को-ऑपरेटिव बैंकों का पैसा फंसा है शासन में

-बैंकों ने अपनी जेब से दिया है लोगों को सस्ता लोन, सब्सिडी का इंतजार

-सब्सिडी न मिलने के कारण सस्ती लोन योजनाएं चल रही रस्म अदायगी को

DEHRADUN: वाह-वाही लूटने के लिए सरकार ने सहकारी बैंकों में किसानों और अन्य वर्गो को कम ब्याज पर लोन देने के लिए योजनाएं तो शुरू कर दीं, लेकिन अब सब्सिडी देने के नाम पर बंगलें झांक रही है। बैंकों की जब तक साम‌र्थ्य थी, तब तक उन्होंने अपने पल्ले से लोन दिया, लेकिन अब वह इन योजनाओं से किनारा करने लगे हैं। सरकार पर बैंकों की करीब 70 करोड़ की देनदारी बनी हुई है। बैंक लगातार इसके लिए शासन से मांग कर रहे हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं हो रही है।

एनडी के जमाने की है पहल

एनडी तिवारी के शासनकाल में सहकारी बैंकों में कम ब्याज पर लोन देने के लिए कई योजनाएं शुरू की गई थीं। ज्यादातर योजनाएं किसानों से संबंधित थीं, जिसमें उन्हें चार से पांच प्रतिशत की ब्याज दर से लोन उपलब्ध कराया गया। बैंक की ब्याज दर उस वक्त इससे लगभग दोगुनी थी। आज की डेट में भी क्क् से क्ख् फीसदी है। सरकार ने तय किया था कि चार से पांच फीसदी ब्याज दर पर लोन उपलब्ध कराने पर बाकी की क्षतिपूर्ति सहकारिता विभाग करेगा।

पहले ठीक रही चाल, अब बिगड़ गई

चूंकि एनडी तिवारी सरकार ने ये पहल की थी, इसलिए शुरुआत में यह योजना सही चली। इसके बाद, बीजेपी सरकार में भी योजनाओं को बंद नहीं किया गया, लेकिन सब्सिडी देने की रफ्तार धीमी होती चली गई। आज की डेट में हाल ये है कि उत्तराखंड में मौजूद दस सहकारी बैंकों का करीब 70 करोड़ रुपये शासन में फंसा हुआ है। बैंकों ने सीधे तौर पर योजनाएं बंद तो नहीं की हैं, लेकिन अब वह इसमें लोन नहीं दे रहे हैं।

-सहकारी बैंकों की सब्सिडी शासन स्तर पर रूकी जरूर है, लेकिन योजनाएं बंद नहीं हैं। पूरी कोशिश की जा रही है कि बैंकों को उनकी रूकी हुई सब्सिडी मिल जाए। सरकार का इस संबंध में पॉजिटिव नजरिया है।

-प्रमोद कुमार सिंह, अध्यक्ष, उत्तराखंड राज्य सहकारी संघ।