मुंशी प्रेमचंद की 141वीं जयंती पर आज लमही में मनेगी दीपावली

मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही में आज होंगे कई कार्यक्रम, ऑनलाइन जुडे़ंगे लोग

5,100

दीपों से स्मारक और शोध केंद्र समेत जगमग होगा मुंशी जी का गांव

100

से ज्यादा प्रेमचंद्र के कहानी संग्रह, रचनाओं के साथ दो हजार के आसपास है किताबें

50

से 100 लोग जिन्में बच्चे से लेकर साहित्यकार व शोधार्थी गांव में आउनकी जन्मस्थली की यात्रा कर प्रेरणा पाते हैं।

समय-काल और परिस्थितियों से जिनकी कलम सीधी टक्कर लेती थी। जिनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं, आज उस महान उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र की 141वीं जयंती है। प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही नामक गांव में हुआ था। लमही प्रवेश द्वार, स्मारक व शोध केंद्र समेत पूरा गांव मुंशी जी की यादों को संजोए है। खासकर प्रेमचंद आवास, यहां आने पर साहित्य का पूरा संसार नजर आता है। आंगन से लेकर दीवार तक बताती हैं कि कभी यहां कालजयी साहित्य का संसार बसा करता था।

लमही स्थित प्रेमचंद आवास में बरसों पहले कथाओं में सहेजा गया संसार आज भी घूमता नजर आता है। सोजे वतन, पूस की रात, गुल्ली डंडा, दो बैलों की कथा, गोदान, ईदगाह समेत कई रचनाओं को चित्रों के माध्यम से सजाया गया है। हंस में उनके द्वारा रचित मैं लूट गई की दुर्लभ प्रति उपलब्ध है, तो जमाना पत्रिका में उर्दू में प्रकाशित रचना भी है। वहीं सवा सेर गेहूं के लेखन के साथ उनके घर का बट भी है। मुख्य द्वार तप लगा चिमटा ईदगाह की याद दिला देता है तो गुल्ली डंडा बचपन की कहानियों में ले जाता है।

आज सुबह के कार्यक्रम

आज सुबह 10 बजे मुंशी प्रेमचंद की प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद 10:30 बजे 'प्रेमचंद की कथा दृष्टि' पर साहित्यकार डॉ। रामसुधार सिंह, प्रो। श्रद्धानंद व ओम धीरज वार्ता करेंगे। दोपहर 12 बजे शोध केंद्र में 'प्रेमचंद और हमारा समय' पुस्तक लोकार्पित होगी। दोपहर दो बजे से प्रेरणा कला मंच कहानी 'देवी' व लोककला विकास व शोध समिति 'मंत्र' नाट्य का मंचन करेगी।

कैसे पहुंचे

मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही वाराणसी के सभी प्रमुख सड़कों से जुड़ा है। यहां कैंट रेलवे स्टेशन से यहां की दूरी 7.2 किमी है। बाइक या ट्रैक्सी से डायरेक्ट पहुंच सकते हैं। अगर ऑटो से जाना चाहें तो कैंट से पाडेयपुर के लिए ऑटो लें, यहां से फिर लमही प्रवेश द्वार बेलवा बाबा के लिए जाएं। कैंट से यहां का किराया मात्र 30 रुपये है।

देश प्रेम के प्रति जज्बा जगाने वाली कई कृति आज भी लमही स्थित प्रेमचंद आवास में संजाई हुई हैं। मैं 1983 तक वहां रहकर देखरेख करता था। स्वास्थ्य कारणों से बाहर आना पड़ा। आज भी जब भी वक्त मिलता है यादों की उस दुनियां में लौट जाता हूं।

-सुधीर श्रीवास्तव, मुंशी प्रेमचंद के पौत्र

कथा सम्राट से संबंधित सभी जानकारियां आपको यहां मिल जाएंगी। उनकी रचनाओं को सहेजने का प्रयास करते हैं। कई रचनाओं को चित्रों, उपहार में मिले वस्तुओं, उनके घरेलू चीजों से आवास में लगाई हैं। गांव के बच्चों के साथ शोध और साहित्यिक लोग यहां आकर जानकारी लेते हैं।

- सुरेश दुबे व्यवस्थापक, मुंशी प्रेमचंद आवास

लमही में जन्मे डाककर्मी के पुत्र मुंशी प्रेमचंद ने साहित्य की नई इबारत लिखी। साहित्यकार व शोधार्थी उनकी जन्मस्थली की यात्रा कर प्रेरणा पाते हैं। प्रेमचंद की स्मृति में डाक विभाग की ओर से उनकी जन्मशती के अवसर पर 30 पैसे मूल्य का एक डाक टिकट भी जारी किया जा चुका है।

- कृष्ण कुमार यादव, पोस्टमास्टर जनरल