देहरादून। महिलाओं में आम बीमारी के साथ ब्रेस्ट कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इस बीमारी की ओर शुरुआत में ध्यान नहीं देने के कारण यह गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है। लिहाजा इस रोग के बढ़ते ग्राफ को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी चिंता जाहिर की है। उपचार में देरी और बीमारी को छिपाने से यह बीमारी जानलेवा साबित होती है। यह जानकारी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश के डायरेक्टर प्रो। रविकांत ने दी। हर साल 30 में से एक महिला ब्रेस्ट कैंसर से ग्रसित होती है। उनका कहना है कि सूचना और संचार के इस युग में महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने की जरूरत है।

एम्स में शुरू एकीकृत स्तन उपचार केन्द्र

एम्स में 'इंटिग्रेडेड ब्रेस्ट कैंसर क्लिनिक' की स्थापना की गई है। जिसमें महिलाओं से जुड़ी बीमारी से संबंधित सभी तरह के परीक्षण और उपचार अनुभवी डॉक्टर एक ही स्थान पर कर सकेंगे। एम्स में इंटिग्रेडेड ब्रेस्ट कैंसर क्लिनिक की प्रमुख व वरिष्ठ शल्य चिकित्सक प्रो। डॉ। बीना रवि ने बताया कि ब्रेस्ट कैंसर की शिकायत अधिकतर 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में होती है। यह कैंसर मिल्क डक्ट में विकसित होता है। शुरुआत में ध्यान नहीं दिया गया तो यह धीरे-धीरे ब्रेन, लिवर और रीढ़ की हड्डी सहित पूरे शरीर में फैल जाता है।

यह है कारण-

खराब खान-पान

अनियमित दिनचर्या

स्मोकिंग और शराब का सेवन

जेनेटिक रीजन

दूध पिलाने से खतरा कम

बच्चे को अपना स्तनपान कराने वाली महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा कम होता है। आईबीसीसी की चेयरपर्सन प्रो। बीना रवि ने बताया कि बच्चे को मां का दूध पिलाने से स्तन में गांठें नहीं बनती। साथ ही बच्चे को मां के दूध के माध्यम से संपूर्ण पौष्टिक तत्व भी प्राप्त हो जाते हैं। उनका सुझाव है कि सभी महिलाएं अपने बच्चे को कम से कम दो साल की उम्र तक बे्रस्ट फीडिंग जरूर कराएं। बच्चे को अपना दूध पिलाने से महिला में एक विशिष्ट प्रकार के कैंसर की संभावना कम हो जाती है।