कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। भारत को एक बार नहीं बल्कि तीन-तीन बार ओलंपिक में मेडल दिलाने वाले महान हॉकी प्लेयर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1908 को इलाहाबाद में हुआ था। मेजर ध्यानचंद की बर्थ एनिवर्सरी पर देश में नेशनल स्पोर्ट्स डे मनाया जाता है। आज भले ही ध्यानचंद को देश-दुनिया में इतना सम्मान दिया जाता है, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था कि हॉकी के जादूगर माने जाने वाले इस खिलाड़ी को भी मैच देखने के लिए लाइन में लगना पड़ा था। इस घटना का जिक्र ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट और पूर्व भारतीय हॉकी टीम के कप्तान गुरबख्श सिंह ने अपनी ऑटोबॉयोग्राफी 'मॉय गोल्डन डेज' में है।

लाइन में लगकर खरीदी थी टिकट

पूर्व कप्तान गुरबख्श लिखते हैं कि मामला तब का है जब 1962 में ध्यानचंद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स (पटियाला) के कोच हुआ करते थे। उनकी टीम एक टूर्नामेंट खेलने अहमदाबाद आई थी उनके साथ ध्यानचंद भी थे। एक मैच के दौरान ध्यानचंद जब स्टेडियम जा रहे थे तो एक पुलिसवाले ने उन्हें गेट पर रोक दिया और लाइन में लगने के लिए बोला। मेजर ने बिना कुछ सोचे इंट्री पाने के लिए लाइन में लग गए और उन्होंने टिकट खरीदा। गुरबख्श बताते हैं यह काफी हैरान करने वाला था मगर 60-70 के दशक में खेल में इतनी राजनीति होने लगी थी कि उन्होंने ध्यानचंद जैसे खिलाड़ी को भी नहीं बख्शा।

1936 ओलंपिक में दिखाया जादू

मेजर ध्यानचंद हॉकी के कितने बड़े खिलाड़ी थे इस बात का अंदाजा आप 1936 के बर्लिन ओलंपिक की वह मशहूर घटना से लगा सकते हैं। 1936 के ओलंपिक में मेजर ध्यानचंद का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से लिख गया था। 1936 के ओलंपिक जर्मन तानाशाह एडॉल्फ हिटलर के शहर बर्लिन में आयोजित हुये थे। हिटलर की टीम को उसके घर में हराना आसान न था, लेकिन मेजर ध्यानचंद की अगुवाई वाली इंडियन टीम ने बिना किसी डर के लगातार जीत दर्ज करते हुये इतिहास रच दिया था।

नंगे पैरों से रौंदा था जर्मनी को

बर्लिन में आयोजित ओलंपिक के खिताबी मैच में इंडिया का सामना जर्मनी से था। मैच शुरु होते ही भारतीय टीम ने गोल करना शुरु कर दिया। हॉफ टाइम तक नौबत यह आ गयी थी कि इंडियन टीम ने मेजबान के पाले में 2 गोल ठोक दिये थे। दरअसल बर्लिन में मैच से पहली वाली रात में खूब जोरों से बारिश हुई थी, जिसकी वजह से खेल का मैदान गीला हो गया था। इसके कारण जब भारतीय टीम मैदान पर उतरी थी तो उनके पास उस समय स्पाइक(कांटे) वाले जूते नहीं थे सपाट सोल वाले जूते मैदान पर काफी फिसल रहे थे, जिसकी वजह से भारतीय खिलाड़यों को खेलने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था। इस मुश्किल समस्या का समाधान निकालते हुए टीम के कैप्टन ध्यानचंद ने जूते निकालकर नंगे पैरों से खेलना शुरु कर दिया। इसके बाद इंडियन टीम ने जल्द ही लीड मजबूत कर ली और जीत की तरफ कदम बढ़ा दिये। जर्मनी को हारता देख दुनिया का सबसे बड़ा तानाशाह हिटलर मैदान छोड़ कर चला गया। इसके बाद ध्यानचंद ने अपने बेहतरीन खेल की बदौलत जर्मनी को 8-1 से रौंदकर गोल्ड मेडल पर कब्जा किया।

मैच के बाद हिटलर का आया था बुलावा

जर्मनी से मैच जीतने के बाद टीम इंडिया खुशी से झूम रही थी। इसके बाद मैच के अगले दिन दुनिया का सबसे बड़े तानाशाह हिटलर ने मैच के अगले दिन इंडियन कैप्टन ध्यानचंद को मिलने के बुलाया। हिटलर का बुलावा पाकर ध्यानचंद थोड़ा परेशान हो गए क्योंकि इससे पहले उन्होनें हिटलर की क्रूरता के किस्से सुन रखे थे। इसके बाद ध्यानचंद डरते-डरते हिटलर से मिलने पहुंच गये। इस मीटिंग के दौरान लंच करते हुये हिटलर ने ध्यानचंद से सवाल किया कि वे इंडिया में क्या करते हैं। तब ध्यानचंद ने जवाब बताया कि वे भारतीय सेना में मेजर हैं। इस बात को सुनकर हिटलर बहुत खुश हुए और उन्होंने ध्यानचंद को जर्मनी सेना में जुड़ने का प्रस्ताव रखा। हिटलर के मुंह से ऐसी बाते सुनकर ध्यानचंद आश्चर्यचकित हो गए। इसके बाद मेजर ने हिटलर के प्रस्ताव को ठुकरा दिय। इस किस्से से साफ पता चलता है कि हिटलर ने यह प्रस्ताव ध्यानचंद के खेल से भयभीत होकर दिया था।