- पिछले 30-40 साल से था कई लोगों को कब्जा
- दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की खबर का बड़ा इंपेक्ट

देहरादून (ब्यूरो): इनमें कुछ पक्के तो कुछ झोपडिय़ां थी। इस जगह पर पिछले 30-40 साल से अवैध लोग अवैध रूप से रह रहे थे। धीरे-धीरे झोपडिय़ां पक्के मकान में तब्दील हो रही थी। नगर निगम इस ओर लापरवाह बना हुआ था। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने अवैध कब्जों को लेकर सैटरडे को खबर प्रकाशित की। सैटरडे को ही डीएम सोनिका ने खबर का संज्ञान लेते हुए नगर निगम और तहसील प्रशासन को तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए, जिसके बाद एसडीएम नरेश दुर्गापाल के नेतृत्व में टीम कब्जा हटाने पहुंची।

कब्जे कराने वालों को
घर से बेदखल होने पर कुछ महिलाओं ने मोटी रकम लेकर कब्जे कराने वालों को खूब कोसा। फूट-फूट कर रोती कई महिलाओं ने उन्हें श्राप भी दिया। पैसे देने के बाद भी आज वह सड़क पर आ गए। उनका परिवार भी ऐसे ही सड़क पर आए। सवाल यह है कि वे लोग कौने थे जिन्होंने मजदूरों से लाखों रुपये डकार सरकारी जमीन बेच डाली। ऐसे लोगों पर भी कार्रवाई की मांग की जा रही है, ताकि दोबारा कोई किसी गरीब को न लूट सके।

टीम का किया विरोध
अवैध कब्जाधारियों ने कार्रवाई का विरोध किया, लेकिन टीम ने इसकी परवाह किए बिना एक के बाद एक सभी अवैध निर्माण ध्वस्त किए। एक निर्माण को विवाद के चलते रोक दिया गया। सहायक नगर आयुक्त रविंद्र दयाल ने बताया कि लगभग सभी सरकारी भूमि से सभी कब्जे हटा दिए गए हैं। एक कब्जे को लेकर विवाद है। उसके कागजात चेक किए जा रहे हैं। जल्द ही इस पर कार्रवाई की जाएगी।

सड़क पर बिखरा सामना
कब्जा हटाने के बाद यहां रह रहे सभी परिवार सड़क पर आ गए। बेघर होने के बाद लोग सामान समेटते नजर आए। ऐसे हाल में वह कहां जाएंगे उन्हें कुछ पता नहीं। कई परिवारों के साथ छोटे-छोटे बच्चे हैं। कई ने सुबह का खाना भी नहीं खाया था कि तब तक घर तोडऩे बुलडोजर आ गया। कई लोगों ने अवैध कब्जा करके दूसरे को किराए पर दिए थे।

4-4-लाख में बेची सरकारी जमीन
कब्जे हटाने के दौरान पता चला कि किसी ने सरकारी जमीन पर बसाने के लिए चार-चार लाख रुपये लिए। आज उनके चार लाख मिट्टी में मिल गए। जिन लोगों ने पैसा लेकर बसाया था आज वह कहीं नजर नहीं आए। कब्जेधारी लकीर पीटते रहे। कई लोगों ने कहा कि पूर्व में प्रधान ने बसा, तो कोई पार्षद तो कोई विधायक का नाम ले रहे थे, लेकिन अवैध निर्माण टूटने के दौरान वहां कोई नहीं दिखा।

अफसरों की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल
सरकारी जमीनों पर कब्जे होते रहे और नगर निगम के अफसर सोते रहे। एकता विहार की करोड़ों रुपये की ये बेशकीमती जमीन तो एक बानगी है, इस तरह शहर के कई जगहों पर कब्जे हैं, लेकिन वहां तक नगर निगम की नजर नहीं जाती। एकता विहार स्थित युद्ध स्मारक वाले एरिया में कब्जे की नगर निगम को शुरू से खबर थी, लेकिन मिलीभगत के चलते अवैध कब्जों की फेहरिस्त कम होने के बजाय बढ़ती रही। करीब 30 बीघा से अधिक यह सरकारी भूमि प्रापर्टी डीलरों के निशाने पर थी।

अवैध निर्माण हटाया, नहीं की पैमाईश
खलंगा स्मारक के लगी जमीन और धरना स्थल से लगी जमीन से कब्जे हटाने गई टीम ने कब्जे तो हटाए लेकिन अभी भी सरकारी जमीन की पैमाईाश नहीं की। सरकार की कितनी जमीन है अभी भी इसे सार्वजनिक नहीं की जा रहा है। एकता विहार के नीचे तीन मंजिला मकान इस भूमि पर बन रहा। इसका भी संज्ञान नहीं लिया गया। धरना स्थल के पास बाउंड्री करके जमीन घेरी गई, इस पर भी स्थिति स्पष्ट नहीं की। इससे साफ है कि अफसरों की नीयत साफ नहीं है, उनकी अभी कब्जे कराने की मंशा लग रही है।

टीम में थे ये शामिल
एसडीएम नरेश दुर्गापाल, अपर मुख्य नगर आयुक्त रविंद्र दयाल, कर अधीक्षक भूमि राहुल कैंथौला, टैक्स इंस्पेक्टर कुलदीप सिंह, कर निरीक्षक नेपाल सिंह, प्रवीन कठैत और रायपुर थाने के दरोगा आशीष पोखरियाल आदि शामिल रहे।

एकता विहार से सरकारी भूमि से सभी कब्जे हटा लिए गए हैं। जमीन की पैपाईश की जा रही है। जल्द ही जमीन का सीमांकन कराकर बाउंड्रीवॉल की जाएगी। सरकारी भूमि पर कब्जे करने वालों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा।
नरेश दुर्गापाल, एसडीए, देहरादून
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