-काशी विद्यापीठ के सेंट्रल लाइब्रेरी में रखी ओरिजिनल प्रति को डिजिटल होने का इंतजार

-आजादी से पहले के रखे हुए न्यूज पेपर को स्कैन करने के लिए चाहिए लैंप स्कैनर

::: प्वाइंटर ::::

1912

से रखा न्यूज पेपर नहीं किया जा सका है स्कैन

1.5

लाख किताबों का डाटा अबतक कंप्यूटर में फीड किया जा चुका है

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में ज्ञान का भंडार छिपा है, लेकिन महज कुछ तकनीकी कारणों से इसका पूरा लाभ छात्रों को नहीं मिल पा रहा है। महज स्कैन नहीं होने से छात्रों को लाइब्रेरी में रखा रेयर न्यूज पेपर पढ़ने को नसीब नहीं हो रहा है। बता दें कि स्टूडेंट्स को एक क्लिक पर किताब, थीसिस, रिसर्च पेपर, रेयर बुक्स सहित अन्य स्टडी मैटेरियल उपलब्ध कराने के लिए महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में दो साल पहले प्लान बना था। सेंट्रल लाइब्रेरी को अपग्रेड करना था, इस क्रम में अब तक किताबें और थीसिस सहित अन्य स्टडी मेटेरियल तो स्कैन हो गये, लेकिन अभी भी आजादी के पहले की थाती को सुरक्षित नहीं किया जा सका है। यह थाती है आजादी से पहले यानी सन् 1912 से यहां रखा न्यूज पेपर। ये सभी न्यूज पेपर ओरिजिनल हैं। जिसमें भारत का पहला हिंदी न्यूज पेपर भी शामिल है। अगर यह डिजिटलाइज्ड हो जाए तो रिसर्च स्कॉलर, पत्रकारिता सहित अन्य विभाग के स्टूडेंट्स के लिए बेहद उपयोगी साबित होगा।

चाहिए लैंप स्कैनर

बताते चलें कि करीब सौ साल पहले के न्यूज पेपर सहित अन्य बड़े साइज के रेयर डाक्यूमेंट की स्कैनिंग साधारण तरीके से संभव नहीं होती। इसके लिए लैंप स्कैनर की आवश्यकता होती है। खास बात यह कि यहां जिस एजेंसी को लाइब्रेरी की बुक्स को साफ्टवेयर पर अपलोड करने की जिम्मेदारी दी गयी है, वह इससे अनजान है। सोर्सेस के अनुसार उसे इस कार्य का जिम्मा ही नहीं सौंपा गया है। जिसके चलते वह इस खास थाती को हाथ नहीं लगा रही है।

डेढ़ लाखें किताबें हुई अपलोड

डॉ। भगवान दास सेंट्रल लाइब्रेरी के डिजिटलाइजेशन का खाका सन् 2019 में तैयार किया गया था। बावजूद इसके सन् 2020 में इसे मूर्त रूप दिया जाने की शुरुआत हुई तो कोरोना के चलते लाकडाउन लग गया और काम ठप पड़ गया। अब जब यूनिवर्सिटी ओपेन हुई तो ऑनलाइन पब्लिक एक्सेस कैटलॉग सिस्टम पर कार्य शुरू कर दिया गया। खास बात यह है यह कार्य विश्वविद्यालय अपने संसाधन से कर रहा है। इसके तहत अब तक डेढ़ लाख किताबों का डाटा कंप्यूटर में फीड किया जा चुका है। हर दिन इसमें अधिक से अधिक किताबों को जोड़ा जा रहा है, ताकि नए सेशन से पहले कैटलॉग का कार्य पूरा कर लिया जाएगा।

एक क्लिक पर 5000 थेसिस

काशी विद्यापीठ की सेंट्रल लाइब्रेरी में रखी गयी पांच हजार थीसिस को भी यूजीसी की वेबसाइट शोधगंगा पर अपलोड किया जा चुका है। जिसे स्टूडेंट्स पूरी दुनिया में कहीं से भी देख सकते हैं। इसके अलावा लाइब्रेरी में रिसर्च स्कॉलर के लिए इंटरनेटयुक्त 50 कंप्यूटर भी लगाए गए हैं। जिसका उद्घाटन होना बाकि है। यही नहीं लाइब्रेरी में स्वयंप्रभा कक्ष का भी निर्माण जोरशोर से हो रहा है। इसके बन जाने से स्टूडेंट्स यहीं बैठकर स्वयंप्रभा चैनल पर चलने वाली ऑनलाइन क्लास का भी लाभ उठा सकेंगे।

किताब ढूंढना होगा आसान

किताबों के साफ्टवेयर फॉर यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी पर अपलोड होते ही छात्रों को अपनी मनचाही किताब खोजने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी। यूनिवर्सिटी ने लाइब्रेरी को टेक्नो फ्रेंडली बनाने की कवायद शुरू कर दी है। इस क्रम में लाइब्रेरी में इलेक्ट्रॉनिक कैटालॉग का काम युद्धस्तर पर किया जा रहा है। ऐसे में स्टूडेंट्स का अब किताबों को ढूंढने में छात्रों को अनावश्यक समय बर्बाद नहीं करना होगा। इसके स्थान पर एक क्लिक कर किताबों की पूरी लिस्ट छात्रों के सामने होगी। इसमें जर्नल, रिपोर्ट, आउट ऑफ प्रिंट बुक्स व रेयर मैगजिन शामिल है।

::: कोट :::

सेंट्रल लाइब्रेरी में मौजूद सभी थीसिस सहित न्यूज पेपर को स्कैन कर स्टूडेंट्स के लिए उपलब्ध कराने की योजना है। इसके लिए प्लान बनाया गया है। जल्द ही इसे पूरा कर लिया जाएगा।

प्रो। टीएन सिंह, वीसी काशी विद्यापीठ