देहरादून (ब्यूरो)। पिछले तीन दिनों से दून भी धुंध के आगोश में है। दून सिटी से मिड हिमालय रेंज और शिवालिक की जो पहाडिय़ां साफ देखी जा सकती थी, वे इन दिनों धुंध के गुबार में छिप गई हैं। सुबह और शाम धुएं की परत धुंध के रूप में देखी जा रही है। हालांकि दिन में इस धुंध का असर कुछ कम दिखाई देता है। लेकिन प्रदूषण के आंकड़े बता रहे हैं कि प्रदूषण का स्तर दिन में भी कम नहीं है। डॉक्टर्स के अनुसार यह स्थित स्वास्थ्य के लिए बेहद खराब है। बच्चों, बुजुर्गों और सांस संबंधी बीमारी से ग्रस्त लोगों पर इसका ज्यादा असर पडऩे की संभावना है।

एयर पॉल्यूशन : एक नजर
डेट पीएम-2.5 पीएम-10 एक्यूआई
28 अक्टू। 163 283 213
29 अक्टू। 161 256 216
30 अक्टू। 155 259 208
31 अक्टू। 190 300 239
01 नव। 181 298 234
02 नव। 173 275 223
03 नव। 266 356 315
4 नव। 241 368 290
नोट : पीएम-10 व पीएम 2.5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर में

सैटरडे को ऐसा रहा एक्यूआई
टाइम एक्यूआई
00:00 बजे 223
03:00 बजे 228
05:00 बजे 224
08:00 बजे 220
10:00 बजे 212
12:00 बजे 234
14:00 बजे 203
16:00 बजे 194

3 नवंबर रहा सबसे खतरनाक
हालांकि दून में दिवाली के आसपास से ही पॉल्यूशन का स्तर लगातार बढऩे लगा था। हालांकि इस वर्ष दिवाली की रात पॉल्यूशन का स्तर पिछले वर्ष के मुकाबले कुछ कम दर्ज किया गया। लेकिन हाल के दिनों में एयर क्वालिटी इंडेक्स, पीएम-10 और पीएम-2.5 की मात्रा में लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की जाती रही। हालांकि बीच में कुछ उतार-चढ़ाव भी दर्ज किया गया। हाल के दिनों से सबसे बुरी स्थिति 3 नवंबर को दर्ज की गई। उस दिन एक्यूआई का स्तर सबसे ज्यादा 315 था। पीएम-10 की मात्रा 356 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर और पीएम-2.5 की मात्रा 266 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज की गई।

कार्बल फुटप्रिंट कम करने की जरूरत
उत्तराखंड में पॉल्यूशन पर नजर रखने वाले भूवैज्ञानिक डॉ। एसपी सती कहते हैं कि दून में कार्बन फुटप्रिंट का जेनरेशन की रफ्तार लगातार बढ़ रही है। इस पर काबू पाने की जरूरत है। सबसे ज्यादा कार्बन वाहनों से जेनरेट होता है, इसलिए पेट्रोल और डीजल के बजाय बिजली से चलने वाले वाहनों की जरूरत है। यदि ऐसा नहीं किया गया है तो स्थितियां बेहद खराब हो जाएंगी।

स्वास्थ्य के लिए हानिकारक
चाइल्स स्पेशलिस्ट डॉ। जगदीश देवशाली के अनुसार फिलहाल हवा में जो धूल मिट्टी है, उसे हम साफ-साफ देख पा रहे हैं। इससे यह सांस के जरिये लगातार शरीर में पहुंच रहा है। बेहतर हो कि इस मौसम में लोग मास्क इस्तेमाल करें। बच्चों को खुली हवा से बचाने की कोशिश करें। बुजुर्गों और लंबी बीमारी के मरीजों के लिए एक स्थिति बेहद मुश्किल वाली है।