आई स्पेशल

-बंदरों की आबादी कंट्रोल करने के लिए छेड़ी जाएगी मुहिम

-प्रोजेक्ट है तैयार, दो महीने के भीतर काम हो सकता है शुरू

-इससे पहले चलाया गया था नसबंदी कार्यक्रम

दिलीप बिष्ट

देहरादून

उत्तराखंड में बंदरों ने आम लोगों का जीना मुहाल कर रखा है। पहाड़ से लेकर राजधानी देहरादून तक बस यही शिकायत रहती है कि आखिर बंदरों से सरकार कब छुटकारा दिलाएगी। लेकिन अब सरकार ने बंदरों की आबादी कंट्रोल करने के लिए एक कारगर योजना बनाई है। इस योजना के तहत अब वन महकमा फीमेल बंदरों को गर्भनिरोधक दवाएं खिलाएगा। इसके लिए वन विभाग और वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट मिलकर काम कर रहे हैं। बंदरों की आबादी को कंट्रोल करने के लिए ये अपनी तरह का एक खास प्रोजेक्ट है और इसे वन विभाग के डीएसओ आकाश वर्मा ने बनाया है।

ट्रायल देहरादून से होगा

बंदरों को गर्भनिरोधक दिए जाने के इस स्पेशल प्रोजेक्ट पर काम दो महीने के अंदर शुरू होने की उम्मीद है और इसे देहरादून से ही शुरू किया जाएगा। सबसे पहले इसका ट्रायल होगा और इसके लिए दून को सबसे अव्वल माना जा रहा है। दरअसल दून में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट जंगल से ही सटा हुआ है और यहां बेतहाशा संख्या में बंदर भी हैं। राजाजी नेशनल पार्क दून से पूरी तरह सटा हुआ है। इसके अलावा राजाजी की चिडि़यापुर रेंज सबसे नजदीक है। ये वही रेंज है जहां बंदरों की नसबंदी के लिए सेंटर बनाया गया था। इसलिए इस पर ही सबसे पहले ट्रायल की बात कही जा रही है।

गर्भनिरोधक देना सबसे सस्ता तरीका

वन्य विभाग और वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों के मुताबिक बंदरों की आबादी को कंट्रोल करने के लिए गर्भनिरोधक दवाइयां देना सबसे सस्ता तरीका है। इससे बंदर जैसे जंगली जानवर को कोई नुकसान भी नहीं होगा और ये सबसे ज्यादा मानवतावादी तरीका भी है।

बॉक्स

देश में पहली तरह का प्रोजेक्ट

जंगली जानवरों की आबादी को कंट्रोल करने के लिए गर्भनिरोधक दवा खिलाए जाने का ये देश में अपनी तरह का पहला प्रोजेक्ट है। बस, अब वन विभाग और वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट से साइंटिस्ट्स को ये प्लान करना है कि किस मात्रा में और कैसे ये दवा बंदरों को खिलाई जाएगी। डब्ल्यूआईआई में मानव-पशु संघर्ष (वानर) प्रोजेक्ट के प्रभारी और रिसर्चर डॉ। कमर कुरैशी के मुताबिक बंदरों की नसबंदी, इंट्रायूट्रीन डिवाइस और वैक्सीन जैसे तरीकों पर भी विचार किया गया है।

वर्जन

ये बंदरों की आबादी को रोकने का सबसे सस्ता और सबसे कारगर तरीका है। साथ ही ये तरीका मानवतावादी भी है। दरअसल इसके लिए बंदरों को जबरन पकड़ना और कैद नहीं करना पड़ेगा। मादा बंदरों को हम भोज्य पदार्थो के साथ दवाई खिलाएंगे।

आकाश वर्मा, डीएसओ, प्रोजेक्ट तैयार करने वाले

वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट प्रोजेक्ट पर लंबे वक्त से काम कर रहा है। ये अपनी तरह का पहला प्रोजेक्ट है। जिस तरह की गर्भनिरोधक दवाएं इंसानों के लिए इस्तेमाल की जाती हैं ठीक उसी तरीके से बंदरों पर भी इसका प्रयोग करेंगे।

डॉ। कमर कुरैशी, रिसर्चर, डब्लूआईआई