जय गुरुदेव के अनुयायियों की यह कोई पहली जुटान नहीं है। इसी शहर में 70 के दशक में जय गुरुदेव के आगमन पर ऐसा समागम हुआ जैसा लोगों ने उसके पहले नहीं देखा था। समागम के गवाह रहे लोग बताते हैं कि दशाश्वमेध घाट के सामने गंगा के पार रेती पर राजघाट पुल से लेकर रामनगर तक पूरा नगर बसाया गया था। करीब एक पखवारे तक जय गुरुदेव का सत्संग हुआ था। उस दौरान नगर की पूरी व्यवस्था जय गुरुदेव के स्वयंसेवक भक्तों के हाथ में थी। वहां एक भी पुलिस नहीं थी। न तो कोई अव्यवस्था हुई और न ही किसी के खाने-पीने को लेकर कोई समस्या आई। सब कुछ शांतिपूर्ण ढंग से निबट गया। संख्या की दृष्टि से देखा जाए तो जय गुरुदेव के उत्तराधिकारी पंकज महाराज का यह समागम भी एक बड़ा आयोजन था लेकिन उस प्रकार की कोई व्यवस्था देखने को नहीं मिली। लंबी शोभायात्रा के दौरान भी वालेंटियर देखने को नहीं मिले।