देहरादून(ब्यूरो) नगर निगम के रिकॉर्ड के अनुसार 2012 में 68 बस शेल्टर के लिए टेंडर किए गए थे। इनमें से 60 बस शेल्टर ही बने। इसके बाद 2018 में नगर निगम का परिसीमन किया गया था। 40 नए वार्ड तैयार हुए थे। इन नए वार्डों में बस शेल्टर नहीं बन पाए, जबकि नगर निगम के पास कई प्रपोजल भी आए।

यहां बने बस शेल्टर किसी काम के नहीं
- राजपुर रोड में मधुबन होटल के पहले एक बस शेल्टर बना और होटल के बाद दूसरा बस शेल्टर बना दिया। 100 मीटर में ही दो बस शेल्टर समझ से परे है।
- सर्वे चौक पर ईसी रोड की तरफ एक बस शेल्टर बनाया गया है, जबकि यहां कोई बस का स्टॉप है ही नहीं।
- बुद्धा चौक पर बस शेल्टर, स्टॉप से 100 मीटर दूर बना दिया गया है, इसका फायदा पैसेंजर्स को नहीं मिलता।
-लाल पुल पर बने दो शेल्टर रेड लाइट से ठीक पहले बना दिए गए हैैं। ये रेड लाइट के बाद बनते तो बस रुक पाती।
-चकराता रोड पर एलआईसी बिल्डिंग के पास बस शेल्टर बना दिया है। जबकि, यहां किसी भी तरह का पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं रुकता।
- दर्शनलाल चौक से घंटाघर जाने वाली रोड पर बस शेल्टर नहीं है, पब्लिक को बस का वेट करने के लिए फुटपाथ पर खड़ा होना पड़ता है।
-प्रिंस चौक पर बस शेल्टर नहीं है, ऐसे में बस के लिए इंतजार के लिए पैसेंजर को चौराहे के पास खड़ा होना पड़ता है।
-रिस्पना पुल पर हजारों की संख्या में पैंसेजर वाहनों का इंतजार करते हैं, लेकिन, यहां पर लगे बस शेल्टर को हटा दिया गया।

निगम देता है निर्माण एंजेसी को जिम्मेदारी
नगर निगम चयनित जगह पर 15 साल के विज्ञापन टेंडर के तहत बस शेल्टर बनाने की जिम्मेदारी सांैपता हैं। इसके तहत विज्ञापन कंपनी के पास इसके निर्माण से लेकर, इसके रखरखाव की जिम्मेदारी होती है। हालांकि, बस शेल्टर कहां बनेगा इसका निर्णय नगर निगम को ही करना होता है। 15 साल बाद बस शेल्टर पर मालिकाना हक नगर निगम का हो जाता है।

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