वाराणसी (ब्यूरो)जिले के अस्पतालों में संचालित जन औषधि केंद्रों की स्थिति दयनीय हैदेखकर ऐसा लगता मानो सिर्फ नाम के लिए जन औषधि केंद्र खोले गए हैंजिले के दीन दयाल उपाध्याय हॉस्पिटल, कबीरचौरा मंडलीय हॉस्पिटल, लालबहादुर शास्त्री हॉस्पिटल रामनगर व बीएचयू हॉस्पिटल में संचालित जन औषधि केंद्र में दवाओं की भारी कमी हैइस सेंटरों में लगभग आधी दवाएं भी उपलब्ध नहीं हैंऐसे में मरीजों को सस्ते दर पर इलाज कैसे मिलेगायह बड़ा सवाल है लेकिन शायद ही इस मुद्दे पर जिम्मेदार सोचते होंगेविचार करते तो यह स्थिति नहीं होतीजन औषधि केंद्र में दवा उपलब्ध नहीं होने के कारण मरीजों को निजी दुकानों से ब्रांडेड दवा खरीदनी पड़ती हैजिसकी रेट 20 से 30 गुणा अधिक रहती है, जो गरीबों की पहुंच से दूर है.

जिले में अधिकतर जगहों पर जन औषधि केंद्र खोल दिए गए हैैं, लेकिन इनकी मानिटरिंग नहीं होती हैइस कारण यह मनमानी करते हैं और परेशानी मरीजों को उठानी पड़ती हैइन सेंटर्स पर वही दवाएं मिलती हैं जो आमतौर पर कम दामों की होती हैंसर्जिकल उपकरण के नाम पर यहां पर कुछ भी नहीं मिलता हैयहां तक कि शहर के कुछ सेंटर्स पर मास्क भी नहीं है.

पेटेंट मेडिसिन पर डाक्टर्स के अच्छे कमीशन

हॉस्पिटल में वर्किंग डाक्टरों को पेंटेट दवाओं पर मार्केट से मोटी कमीशन मिलती हैइसलिए डाक्टर्स जानबूझकर पेटेंट दवाओं को लिखते हैंमरीज जब सेंटर्स पर दवाओं के लिए पहुंचते हैैं तो उनको यह बोलकर दुकानदार द्वारा हटा दिया जाता है कि यह दवा बाहर की है, जोकि बाहर ही मिलेगी.

मरीज और तीमारदार परेशान

आमतौर पर देखा जाए तो सरकारी अस्पतालों में गरीब परिवार के लोग इलाज कराने के लिए ज्यादा आते हंैउनके लिए परेशानी तब हो जाती है, जब डाक्टर्स की लिखी गई दवा हास्पिटल के वितरण सेंटर पर न मिलेमरीज के लिए सबसे ज्यादा परेशानी तब हो जाती है जब डाक्टर्स की दवा उनको प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र पर भी न मिलेऐसे में परेशान होकर मरीज को अपनी इच्छाओं का हनन एंव आवश्यक जरूरतों को रोककर बाहर से दवाओं को खरीदना पड़ता हैडाक्टर्स और वेंडर के इस खेल में मरीज परेशान होता है और पिसता चला जाता है.

सेंटर की नहीं हो रही मॉनिटरिंग

शहर में इन जन औषधि केंद्रों की मानिटरिंग करने का काम जिलाधिकारी की टीम करती हैशहर के इन सेंटर्स की लंबे समय से जांच नहीं की गई है, जिससे इनकी मनमानी लगातार जारी हैयहां तक कि एक डाक्टर्स ने अपना नाम गोपनीय रखने की बात करते हुए बताया कि ऐसी शिकायतों की जांच के बाद जिलाधिकारी को पत्र लिखा, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.

मेरी तबीयत खराब थीमैैं डीडीयू हॉस्पिटल में अभी-अभी डाक्टर्स को दिखाकर पर्चा लेकर बाहर निकला हूंडॉक्टर्स ने जो दवा लिखी है वह अंदर भी नहीं मिली और जन औषधि केंद्र पर भी नहीं मिल रही हैकाफी परेशानी हो रही है.

अभिषेक, मरीज

मैैं सिर के बाल की समस्या से परेशान हूंमैैं बीएचयू में डॉक्टर को दिखाने के लिए आया थाडॉक्टर ने जो दवा लिखी है वह सेंटर पर मिल नहीं रही हैअब क्या करें, कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है.

-दुर्गेश यादव, मरीज

मैैं प्राइवेट नौकरी करता हूंइस मंहगाई में इतनी ज्यादा शेविंग नही हो पाती हैकबीरचौरा मंडलीय हॉस्पिटल में डाक्टर्स ने दवा बहुत मंहगी लिखी हैअब इसे मुझे बाहर की दुकान से उधार में लेना होगा.

-संदीप पांडेय, मरीज

इस तरह शिकायत आती रहती हैसेंटर पर हमारी कोई भी कमांड नहीं होती हैइसलिए यह सब मनमानी करते हैंहमने कई बार जिलाधिकारी को पत्र लिखा है.

-आरके सिंह, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक, डीडीयू हॉस्पिटल

इन सेंटर्स की मानिटरिंग डिस्ट्रिक ड्रग इंस्पेक्टर द्वारा की जाती हैहमारे भी संज्ञान में इस तरीके की समस्यायें कई बार आई हैंहमने उनको चेतावनी भी दी है और पत्र व्यवहार के माध्यम से कहा भी थाएक-दो दिन सुधार रहता है, लेकिन फिर उसी राह पर चल पड़ते है.

  • डासंदीप चौधरी, सीएमओ, वाराणसी