वाराणसी (ब्यूरो)जो कहीं नहीं होता और जो कहीं नहीं दिखता, वह काशी में होता हैचाहे वह कर्मकांड हो या फिर रीति-रिवाजसभी अद्भुत और अचरज से भराऐसा ही एक विधान पिशाचमोचन कुंड पर भी होता हैयहां सिक्कों और कीलों में अतृप्त आत्माओं का बसेरा माना जाता हैअब मानो या ना मानो! यकीन न हो तो पिशाचमोचन कुंड में जाकर देख सकते हैं। 2 सौ वर्ष पुराने पीपल के पेड़ में कील से ठोके गए सिक्कों की भरमार हैयही नहीं कई ऐसे फोटो भी देखने को मिलेंगे जिन्हें देखते ही आप हैरान हो जाएंगे.

पेड़ में सिक्के व कील का ढेर

पिशाचमोचन कुंड का पीपल का पेड़ इस मान्यता का साक्षी हैइस पेड़ के मोटे तने से लेकर शाखाओं में सिक्कों और कीलों का ढेर हैदो सौ वर्ष पेड़ में ठोके गए अनगिनत सिक्के और कील ही अतृप्त आत्माओं का ठिकाना हैइसके अलावा मृत व्यक्ति की तस्वीर या अन्य चिह्नों को भी पेड़ में ठोका जाता हैइसमें सद् और दुष्ट आत्माएं भी हैं तो भूत-प्रेत और पिशाच भी हैं.

पितृ पक्ष होता है खास

पेड़ में सिक्के या कील गाडऩे का विधान बारहोमास, लेकिन पितृ पक्ष खासयह पक्ष पितृलोक में रहने वाले पितरों और प्रेतयोनी में भटकती आत्माओं का मुक्ति द्वार माना गया है.

गांव-देहात से पहुंचते लोग

किस्से-कहानियों की मानें तो कुंड में भूत उतरवाने गांव-देहात और विभिन्न प्रांतों से लोग पहुंचते हैंजो लोग पितृ दोष, भूत-प्रेत और दुष्ट आत्माओं से त्रस्त रहते हैं वो यहां एक-दो रुपये या पुराने सिक्के को पूजते हैं और उसमें भूत-प्रेत या अतृप्त आत्मा को यहां बैठा देते हैंबैठाने का विधान पेड़ में ठोक देना हैसिक्के के अलावा छोटी-बड़ी कीलों में भी आत्माओं को ठोंका जाता हैकोई इसे ब्रह्म ठोंकना कहता तो कोई इसे आत्माओं को कटिया से स्थापित करने की बात कहता है.

ब्रह्म की पूजा

सिक्के या कील ठोंकने के पीछे यह मान्यता है कि पुरखों का कोई ऋण अगर शेष रह गया हो या किसी पर पितृ ऋण का साया हो या फिर किसी पर भूत सवार हो तो वह इस विधान द्वारा उसे पेड़ में स्थापित कर देता हैकुंड के पास स्थापित ब्रह्म देवता का मंदिर है और उनकी पूजा के साथ उन ब्रह्म की भी पूजा होती है जो पेड़ में सिक्के या कील में बसते हैं्र.कहा तो यह भी जाता है कि अकाल मृत्यु और प्रेतयोनी में फंसी आत्माएं यहां आती हैंब्रह्म हत्या से भी यहां मुक्ति मिलती हैपितृ दोष या ब्रह्म हत्या दोष पाने वाला व्यक्ति पुत्र सुख से वंचित रहता है और सफेद दाग या तरह-तरह की शारीरिक व मानसिक तकलीफ झेलता हैसिक्के या कील ठोंकना एक विधान मात्र है.

पीपल का पेड़ दो सौ साल पुराना हैऐसे तो बारहों मास लोग अतृत्प आत्माओं को बैठाने आते हैं, लेकिन पितृपक्ष में भटकती आत्माओं को बैठाने के लिए भीड़ लग जाती है.

प्रदीप कुमार पांडेय, काशी के प्रधान तीर्थ