वाराणसी (ब्यूरो)बनारस में गंगा के प्रदूषण से सभी वाकिफ हैैंकानपुर से लेकर बनारस होते हुए पटना तक गंगा नदी प्रदूषण से कराह रही हैगंगा की प्रमुख स्थानीय मछलियों पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैैंविदेशी मूल की मछलियों की घुसपैठ इसका कारण हैैगंगा में 3 सितंबर 2020 को गोल्डेन कैटफिश और 28 जनवरी 2021 को शकरमाउथ कैटफिश मिलने से जल वैज्ञानिकों के होश उड़ गए थेइस बीच गंगा का टेंपरेचर लगातार बढ़ता जा रहा है.

जनवरी 2022 में प्रकाशित एनवायरनमेंटल साइंस एंड पॉलिटी के साइंस डाइरेक्ट जर्नल में चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैंगंगा नदी घाटी में 25 किलोमीटर के दायरे में रीजनल क्लाइमेट मॉडल अध्ययन के नतीजों को देखें तो साल 2010 से 2050 के बीच पानी के तापमान में एक से चार डिग्री सेल्सियस की औसत बढ़ोतरी होने वाली हैपानी के गर्म होने से नदी में जीवों की गैर स्थानीय यानी गैर-देसी प्रजातियां घुसपैठ कर जाएंगीमीठे जलस्रोत और गंगा में बढ़ते तापमान के सहारे कॉमन कार्प या यूरेशियन कार्प (साइप्रिनस कार्पियो), नाइल तिलापिया (ओरियोक्रोमिस निलोटिकस) और अफ्र की कैटफि़श (क्लारियस गैरीपिनस) जैसे आक्रामक प्रजातियों ने पारंपरिक मछलियों की घेराबंदी शुरू कर दी है.

जिद्दी और आक्रामक घुसपैठिए

आईसीएआर-नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज लखनऊ में एमेरिटस साइंटिस्ट व शोध पत्र के सह-लेखक एके सिंह कहते हैैं कि कॉमन कार्प या यूरेशियन कार्प (साइप्रिनस कार्पियो), नाइल तिलापिया (ओरियोक्रोमिस निलोटिकस) और अफ्रीकी कैटफिश (क्लारियस गैरीपिनस) आदि ये मीठे और साफ पानी में अनुकूल होती हैंसाथ ही ये नए आवासों और विपरीत परिस्थितियों में अपने को समायोजित कर प्रजनन की क्षमता रखती हैंअधिकतर आक्रामक प्रजातियां बदलते जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होने में सक्षम हैं क्योंकि वे प्रकृति में प्लास्टिक की तरह हैं.

एनबीए का अल्टीमेटम

भारत के राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) ने नाइला तिलापिया, अफ्र की कैटफिश और कॉमन कार्प को देश की मीठे पानी की जैव विविधता के लिए एक बड़े खतरे के रूप में सूचीबद्ध किया हैये प्रजातियां बहुतायत में मौजूद हैंएनबीए के अनुसार, इन मछलियों की शुरुआत ने गंगा सहित प्रमुख नदी प्रणालियों में कई देशी प्रजातियों, विशेष रूप से भारतीय कार्प को गंभीर रूप से समाप्त कर दिया हैजलवायु परिवर्तन का बड़ा प्रभाव बढ़ता तापमान है.

केस-1

जब उड़े एक्सपर्ट के होश

24 सितंबर 2020 को काशी के दक्षिण में रमना गांव के पास गंगा में मछुआरों के जाल में कैटफिश फंस गई थीमछली की फोटो व वीडियो देहरादून के वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट में भेजी गई थीइससे पहले 3 सितंबर 2020 को सुनहरे रंग की शकर कैटफिश गंगा में सूजाबाद के पास मिली थीबीएचयू के जंतु विज्ञानी प्रोबेचन लाल का कहना है कि इन मछलियों को नदियों से समाप्त करना अब असंभव हो गया है.

केस-2

खाती हैैं मछलियों के अंडे

28 जनवरी 2021 को रमना गांव स्थित गंगा में रंग-बिरंगी, शकरमाउथ, कैटफिश मछलियां मिली थीइस बार मछली का आकार पिछले साल की मछलियों से दोगुने साइज का थायह करीब 7 इंच तक लंबी थीमत्स्य विज्ञानी डॉअरविंद ने बताया कि यह मछलियां अफ्रीका के अमेजन नदी में पाई जाती हैंइस तरह की मछलियां गंगा के पारंपरिक जीवों के लिए खतरे की घंटी हैंयह गंगा की मछलियों के अंडे को खा जाती हैैं.

कब्जाने की फिराक में

वर्षा और तापमान के पैटर्न में अनबैलेंस चेंजेज से फ्रेश वाटर में पाए जाने वाली देसी पर विदेशी मछलियों का अटैक बढ़ा हैइनकी आक्रामक शैली उत्तर प्रदेश में कार्प, तिलापिया और अफ्रीकी कैटफिश को जीवित रहने में मदद करती हैवाराणसी में सरायमोहन, रमना, सूजाबाद, गाजीपुर में दादरी घाट और बलिया जिले में गंगा घाटों पर ये मछलियां फल-फूल रही हैंये प्रजातियां आईयूसीएन की खतरे वाली प्रजातियों की लाल सूची में शामिल हैं.

क्यों बढ़ रही जनसंख्या?

यूपी के चंदौली के पास मछली पालन करने वाले राजनारायण कुशवाहा बताते हैं कि तिलापिया और अफ्र की कैटफिश की खेती, किसानों के लिए मुनाफा वाली हैतिलापिया टफ और हर माहौल में ढलने वाली मछली हैइसमें तेजी से प्रजनन की क्षमता होती है और इस तरह इनकी संख्या भी तेजी से बढ़ती हैहालांकि, यह आक्रामक मछली तालाबों से बचने में माहिर होती हैंबाढ़ या जलभराव होने पर स्थानीय मछलियों को मात देते हुए ये नए क्षेत्र में भी आसानी से अपना विस्तार कर लेती हंै.