस के कुटीर उद्योग में शामिल पंखे की जाली बनाने के कारखानों के बुरे दिन शुरू हो गए हैंसरिया की आकाश छूती कीमतें और बढ़ते एसी-कूलर के प्रचलन ने इस धंधे को बर्बादी की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया हैइससे पंखे की जाली बनाने वाले सैकड़ों कारखानों पर ताला लग गया हैकारखानों के बंद होने से हजारों की तादात में जाली बनाने वाले हुनरमंद हाथ बेरोजगार हो गए हैंअब ये पेट पालने के लिए ई-रिक्शा, ईंट-पत्थर की ढुलाई और मजदूरी कर रहे हैं

चला रहे ई रिक्शा

सुजाबाद के नत्थूलाल कहते हैं कि जब से होश संभाला तब से पंखे की जाली बना रहा हूंवह धंधा भी अब बंद हो गया हैपंखे की जाली बनाने का काम कोरोना की लहर में भी जारी रहाअचानक इस साल जाने क्या हुआ कि धड़ाधड़ कई कारखाने बंद हो गएइससे मैं और गांव के हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैंजाली और पावरलूम के कारखाने बंद होने से कोई टोटो (-रिक्शा) चला रहा है तो कइयों ने परिवार के भरण पोषण के लिए ईंट-पत्थर या मजदूरी की राह पकड़ ली हैयही हाल लक्सा, खोजवां और बजरडीहा का है

खाने को पड़े लाले

दिनेश बचपन से ही पंखे की जाली बनाने का काम करते आ रहे हैंइनकी शादी हो गई है और अब एक चार साल का बच्चा हैमई-जून में ऑर्डर एकदम नहीं होने से कारखाने के मालिक ने हिसाब कर कोई दूसरा काम खोजने के लिए कहादिनेश को अधिक पढ़े-लिखे नहीं होने की वजह से परिवार के भरण-पोषण के लिए मजदूरी करनी पड़ रही हैवह भी नियमित नहीं मिलती हैदिनेश की तरह नत्थूलाल, मोहित, सोनू और रविंदर को भी अब रोजाना परिवार का पेट पालने के लिए काम तलाशना पड़ता है

महंगाई का असर

लक्सा के पंखा के जाली कारोबारी के मुताबिक में खूब ऑर्डर रहते हैंऐसे में पीक सीजन में ही ऑर्डर घाट गएजो ऑर्डर थे उसे पूरा किया गयाफिर बाद में कंपनियों ने बताया कि मार्च में कुछ जगहों पर सरिये का भाव 85 हजार रुपये टन तक पहुंच गया थाइस वजह से ऑर्डर में कमी आ गई थीहालांकि अब ऑर्डर मिल रहे हैं लेकिन ऊंट के मुंह में जीरा वाली स्थित बनी हुई हैसुजाबाद, बजरडीहा, लक्सा, कमच्छा और खोजवां में जाली बनाने के कई कारखाने एक के बाद एक बंद होते चले गए

पंखे की जाली बनाने का कारोबार मार्च से धड़ाम हो गया हैअब भी छिटपुट ऑर्डर मिल रहे हैं, लेकिन उससे कारखाने का किराया, बिजली का बिल और कारीगरों को मजदूरी का भुगतान करना संभव नहीं हैइस धंधे में 15 सालों से अधिक समय से जुड़ा हूं, अचानक से इतनी गिरावट आएगी सोचा न था.

सचिन मौर्य, कारोबारी, लक्सा

सरिया महंगी होने से बचत और कारीगरों की मजदूरी देना भी दूभर हो गया हैहोलसेल वाले कहते हैं कि इतने में माल तैयार करके दीजियेबताइये कौन बेवकूफ है? लोग आमदनी के लिए मेहनत-मजदूरी करता हैजब उसे या कारखाने के मालिक को बचत ही नहीं होगी तो कौन बेगारी करेगा?

राहुल, कारोबारी, सुजाबाद

जाली का काम बंद होने से मेरी तरह सैकड़ों बेरोजगार हो गए हैंपरिवार चलाने के लिए मजबूरी में ई-रिक्शा चलना पड़ा रहा हैमैं अब मजदूरी करता हूंमहंगाई अलग से परेशान कर रही हैकिसी अधिकारी या विभाग का ध्यान हमारी समस्याओं पर नहीं है

नत्थूलाल, कारीगर