देहरादून (ब्यूरो)। जोशीमठ के लोगों का कहना है कि शहर के कुछ क्षेत्रों में 2021 के अक्टूबर से दरारें आ रही हैं। इस बारे में प्रशासन को सूचित भी किया गया, लेकिन कहीं से कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस बीच पुरानी दरारें कुछ ज्यादा चौड़ी होती गई और नई दरारें नजर आने लगी। भूवैज्ञानिकों की टीम ने जांच भी की और सरकार को रिपोर्ट भी सौंपी लेकिन कुछ नहीं हुआ। लोग धरने प्रदर्शन करते रहे, लेकिन शासन-प्रशासन ने लोगों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया।

2 जनवरी की रात हिली थी धरती
जोशीमठ के सुनील में रहने वाले प्रकाश नेगी कहते हैं कि 2 और तीन जनवरी की दरम्यानी रात को डेढ़ से दो बजे के करीब कुछ जरूर हुआ था। उन्होंने कुछ हलचल महसूस की थी, लगा कि भूकंप का झटका है। सुबह उठते ही जोशीमठ में कई जगहों पर दरारें पडऩे की सूचना मिली। मारवाड़ी के एक होटल में काम करने वाले वीरेन्द्र सती के अनुसार उस रात डेढ़ बजे के करीब कुछ हलचल और दबी सी आवाज वाला एक धमाका हुआ था। सुबह हमारे होटल के कुछ दूर सड़क धंसी हुई थी और गंदले पानी की एक धारा बह रही थी।

लोग टीबीएम को मान रहे वजह
इस धंसाव की वजह ज्यादातर लोग एक टनल बोरिंग मशीन को मान रहे हैं, जो तपोवन-विष्णुगाड परियोजना के लिए बनाई जा रही मेन टनल में 2016 से फंसी हुई है। बताया जाता है कि टीबीएम ने हेलंग से टनल बनाने का काम शुरू किया था। करीब 3 किमी आगे जाकर टीबीएम फंस गई थी। जहां यह टीबीएम फंसी थी, वहां से 2009 से अब तक लगातार 200 लीटर प्रति सेकेंड पानी आ रहा है। बाद में यह टीबीएम आगे बढ़ी, लेकिन 2012 में फिर फंस गई। उसके बाद 2016 में फंस गई और अब तक फंसी हुई है। माना जा रहा है कि इस टीबीएम को निकालने के लिए टनल में बड़े विस्फोट किये जा रहे हैं।

तो परसारी के नीचे है टीबीएम
अब तक तपोवन-विष्णुगाड हाइड्रो प्रोजेक्ट बनाने वाली कंपनी एनटीपीसी ने यह साफ नहीं किया है कि प्रोजेक्ट की मेन टनल कहां तक बनी है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने एक ऐसे व्यक्ति ने बात की, जो इसी टनल में ड्यूटी देता है। नाम न छापने की शर्त पर उक्त व्यक्ति ने बताया कि वे हेलंग से टनल में घुसते हैं। यहां से उन्हें एक लोको ट्रेन से ले जाया जाता है। वे इस लोको ट्रेन उन्हें 6 किमी आगे छोड़ती है। यह लगभग जोशीमठ के आगे परसारी गांव से नीचे धरती की सतह से डेढ़ किमी गहराई में है। इसी जगह टीबीएम फंसी हुई है। इस बात को सही माने तो प्रोजेक्ट की मेन टनल जोशीमठ के नीचे बनाई जा चुकी है और 3 किमी टनल बनानी बाकी रह गई है।