व्यवस्था ही बीमार तो कैसे हो इलाज

- सरकारी हॉस्पिटल्स में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर करोड़ों खर्च, नहीं जुटा पा रहे स्टाफ
- स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स से लेकर टेक्नीशियंस के अधिकांश पद हैैं खाली
- मशीनें हैैं, ऑपरेटर नहीं, रेफरल सेंटर बने सरकारी हॉस्पिटल्स

देहरादून, 31 मई (ब्यूरो)।
सरकार पब्लिक को सस्ती व अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर देती है, लेकिन मामूली सैलरी वाला कॉन्ट्रेक्चुअल स्टाफ तक नहीं जुटा पा रही है। हाल यह है कि सरकारी अस्पतालों में इन्फ्रास्ट्रक्चर पूरा है, हाईटेक मशीनें भी हैैं, लेकिन उन्हें ऑपरेट करने वाला स्टाफ ही नहीं है। टेक्निकल स्टाफ के साथ ही स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स का टोटा हर सरकारी अस्पताल में है और सरकार तमाम दावों के बाद भी मेडिकल स्टाफ को मैनेज नहीं कर पा रही है। सस्ते इलाज के दावे महज हवाई साबित हो रहे हैैं और पब्लिक को प्राइवेट हॉस्पिटल्स में ही महंगा इलाज कराना पड़ रहा है।

ये स्पेशलिस्ट्स नहीं
गायनोकोलॉजिस्ट
रेडियोलॉजिस्ट
फिजिशियन
एनस्थेटिस्ट
सर्जन
पीडियाट्रीशियन
कार्डियोलॉजिस्ट
न्यूरोलॉजिस्ट
ऑन्कोलॉजिस्ट
गेस्ट्रोलॉजिस्ट
ऑर्थोपेडिक सर्जन

612 डॉक्टर्स की है डिमांड
स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक पूरे प्रदेश में 612 डॉक्टर्स की डिमांड है। प्रदेश में डॉक्टर्स की 1200 पोस्ट्स हैैं। जबकि, 612 डॉक्टर्स की डिमांड शासन को भेजी गई है। डिमांड कई बार भेजी जा चुकी है लेकिन डॉक्टर्स नहीं मिल रहे।

यू-कोड वी पे के तहत मिलेंगे डॉक्टर
स्वास्थ्य विभाग की ओर से लगातार डिमांड के बाद भी डॉक्टर के न पहुंचने के कारण यू-कोड वी पे के तहत हर माह के तीसरे मंगलवार को भर्ती की जा रही है। बीते मंगलवार को कई डॉक्टर्स के इसमें इन्टरव्यू हुए हैं। जिसमें स्वास्थ्य विभाग को उम्मीद है कि इस बार कुछ स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स मिलेंगे। जिसके बाद इन्हें हॉस्पिटल के लिए रवाना किया जाएगा। हालांकि इंटरव्यू के रिजल्ट्स के लिए अभी इंतजार करना होगा।

दून के इन अस्पतालों में नहीं स्पेशलिस्ट्स
- दून मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल
- कोरोनेशन हॉस्पिटल
- गांधी शताब्दी हॉस्पिटल
- रायपुर सीएचसी
- प्रेमनगर स्थित कंबाइंड हॉस्पिटल

रेडियोलॉजिस्ट न होने से दिक्कत
दून के सबसे बड़े दून मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में अब तक करोड़ों रुपये की मशीनेंं खरीदी जा चुकी हैैं। लेकिन, उसके संचालन के लिए स्टाफ की कमी है। दून हॉस्पिटल में लेटेस्ट मेमोग्राफी मशीन से लेकर कैथ लैब तक मौजूद है। लेकिन, रेडियोलॉजिस्ट की शॉर्टेज के कारण इनका लाभ पेशेंट्स को नहीं मिल पा रहा है। पेशेंट्स को लंबी डेट दे दी जाती है, लेकिन पेशेंट इतना इंतजार नहीं कर पाता और प्राइवेट लैब में ज्यादा खर्चा करने के लिए मजबूर होता है।

प्राइवेट हाथों में सरकारी व्यवस्था
दून मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल, कोरोनेशन हॉस्पिटल में अल्ट्रासाउंड से लेकर पैथोलॉजी की सुविधा पीपीपीई मोड पर या फिर प्राइवेट के सहारे चल रही है। अल्ट्रासाउंड पीपीपीई मोड पर हो रहे हैैं। जबकि, मशीन सरकारी है जिसकी कीमत 40 से 50 लाख रुपये बताई जा रही है। ऐसे में स्टाफ प्राइवेट सेक्टर से लेना पड़ रहा है। पैथोलॉजी लैब भी यहां प्राइवेट सिस्टम से चलाई जा रही है।

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जल्द ही डॉक्टर्स की व्यवस्था की जाएगी। हाल ही में इसके लिए इंटरव्यू प्रॉसेस पूरी की गई है, जिसका रिजल्ट आते ही डॉक्टर्स को तैनाती दी जाएगी। कई बार डॉक्टर नियुक्ति हो जाते हैैं, लेकिन वे ज्वाइन ही नहीं करते। इसके लिए भी व्यवस्था में बदलाव किए जा रहे हैैं।
डॉ। विनिता शाह, डीजी हेल्थ उत्तराखंड
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