-बनारस के बाजार में चल रहे पांच और दस के नकली सिक्के

-दिल्ली में पकड़ी गयी नकली सिक्कों की फैक्टरी के बाद हुआ खुलासा

केस-1

सिगरा के रहने वाले सुनील कुमार ने पान के शौकीन हैं। फुटकार की समस्या से बचने के लिए दस के सिक्के ज्यादातर अपने पास रखते हैं। कुछ दिनों से पान वालों ने दस के सिक्कों को नकली बताकर लेना ही बंद कर दिया। अब सुनील को पान की तलब लगती है तो परेशान होकर इधर-उधर भटकते हैं। दुकानदार बड़े नोट का चेंज नहीं देते हैं और दस के सिक्के लेते नहीं हैं।

केस-2

तेलियाबाग के रहने वाले मुकेश पाण्डेय इन दिनों बच्चों को स्कूल छोड़ने में कतराते हैं। बच्चे हर रोज उनसे टॉफी की जिद करते हैं। दुकानदार दस के सिक्के लेता नहीं है और सुबह का हवाला देते हुए बड़ी नोट का चेंज नहीं देता है। पूछने पर कहता है कि दस के सिक्के नकली आ रहे हैं। बिना टॉफी के बच्चे मायूस होते हैं।

ये केस शहर के लोगों के सामने आयी नयी समस्या को बता रहे हैं। इन दिनों यह बात तेजी से फैली है कि शहर में दस रुपये के नकली सिक्के चल रहे हैं। इसके चलते ज्यादातर दुकानदारों सिक्के लेने से इनकार कर दे रहे हैं। चाय-पान के शौकीन अब परेशान हैं कि अपनी तलब को कैसे मिटायें। दुकानदार नोट भी नहीं लेते हैं और अब दस के सिक्के लेने से इनकार कर रहे हैं। विरोध करने पर मारपीट पर उतारू हो जा रहे हैं। दिल्ली में नकली सिक्कों की फैक्टरी पकड़ने जाने के बाद बनारस में नकली सिक्कों की सिक्के दहशत बढ़ गयी है। शहर के लोग परेशान हैं कि एक-दो के कितने सिक्के लेकर साथ चलें कि पूरे दिन जरूरत पूरी हो सके। वहीं दुकानदारों की भी कमाई प्रभावित हुई है। हालांकि दुकानदारों का डर गलत नहीं है। खोटे सिक्के अरसे से शहर में चल रहे हैं लेकिन सबके पास हों ऐसा जरूरी नहीं है।

सिक्कों की है अच्छी खपत

-धर्म की नगरी बनारस में सिक्कों की भारी डिमांड हर वक्त रहती है

-पूजा-पाठ दान-दक्षिणा में सिक्कों का काफी उपयोग होता है

-चाय-पान के ढेरों शौकीन होने की वजह से सिक्कों की ज्यादा खपत होती है

-मेहनत-मजदूरी करके हर रोज कमाने-खाने वालों की संख्या इस शहर में काफी

-इनकी हर रोजी की छोटी-मोटी खरीदारी में भी सिक्के अहम भूमिका निभाते हैं।

-सिक्कों की भारी डिमांड की वजह से दुकानदार आदि सिक्कों को उनकी कीमत से अधिक रुपये देकर हासिल किया जाता है

-बनारस में सिक्कों की डिमांड पूरी करने के लिए कई जगहों पर क्वाइन वेंडिंग मशीन लगायी गयी है।

त्योहार में चलते हैं खोटे

बनारस में त्योहार के दौरान खोटे सिक्के खूब चलते हैं। अन्य इस्तेमाल के साथ और बहुत कुछ होता इस शहर में सिक्कों का। एक और दो के सिक्कों का इस्तेमाल चांदी के नकली सिक्के तैयार करने में किया जाता है। दीपावली में इनकी खूब बिक्री होती है। ये सिक्के इतनी सावधानी से तैयार किए जाते हैं कि असली और नकली का पता ही नहीं चलता। पांच और दस के सिक्कों का इस्तेमाल गोल्डन कलर की चेन बनाने में किया जाता है। मोटी-मोटी चेन देखकर बता पाना मुश्किल होता है कि वो सोने से तैयार हैं सिक्कों से।

ऐसे करें पहचान

-सिक्के के अगले भाग यानि उस भाग को देखें जहां दस रुपये लिखा होता है तो असली सिक्के पर दस का अंक दोनों धातुओं पर उभरा होता है

-नकली सिक्के पर आपको सिक्के के बीच एक ही धातु पर छापा मिलेगा

-असली सिक्के की दूसरी तरफ भारत और इंडिया आमने-सामने लिखा है

-नकली सिक्के पर इंडिया और भारत साथ-साथ मिलेगा

-नकली सिक्के की धातु पर चमक अधिक होती है जो समय के साथ कम हो जाती है

-असली सिक्के पर चमक बहुत अधिक नहीं होती है लेकिन समय के साथ कम नहीं होती है

-नकली सिक्के की साइज और वजन असली की अपेक्षा कम या अधिक हो सकता है।

नहीं कर सकते इनकार

भारत सरकार की ओर से जारी किसी मुद्रा के लेन-देन से इस देश में कोई इनकार नहीं कर सकता है। अगर कोई ऐसा करता है तो वह अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसे व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करते हुए कठोर कार्रवाई की जा सकती है। उसे जुर्माने के साथ दस साल से अधिक की जेल भी हो सकती है।

आशुतोष शुक्ला, वरिष्ठ अधिवक्ता

दस के सिक्के दुकानदार लेने से इनकार कर दे रहे हैं। इसकी वजह से बड़ी परेशानी हो रही है। एक-दो के सिक्के जेब में लेकर घूम नहीं सकते हैं और बड़ी नोट हर जगह चेंज नहीं होती है।

हिमांशु गिरी, अर्दली बाजार

चाय की तलब लगती है तो पहले एक-दो सिक्के जुटाने पड़ते हैं। दस के सिक्के दुकानदार लेने से इनकार कर दे रहे हैं। हर वक्त सिक्के कहां मिलेंगे समझ में नहीं आता है।

रौशन सिंह, सिगरा

दस के सिक्के देने पर दुकानदार साफ मना कर दे हैं। उस वक्त ऐसा लगता है जैसे हम खुद नकली बना रहे हैं। विरोध करने पर मारपीट पर उतारू हो जा रहे हैं।

अजय पाल, लल्लापुरा

दुकानदार दस के सिक्के हमें थमा दे रहे हैं लेकिन जब उन्हें दे तो लेने से इनकार कर दे हैं। इसकी वजह से पान खाना, चाय पीना मुश्किल हो गया है।

धनन्नजय राय, चेतगंज