देहरादून (ब्यूरो) दून में करीब पौने दो लाख पेयजल कंज्यूमर्स हैं। टॉयलेट में पीने का पानी ही यूज किया जाता है। करीब 90 परसेंट पानी सिंचाई के साथ ही टॉयलेट, नहाने और कपड़े धोने में बेजा इस्तेमाल हो रहा है। इसकी कोई लिमिट नहीं है। तकनीक लगाकर इन कार्यों पर पानी खर्च किया जाए, तो बड़ी मात्रा में पानी की बरबादी को रोका जा सकता है। डेली हजार करोड़ लीटर पानी को बचाया जा सकता है।

2 करोड़ डेली बचत
थोड़ा सी बचत से रोजाना 2 करोड़ पीने का पानी बचाया जा सकता है। एक सिस्टर्न में रेत से भरी बोतल डालें तो एक बार फ्लाशिंग करने पर सीधे एक लीटर पानी की बचत हो जाएगी। पूरे प्रदेश में घरेलू और व्यावसायिक दोनों मिलाकर 10 लाख के करीब कंज्यूमर्स हैं। एक कंज्यूमर सिस्टर्न में रेत से भरी बोतल डालकर एक बाल्टी यानि 20 लीटर पानी की की बचत करता है, तो 10 लाख कंज्यूमर्स 2 करोड़ लीटर पानी रोजाना बचा सकते हैं। इसके अलावा नहाने, कपड़े धोने में सीमित पानी इस्तेमाल तो कई हजार करोड़ पानी की बचत हो सकती है।

घर-घर जाकर किया जा अवेयर
जल संस्थान धर्मपुर के सहायक अभियंता हिमांशु नौटियाल ने बताया कि संस्थान के कार्मिक घर-घर जाकर लोगों को पानी बचाने और पानी का अपव्यय रोकने के लिए अवेयर कर रहे हैं। हर वाटर कंज्यूमर को घर के टॉयलेट सिस्टर्न में रेत से भरी प्लास्टिक की बोतल रखने के लिए जागरुक किया जा रहा है। उन्हें यह भी बताया जा रहा है कि इससे किस तरह पानी की बचत होगी। डैमो दिखाकर लोगों को गर्मी में इस तरीको जो इस्तेमाल करने की अपील की जा रही है। बताया कि लोग अवेयर हो रहे हैं और इसका प्रयोग भी कर रहे हैं।

पीने के पानी की हो रही सैंप्लिंग
सहायक अभियंता हिमाशु नौटियाल ने बताया कि अवेयरनेस प्रोग्राम के दौरान जल संस्थान के कर्मचारी गंदे पानी की शिकायत पर पानी की क्वालिटी की जांच के लिए सैंपल भी ले रहे हैं। क्लोरीन की वहीं पर जांच कर बताया जा रहा है कि पानी कितना शुद्ध है। अधिकांश शिकायतों पर की गई क्लोरीन सैंपल सही पाए गए। कुछ जगहों पर सीवर लाइन चोक के कारण दूषित पानी की आपूर्ति पर लाइन ठीक करके शुद्ध पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है।

टैंकों की हो रही क्लीनिंग
अधीक्षण अभियंता राजीव सैनी ने बताया कि पानी के ओवर हेड टैंकी की सफाई व क्लोरीनेशन रुटीन प्रक्रिया में किया जाता है। गर्मी को देखते हुए कई जगहो पर टैंकों की सफाई भी की जा रही है, जिससे उपभोक्ताओं को शुद्ध जल मिल सके। वाटर टैंकों की नियमित मॉनिटरिंग की जा रही है। टैंकों के पानी की भी रोजाना सैंप्लिंग की जा रही है। बताया गया कि फिलहाल कहीं से भी टैंकों के पानी के सैंपल जांच में फेल नहीं पाए गए हैं। उन्होंने लोगों से पानी बचाकर, जीवन बचाने की अपील की है।

कम बारिश और बढ़ती आबादी से नेचुरल सोर्स व अंडर ग्राउंड वाटर की कमी महसूस हो रही है। इसलिए सभी पेयजल कंज्यूमर्स से अपील है कि जल संरक्षण के साथ ही पानी के अपव्य को रोकने में अपनी भागीदारी अवश्य करें।
नीलिमा गर्ग, सीजीएम, उत्तराखंड जल संस्थान

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