वारंट जारी, पुलिस गई दबिश देने

13 साल पुराने मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद पुलिस उनके घर दबिश देने गई. केस से अनजान कैप्टन साहब को ये खबर लगी तो बड़े आहत हुए. अपने ऊपर लगे दाग को धोने के लिए मंगलवार को डीएम से मिलने भी गए, लेकिन मुलाकात न हो सकी. स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों में जुटे देश के लिए यह मामला झटका देने वाला है.   

कैप्टन अब्बास अली के खिलाफ थाने में रिपोर्ट

कैप्टन अब्बास अली, दिवंगत पूर्व विधायक अब्दुल खालिक, तैमूर समेत कुल छह लोगों के खिलाफ सन 2000 में जामिया उर्दू के खिलाफ यहां के सिविल लाइंस थाने में रिपोर्ट लिखाई गई थी. आरोपियों पर बलवा, डकैती, फायरिंग, हत्या के प्रयास, जान से मारने की धमकी जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे. रिपोर्ट में सिर्फ ‘कैप्टन’ का ही जिक्र था, सो पुलिस भी असमंजस में रही. बाद में, विवेचक ने ‘कैप्टन’ को ‘कैप्टन अब्बास अली’ मान लिया. मामला उछला तो सरकार ने सीबीसीआइडी, आगरा को जांच दी गई. जांच अधिकारी ने डकैती (395) के आरोप को झूठा पाया था. घटना के वक्त अब्दुल खालिक जनता दल के विधायक थे और कैप्टन साहब भी उसी पार्टी से जुड़े थे.

केस वापस, मुसीबत बरकरार

बात 17 फरवरी, 2004 की है. तब, उप्र के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे. सपा के राष्ट्रीय महासचिव और सांसद रामजी लाल सुमन ने 17 फरवरी को मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कैप्टन अब्बास अली के खिलाफ केस वापसी की मांग की. दलील दी कि कैप्टन के खिलाफ केस झूठा, मनगढ़ंत और राजनैतिक द्वेष-भावना से प्रेरित है. कैप्टन अब्बास के अनुसार प्रदेश सरकार ने तब डीएम से केस वापसी पर रिपोर्ट तलब की थी. यहां से रिपोर्ट भेजी भी गई. कैप्टन भी केस वापस होने को लेकर निश्चिंत हो गए. अब जब वारंट आया, तो वह परेशान हो उठे.

Report by: Santosh Sharma (Dainik Jagran)

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