-बागियों पर हाईकोर्ट में अटका फैसला

-स्टिंग मामले में अदालत ने नहीं की सुनवाई

-लेखानुदान अध्यादेश पर केंद्र को अदालत का नोटिस

देहरादून

राज्य और केंद्र की सियासत रोज नए नए मोड़ ले रही है। सड़क और सदन की लड़ाई अदालत में जाकर अब अधर में लटक गई है। सबकी नजरें अदालत पर ही लगी हैं। कांग्रेस, बीजेपी और बागी सब के सब अदालत के फैसलों का इंतजार कर रहे हैं। नैनीताल हाईकोर्ट में रोज नई नई याचिकाएं लग रही हैं और सुनवाई या फैसलों के लिए नई नई तारीखें मिल रही हैं।

बजट का क्या होगा?

पहले राष्ट्रपति शासन और अब विनियोग विधयेक कांग्रेस के लिए केंद्र पर हमला करने का बड़ा हथियार बना है। निवर्तमान सीएम हरीश रावत और इंदिरा हृदयेश ने राज्य के लिए केंद्र के लेखानुदान अध्यादेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस पर अदालत ने केंद्र से जवाब तलब किया है और 5 अप्रैल तक जवाब देने को कहा है।

दो घंटे तक चली बहस

केंद्र सरकार द्वारा उत्तराखंड के लिए लाए जाने वाले लेखानुदान अध्यादेश को चुनौती देने वाली हरीश रावत की याचिका पर करीब दो घंटे बहस हुई। हरीश रावत की तरफ से वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने पैरवी की। सुनवाई मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने की। खंडपीठ ने केंद्र सरकार से पांच अप्रैल तक प्रति शपथ पत्र दाखिल करने के आदेश पारित किए, अगली सुनवाई 6 अप्रैल को होगी। अदालत ने अध्यादेश पर स्थगनादेश देने संबंधी प्रार्थना पत्र पर भी केंद्र को नोटिस भेजा है। इस मामले में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के वकील को भी 5 अप्रैल तक जवाब दाखिल करने को कहा गया है।

प्वाइंटर

हरीश रावत की तरफ से दलील

-18 मार्च को विधानसभा में विनियोग विधेयक ध्वनिमत से पारित हो चुका था

-विधानसभा अध्यक्ष की रिपोर्ट में इसकी पुष्टि, लेकिन राज्यपाल ने विधेयक को पारित न मानते हुए रिपोर्ट भेजी

- राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत वित्त विधेयक को नहीं लौटा सकते

- केंद्र संविधान के अनुच्छेद 239 के अंतर्गत राज्य से इस बारे में सलाह ले सकता है, लेकिन केंद्र ने ऐसा नहीं किया

-अगर इसमें कोर्ट हस्तक्षेप नहीं करेगा केंद्र संवैधानिक शक्तियों का दुरुपयोग कर दूसरे राज्यों में भी ऐसा कर सकता है

-सदन की कार्रवाई के लिए विधानसभा अध्यक्ष सर्वोच्च हैं, गवर्नर विधानसभा की कार्रवाई में दखल नहीं दे सकते

केंद्र की तरफ से दलील

-असिस्टेंट सॅलिसिटर जनरल राकेश थपलियाल ने कहा कि विधान सभा में विपक्ष ने विनियोग विधेयक पर मत विभाजन की मांग की गई थी

-मतविभाजन की मांग नहीं मानी गई, विधानसभा अध्यक्ष ने विधेयक को पारित मान लिया

-संवैधानिक संकट से पैदा होता है वित्तीय संकट

-संवैधानिक संकट को देखते हुए केंद्र सरकार ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया और वित्तीय संकट पैदा न हो इसलिए लेखानुदान के लिए अध्यादेश लाया गया

अटकी हैं बागियों की सांसें

नैनीताल हाईकोर्ट ने कांग्रेस के बागी विधायकों की याचिका पर सुनवाई टाल दी है। इस मामले पर फैसला अब 11 अप्रैल को होगा। विधानसभा अध्यक्ष द्वारा 9 बागी विधायकों की सदस्यता खत्म करने के खिलाफ यह याचिका दाखिल की गई है। शुक्रवार को यानि 1 अप्रैल को इस पर सुनवाई मुकर्रर की गई थी लेकिन कोर्ट ने इसे टाल दिया। यह मामले न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की एकल पीठ में है।

बागियों का महामंथन

जिस दिन से कांग्रेस के 9 बागी दिल्ली से देहरादून पहुंचे हैं तब से ही महामंथन पर लगे हैं। पहले उमेश शर्मा काऊ के घर पर बैठकों का दौर चला, फिर पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के घर डेरा जमा और शुक्रवार को हरक सिंह रावत के घर महामंथन हुआ, लेकिन नतीजा सिफर। हाईकोर्ट में मामला लटका होने से इनके फैसले भी लटक गए हैं। न तो वे दूसरी पार्टी ज्वाइन कर पा रहे हैं और न ही अपना फ्रंट बना पा रहे हैं। कांग्रेस नेतृत्व साफ कर चुका है कि बागियों की घरवापसी कुछ को छोड़कर नामुमकिन है वहीं बीजेपी ने भी साफ कर दिया है कि इन्होंने न तो अभी तक कांग्रेस छोड़ी है और न ही बीजेपी की सदस्यता ली है।

स्टिंग में ऐसा क्या?

सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के कथित स्टिंग ऑपरेशन की सीडी की जांच के संबंध में दाखिल जनहित याचिका पर भी हाईकोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि इस सीडी में ऐसा कुछ नहीं है जिस पर त्वरित सुनवाई की जाए। कोर्ट ने यहां तक कहा कि यह याचिका राजनीति से प्रेरित लगती है। याचिका में सीडी की जांच एसआईटी या सीबीआई से कराने की मांग की गई है।