-केदारधाम तो चमक गया, लेकिन गांवों की नहीं बदली दशा

-अब तक सिर्फ 10 फीसदी सड़कों का ही हो सका पुनर्निर्माण

-आपदा में 4200 गांव सीधे तौर पर हुए थे प्रभावित

-376 गांवों का नहीं हो सका अब तक विस्थापन

दिलीप बिष्ट

DEHRADUN: साल ख्0क्फ् जून की क्म् तारीख की रात आज भी हर किसी के जेहन में है। केदारनाथ में आई आपदा को आज पूरे तीन साल बीत चुके हैं, लेकिन इससे उबरने में अभी शायद दशकों लग जाएं। हालत ये है कि यहां के लोगों की जिंदगी अब तक सामान्य नहीं हो पाई है। उस मंजर को जो भी याद करता है वो आज भी सिहर उठता है। सरकार और शासन ने मिलकर केदारघाटी की कायापलट के तमाम दावे किए, लेकिन हकीकत ये है कि अब तक सिर्फ दस फीसदी सड़कों का ही पुनर्निर्माण हो पाया है। ये बात अलग है कि केदारनाथ धाम को चमकाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई।

क्या कहते हैं आंकड़े

जून ख्0क्फ् की आपदा में पांच जिलों के ब्ख्00 गांव प्रभावित हुए थे। अगस्त ख्0क्ब् में क्षतिग्रस्त हुई सड़कों पर काम शुरू हुआ था। इनके निर्माण के लिए व‌र्ल्ड बैंक और एशियन डेवलपमेंट बैंक से कर्ज मिला था। कुल फ्ख्ब् सड़कों पर काम शुरू हुआ। हालत ये है कि फ् साल बीत जाने पर भी सिर्फ फ्म् सड़कों का काम पूरा हो सका है। जो क्0 फीसदी से कुछ ही ज्यादा है।

सड़कों पर खर्च का लेखा-जोखा

(राशि करोड़ों में है, ऊपर-नीचे भी हो सकती है.)

योजना मंजूर जारी खर्च

एडीबी क्0म्7.00 म्78.00 ब्फ्भ्.00

व‌र्ल्ड बैंक क्089.00 म्म्ब्.00 म्क्8.00

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कुल ख्क्भ्म्.00 क्फ्ब्ख्.00 क्0भ्फ्.00

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कब होगा गांवों का विस्थापन?

आपदा के बाद सरकार ने पांच जिलों के फ्7म् गांवों के विस्थापन का फैसला लिया था जो अभी तक अधर में ही लटका हुआ है। हालांकि सरकार इन गांवों का दोबारा सर्वे कराने जा रही है। कुछ ही दिनों पहले मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इन गांवों के विस्थापन के लिए केंद्र से एक हजार करोड़ के विशेष पैकेज की मांग की है। फिलहाल न तो केंद्र इस तरफ कदम बढ़ा रहा है और राज्य सरकार तो बजट का रोना रो ही रही है।

आपदा प्रबंधन भी नाम का

पिछले साल आई कैग की रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि किस तरह आपदा प्रबंधन के नाम पर आई करोड़ों की राशि पानी में बहा दी गई। उपकरण तक ठीक से नहीं खरीदे गए। अब तक उपकरणों और आपदा से निपटने के लिए लगाई गई फोर्स पर करीब ख्भ् करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं।

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आपदा के बाद निम के सामने सबसे बड़ा टास्क यात्रा सुचारु करने को लेकर था। चुनौती पूरी हुई है। यात्रा पर आने वाले यात्रियों के रिकॉर्ड सबके सामने हैं।

कर्नल अजय कोठियाल, प्रधानाचार्य, नेहरू पर्वतारोहण्ा संस्थान।

जिस तरीके से केदारघाटी में तबाही आई थी। हरीश सरकार के प्रयासों से कहा जा सकता है कि यात्रा पटरी पर उतरी है। केंद्र आर्थिक मदद करे तो केदारघाटी में अधूरे कार्य पूरे होने के साथ ही प्रभावितों का विस्थापन पूरा किया सकता है।

मथुरा दत्त जोशी, मुख्य प्रवक्ता, पीसीसी।

आपदा के तीन साल बाद भी सरकार प्रभावितों के आंसू पोंछने में नाकाम रही है। हकीकत यह है कि यात्रा मार्गो पर कोई मंत्री व अधिकारी समीक्षा करने तक को नहीं पहुंचे। जबकि सरकार विधायकों को बचाने में जुटी है।

वीरेंद्र बिष्ट, प्रदेश प्रवक्ता, भाजपा।