इतनी चमक-दमक के बीच यह यकीन करना आसान नहीं था कि एक दशक से ज़्यादा समय में कार उद्योग अपने सबसे ख़राब वक़्त से गुज़र रहा है.

पिछले साल कारों की बिक्री 10% गिरी है. भारतीय वाहन निर्माता संस्था दि सोसाएटी ऑफ़ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफ़ैक्चरर्स का अनुमान है कि इस साल यह और गिर सकती है.

एशिया में भारत में मुद्रास्फ़ीति की दर सबसे ज़्यादा है और अर्थव्यवस्था की विकास दर 5% से भी कम है.

महंगा कर्ज़

ग्राहक शोरूम तक मुश्किल से आ रहे हैं. पिछले कुछ साल में क़र्ज़ भी महंगे हो गए हैं.

भारत में दो-तिहाई कारें लोन पर ख़रीदी जाती हैं. महंगे क़र्ज़ का मतलब है कि ख़रीद के फ़ैसले टाले जा रहे हैं.

लेकिन फिर भी भारतीय ऑटो शो में ज़्यादातर निर्माता  भारतीय बाज़ार के दीर्घकालिक संभावना पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.

ऑटो एक्सपोः कहां है मंदी?

इस साल ऑटो एक्सपो दिल्ली के प्रगति मैदान के बजाय उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में नई और ज़्यादा बड़ी जगह पर आयोजित हो रहा है.

शुक्रवार को यह एक्सपो आम लोगों के लिए खुलेगा जिसमें रोज़ करीब 1,00,000 लोगों के आने का अनुमान है.

छोटे और बड़े सभी कार निर्माताओं को उम्मीद है कि यह एक्सपो ग्राहकों को फिर से ख़रीदारी शुरू करने को प्रेरित करेगा.

तो मिज़ाज कैसा है?

टाटा मोटर्सः नैनो पर ध्यान

ऑटो एक्सपोः कहां है मंदी?

टाटा मोटर्स ने चार साल बाद अपनी नई कारें उतारी हैं. कंपनी ने हैचबैक बोल्ट और सिडान ज़ेस्ट से पर्दा उठाया.

भारत के सबसे बड़े कार निर्माताओं में से एक टाटा की बिक्री में पिछले साल एक तिहाई से ज़्यादा की कमी आई है- यह उसके किसी भी भारतीय प्रतिद्वंद्वी से ज़्यादा है.

कंपनी को इसकी उम्मीद नहीं थी.

इसकी बेहद सस्ती छोटी कार नैनो को कंपनी का सबसे प्रमुख उत्पाद होना चाहिए था. इसे कार उद्योग की सूरत बदल देनी थी. लेकिन 2009 में लाँच के बाद से क़रीब सवा लाख रुपए की नैनो ने निराश ही किया है.

कंपनी अब अपनी बिक्री की रणनीति को बदलना चाहती है.

ऑटो एक्सपोः कहां है मंदी?

टाटा मोटर्स में वरिष्ठ उपाध्यक्ष, अंकुश अरोड़ा, कहते हैं, "अगर आप बाज़ार और ख़रीदारों की संख्या को देखें तो आप पाएंगे कि युवा ख़रीदार बढ़ रहे हैं और वह सस्ती कार नहीं ढूंढ रहे. वे ऐसी चीज़ ढूंढ रहे हैं जिसकी क़ीमत सही हो और जो उनकी पहचान को समृद्ध करे. इसलिए हम नैनो को नए ढंग से प्रस्तुत कर रहे हैं- उन युवा ख़रीदारों को लक्ष्य बनाकर."

टाटा मोटर्स पिछले कुछ समय से दिक़्क़त में है और जिस व्यक्ति, मैनेजिंग डायरेक्टर कार्ल स्लिम, को कंपनी को पुनर्स्थापित करना था, उसकी हाल ही में बैंकॉक के एक होटल की 22वीं मंज़िल से गिरकर मौत हो गई.

वैसे ऑटो एक्सपो में कंपनी के अधिकारी इस बात को लेकर आश्वस्त दिखे कि स्लिम की मौत से कंपनी की बदलाव की योजनाओं पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा.

फ़ोर्डः बड़े पैमाने पर निवेश

ऑटो एक्सपोः कहां है मंदी?

लेकिन बाज़ार सबके लिए बुरा नहीं है. अमरीका की प्रमुख वाहन निर्माता फ़ोर्ड के पास महीनों के ऑर्डर पड़े हैं.

एक्सपो में अपनी वर्तमान छोटी गाड़ी का नया मॉडल और एक बिल्कुल नई मध्यम आकार की कार सिडान लाँच करते हुए कंपनी कहती है कि दुनिया में सफलता के लिए भारत बहुत महत्वपूर्ण है.

