विडंबना- लगातार घटती पैदावार से सरकार दे रही दूसरी नस्लों को बढ़ावा

-सरकारी बीज बिक्री केंद्रों पर नहीं मिलेगा बासमती का बीज

हरिद्वार:

उत्तराखंड की बासमती की महक शायद जल्द ही गायब हो जाए। वजह, उत्तराखंड सरकार ने धान खरीद केंद्रों पर अब बासमती के बीज की बिक्री पर रोक लगा दी है। दरअसल राज्य में बासमती की लगातार घटती पैदावार के चलते सरकार अब धान की दूसरी किस्मों की पैदावार को बढ़ाने पर ध्यान दे रही है। इसी को देखते हुए जिले के कृषि विभागों को आदेश जारी कर दिए गए हैं।

लगातार घट रहा रकबा

उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों में चावल की खेती बड़े पैमाने पर होती है। इसमें सर्वाधिक उत्पादन हरिद्वार, देहरादून, उधमसिंह नगर और नैनीताल के ग्रामीण क्षेत्र में होता है। धान की विभिन्न किस्मों के अलावा किसान बासमती की खेती भी करते हैं। बासमती चावल का सर्वाधिक उत्पादन हरिद्वार क्षेत्र में होता है। इन क्षेत्रों में दो वर्ष पूर्व तक करीब 24 हजार टन बासमती चावल का उत्पादन होता था। इसके चलते प्रदेश सरकार की ओर से भी किसानों को जिलों के क्रय केंद्रों से बासमती धान की नर्सरी के लिए बीजों का वितरण किया जाता था। किसानों को सब्सिडी पर बासमती धान का बीज सस्ते मिल जाते थे। हाल के दो वर्षो में बासमती चावल के उत्पादन में आई कमी के चलते प्रदेश सरकार ने धान की इस किस्म के क्रय केंद्रों से होने वाले वितरण से अपने कदम पीछे खींच लिए हैं।

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कहां कितना उत्पादन

जगह रकबा हेक्टेयर में

हरिद्वार 8 से 10 हजार देहरादून 5 से 6 हजार

उधमसिंह नगर 4 हजार

नैनीताल 1 से 1.5 हजार

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बासमती चावल की किस्में

पूसा बासमती-एक

पूसा-1121

पूसा-1509

पूसा 2478

परावड़ी और पाक बासमती

निजी केंद्रों से खरीदना होगा बीज

पिछले दिनों मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी हरिद्वार में बासमती चावल के कम उत्पादन पर ¨चता जताई थी। इस पर उन्होंने जिला कृषि विभाग को चावल की अन्य किस्मों के उत्पादन को बढ़ावा देने का आदेश दिया था। उन्होंने सचिवालय स्तर पर वार्ता करके इनके वितरण पर रोक लगाने के निर्देश भी दिए, जिसके मद्देनजर शासन ने यह फैसला किया है। अब बासमती की खेती के इच्छुक किसानों को निजी बीज वितरण केंद्रों से ही बीज खरीदने पड़ेंगे।

वर्जन

बासमती चावल के उत्पादन में भारी कमी आई है। यही कारण है कि सरकारी क्रय केंद्रों पर बासमती के बीजों के वितरण पर रोक लगाई गई है। बासमती चावल के लिए अधिक पानी की जरूरत होती है, जबकि अन्य किस्मों में कम पानी लगता है और उत्पादन भी जल्दी और ज्यादा होता है।

जेपी तिवारी, मुख्य कृषि अधिकारी