हाई सिक्योरिटी बैरक में कैद दुर्दात नक्सली किसी बड़ी साजिश में लगे हैं। योजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए एक-दूसरे से मीटिंग करने की कोशिश कर रहे हैं। इसी कोशिश ने सेंट्रल जेल में भूचाल ला दिया। क्या-क्या हुआ जेल में पढि़ए इस खबर में।

सेंट्रल जेल में नक्सलियों के मिलने की साजिश फेल

सेंट्रल जेल में हाई सिक्योरिटी बैरक में रहने वाले हार्डकोर नक्सलियों के मिलने की प्लैनिंग का हुआ खुलासा

नक्सली चुनमुन को बैरक से बाहर निकालने वाले बंदीरक्षक की खुली पोल, किया गया सस्पेंड, पूरे मामले की हो रही जांच

VARANASI : बड़ी साजिश की फिराक में लगे सेंट्रल जेल में बंद हार्डकोर नक्सलियों का राजफास हो गया। हाई सिक्योरिटी बैरक में होने के बावजूद वह एक-दूसरे से मिलने की कोशिश कर रहे थे। जेल में तैनात एक बंदीरक्षक उनका मददगार बना था। इसकी मदद से एक बैरक से दूसरे तक जाने की कोशिश में लगे नक्सली ने विरोध करने पर लम्बरदार पर हमला कर दिया। मामला खुलते ही जेल कैम्पस में हड़कम्प मच गया। जेल अधिकारियों ने सक्रियता दिखाते हुए नक्सलियों पर पहले से अधिक सख्त पहरा लगा दिया है। सिपाही को तत्काल प्रभाव से निलम्बित कर दिया गया है। नक्सलियों की साजिश क्या है? और उनके कितने मददगार हैं? इसकी जांच की जा रही है।

मिलने की कर रहे थे कोशिश

बनारस सेंट्रल जेल में तीन हार्डकोर नक्सली बंद हैं। डेढ़ साल पहले इन्हें यहां लाया गया था। इन्हें जेल में मौजूद दो हाई सिक्योरिटी बैरक में रखा गया है। बिहार में आंतक का पर्याय बना रहा नक्सली चुनमुन हाई सिक्योरिटी बैरक-एक में कैद है। सोनभद्र, मिर्जापुर, बिहार, मध्य प्रदेश में दहशत का दूसरा नाम रहे नक्सली लालव्रत कोल और महेन्द्र खरवार हाई सिक्योरिटी बैरक नम्बर-दो में रखे गए हैं। इन्होंने ढेरों निर्दोष लोगों की जानें ली हैं। वह फिर किसी आपराधिक वारदात को अंजाम न दे सकें इसलिए बैरक में बंद नक्सलियों के बीच किसी तरह का सम्पर्क नहीं रहता है। उनकी हर गतिविधि पर नजर रखने के लिए हर वक्त सिपाहियों की तैनाती रहती है। रविवार की सुबह इन्होंने मिलने की योजना बनायी। इसमें बैरक की निगरानी पर लगा सिपाही उनका मददगार बन गया।

प्लैनिंग की खुल गयी पोल

दो दिन पहले नैनी जेल से ट्रांसफर होकर आए सिपाही कमलाकांत तिवारी की ड्यूटी चुनमुन के बैरक के पास थी। यह पहले भी बनारस सेंट्रल जेल में तैनात रह चुका था। इसके चलते नक्सलियों से इसकी अच्छी बनती थी। चुनमुन ने दूसरे बैरक में रह रहे लालव्रत कोल और महेन्द्र से मिलने की इच्छा कमलाकांत से जाहिर की। सिपाही ने इसके लिए हामी भर दी। मौका देखकर उसने चुनमुन को बैरक से बाहर निकाल दिया। वह उसे अन्य नक्सलियों की बैरक नम्बर दो की ओर ले जाने लगा। बैरक नम्बर दो की निगरानी पर तैनात लम्बरदार को इसकी जानकारी हुई तो उसने चुनमुन को बैरक की ओर जाने से रोक दिया।

मच गया जेल में हड़कम्प

इस पर चुनमुन आपे से बाहर हो गया। बेहद खूंखार नक्सली ने लम्बरदार पर जानलेवा हमला कर दिया। लात-घूसों से उसकी पिटायी शुरू कर दी। शोर-शराबा सुनकर आसपास मौजूद अन्य बंदीरक्षक और लम्बरदार भागे हुए आए। किसी तरह से लम्बरदार को नक्सली के हाथों बचाया। हार्ड कोर नक्सली को बैरक से बाहर लाने की जानकारी होते ही जेल अधिकारियों में हड़कम्प मच गया। तत्काल मौके पर पहुंचकर मामले की जानकारी ली। नक्सलियों के साथ बंदीरक्षक कमलाकांत की सांठगांठ की जानकारी होने पर उसे देर रात निलम्बित कर दिया गया। नक्सलियों का जेल में यह खेल कितने दिनों से चल रहा है और उसकी साजिश क्या है? इसकी जांच की जा रही है। जेल प्रशासन नक्सलियों के मददगारों की तलाश भी कर रही है। आशंका है नक्सली किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की फिराक में है। इसके लिए वह आपस में बातचीत के जरिए योजना बना रहे हैं। इसमें जेल की सुरक्षा में लगे लोग ही मददगार बन रहे हैं।