फ़ोर्ड मोटर्स के उपाध्यक्ष, इंजीनियरिंग, कुमार गल्होत्रा कहते हैं, "हम भारत में दो अरब डॉलर (क़रीब 124.74 अरब रुपए) निवेश करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. इनमें से आधे गुजरात के साणंद में हमारे नए प्लांट में लगाए जाएंगे, जो इस साल के अंत तक काम करने लगेगा. हम अगले साल की शुरुआत से कारें बनाना शुरू कर देंगे. इसलिए हमें बाज़ार में बहुत संभावनाएं दिखती हैं."

ऑटो एक्सपोः कहां है मंदी?

गल्होत्रा कहते हैं कि भारत में छोटी कारों की बिक्री 2013 के दस लाख से बढ़कर 2018 में बीस लाख तक हो जाएगी.

इसकी एक वजह यह भी है कि फ़ोर्ड भारत को अपना सबसे बड़ा निर्यात केंद्र बनाने पर विचार कर रहा है. अभी कंपनी भारत से 37 देशों को निर्यात करती है और उसका लक्ष्य आने वाले सालों में इसे बढ़ाकर 50 करना है.

मारुति- ग्रामीण सपना

ऑटो एक्सपोः कहां है मंदी?

भारत में बिकने वाली क़रीब दो गाड़ियों में से एक  मारुति होती है.

भारत की सबसे बड़ी वाहन निर्माता कंपनी का नया लक्ष्य है- ग्रामीण भारत.

दो नई कांसेप्ट कारों- एसएक्स4 एस- क्रॉस और सियाज़ को लॉंच करते हुए कंपनी के महाप्रबंधक और सीईओ केनिची अयुकावा ने कहा कि अच्छी ख़बर ग्रामीण इलाक़ों से ही मिलेगी.

ऑटो एक्सपोः कहां है मंदी?

"ग्रामीण इलाक़ों में हमारी बिक्री नियमित रूप से बढ़ रही है. गांव में लोगों के पास पैसा है और वह अच्छी कारें चाहते हैं. भारत में क़रीब 1,00,000 गांव हैं और हम उन तक पहुंचना चाहते हैं. हम ग्रामीण बिक्री केंद्र बढ़ाएंगे और गांवों के ग्राहकों के लिए ज़्यादा मोबाइल सर्विस नेटवर्क बनाएंगे."

ग्रामीण इलाक़ों में 1,300 डीलरशिप के साथ कंपनी अब भी भारत में सबसे आगे है. छह साल पहले कंपनी की बिक्री का सिर्फ़ 3% ही ग्रामीण इलाक़ों से आता है और अब यह 30% है.

ऑडीः बिक रही है विलासिता

ऑटो एक्सपोः कहां है मंदी?

जर्मनी की लग्ज़री कार निर्माता ऑडी ने एक्सपो में ए3 सिडान और इसका कैब्रियोलेट संस्करण उतारकर सबको चौंका दिया.

कंपनी ने 2013 में 10,000 गाड़ियां बेची थीं- जो भारत में किसी भी लग्ज़री कार वर्ग में सबसे ज़्यादा है.

चीन भले ही दुनिया का पहले नंबर का लग्ज़री कार बाज़ार हो लेकिन भारत भी तेज़ी से कार निर्माताओं के बीच पसंदीदा जगह के रूप में उभर रहा है.

एक अनुमान के मुताबिक़ भारत का लग्ज़री ऑटो बाज़ार पिछले साल के स्तर से 2020 तक चौगुना हो जाएगा जबकि वैश्विक बढ़ोत्तरी 40 फ़ीसदी की ही होगी.

ऑटो एक्सपोः कहां है मंदी?

भारतीय ग्राहक ऐसी गाड़ी पसंद करते हैं जिससे बेहतर क़ीमत वसूल हो. ऑडी ने कम दाम की गाड़ियां और फ़ाइनेंस स्कीम लागू कर बहुत से युवा ग्राहकों का ध्यान खींचा है.

कंपनी के पास बाज़ार का 32 फ़ीसदी हिस्सा है और इसकी योजना साल के अंत तक अपनी डीलरशिप को बढ़ाकर इसे 40 प्रतिशत तक करने की है.

ऑडी इंडिया के प्रमुख जो किंग कहते हैं कि काँसेप्ट लग्ज़री श्रेणी महत्वपूर्ण है और ए3 इसके लिए सबसे अच्छी रहेगी.

उन्होने कहा, "हमें लगता है कि साल के पहली छमाही में तो बाज़ार सुस्त ही रहा लेकिन साल के मध्य में चुनावों के बाद हमें उछाल नज़र आ रहा है. मैं उम्मीद करता हूं कि बाज़ार पिछले साल की तरह बढ़ेगा, कम से कम लग्ज़री श्रेणी में. हम अपने प्रदर्शन को बेहतर करने की उम्मीद कर रहे हैं."

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