बेहद खतरनाक हैं इरादे

एक अरसे से नक्सलियों की गतिविधियों पर लगाम लगा हुआ है। नक्सल प्रभावित रहे सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली में मौजूद भारी फोर्स ने उसके हौसले को पस्त कर दिया है। दहशत फैलाने की उनकी मंशा पूरी नहीं हो पा रही है। लेकिन वह खत्म नहीं हुए हैं खामोशी से अपनी रणनीति तैयार कर रहे हैं। कभी भी मौका मिला तो खून की होली खेल सकते हैं। ऐसा इनपुट इंटेलिजेंस के पास है। हार्डकोर नक्सली चुनमुन, लालव्रत कोल, महेन्द्र खरवार एक अरसे तक नक्सली गतिविधियों का नेतृत्व करते रहे हैं। फिर नक्सलियों की धमक सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली या बिहार में सुनायी दे तो इनकी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है।

बिना परमीशन हवा भी नहीं होती दाखिल

-नक्सलियों को जिन बैरक में रखा जाता है उसमें बिना जेल अधिकारियों के परमीशन के कोई दाखिल नहीं हो सकता है।

-इस वजह से हाई सिक्योरिटी बैरक को तन्हाई भी कहते हैं

-बैरक में रहने वाले कैदी को बाहर निकलने की परमीशन भी नहीं होती है

-छोटे से बैरक में ही उनके लिए सारे इंतजाम मौजूद रहते हैं

-नक्सली बैरक से बाहर आने की कोशिश भी न कर सकें इसके लिए गेट पर तीन-तीन ताले लगाए जाते हैं

-कैदियों को खाना बेहद सुरक्षा के बीच बैरक तक पहुंचाया जाता है

-बनारस सेंट्रल जेल में ऐसे दो बैरक हैं जिनमें तीन नक्सली बंद हैं

औरों का भी आना-जाना

-सेंट्रल जेल में फिलहाल क्900 कैदी हैं। इनमें आतंकवादी और नक्सली के साथ हार्डकोर क्रिमिनल्स शामिल हैं

-इनके अलावा जरायम की दुनिया में बेताज बादशाह भी जेल में आते-जाते रहते हैं

-फिलहाल माफिया डॉन बृजेश सिंह भी सेंट्रल जेल में बंद है

-सुभाष ठाकुर, मुख्तार अंसारी, मुन्ना बजरंगी, त्रिभुवन सिंह समेत ढेरों कुख्यात अपराधियों का आना-जाना होता है

-अपराधियों की निगरानी के लिए जबरदस्त सिक्योरिटी रहती है

-जेल अधिकारियों के साथ बंदीरक्षकों के साथ लम्बरदार की तैनाती की जाती है

पहले भी हो चुका है बवाल

-जेलों में गड़बड़ी का यह कोई पहला मामला नहीं है। इसके पहले भी जिले में मौजूद जेलों में कई खेल हो चुके हैं

-लगभग दो साल पहले कैदियों ने खाने के मामले पर हंगामा कर दिया था

-इस हंगामे के दौरान जेल अधिकारियों पर हमले की साजिश रची गयी थी

-इस पूरे घटनाक्रम में जेल की सुरक्षा में लगे कुछ अधिकारियों की संलिप्तता की चर्चा थी

-गड़बडि़यों के मामले में डिस्ट्रिक्ट जेल कुछ ज्यादा ही बदनाम है

-जेल में बंद रहे अन्नू त्रिपाठी और बंशी यादव की हत्या की जा चुकी है

-जेल में सख्ती करने पर लगभग एक साल पहले जेलर अनिल त्यागी की हत्या बदमाशों ने कर दी थी

-जेलों में खतरनाक कैदी होने के बावजूद मोबाइल जैमर नहीं लगाया गया है

-रुपयों का जबरदस्त खेल होता है

नक्सली को बैरक से बाहर निकालने की घटना गंभीर है। इसमें प्रथम दृष्टया बंदीरक्षक को दोषी पाते हुए निलम्बित कर दिया गया है। पूरे मामले की जांच की जा रही है। अन्य भी कोई दोषी पाया जाएगा तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

संजीव त्रिपाठी

वरिष्ठ जेल अधीक्षक, सेंट्रल जेल