-मेरठ में 1985 के बाद नहीं बन सका कांग्रेस का कोई विधायक

- कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था मेरठ

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Meerut । 27 साल से प्रदेश में कांग्रेस सत्ता से बाहर चल रही है और इस सूखे से निपटने के लिए इस बार कांग्रेस प्रशांत किशोर के फार्मूले को अपना रही है। प्रदेश में तो 27 साल से कांग्रेस को सूखे से जूझना पड़ रहा है। कुछ ऐसा ही हाल मेरठ का है। यहां पर 32 साल से हाथ को जनता का साथ नहीं मिल रहा। 1985 से लेकर अब तक मेरठ की किसी भी विधानसभा सीट पर कांग्रेस को जीत हासिल नहीं हुई है। कांग्रेस का पीके फार्मूला कितना कारगर साबित होता है। यह तो भविष्य के गर्भ में है।

कभी कांग्रेस का गढ़ था मेरठ

मेरठ कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। कांग्रेस के प्रमुख वोटरों की बात करें तो इसमें सबसे ज्यादा ब्राह्मण, वैश्य और दलित थे और इसके बाद मुस्लिम का साथ उसे हमेशा से मिलता रहा है। समय बदला और आज के समय से कांग्रेस को मेरठ में अपनी जमीन तलाशने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। 1985 से लेकर अब तक 32 साल गुजर चुके हैं, लेकिन कांग्रेस को जनता का साथ नहीं मिल रहा है।

1985 के बाद कोई नहीं जीता

विधानसभा वार गौर करें तो कैंट विधानसभा सीट पर 1985 में अजित सेठी कांग्रेस से विधायक रहे थे। 1985 में ही शहर विधानसभा सीट पर पं। जयनारायण शर्मा, 1985 में हरसरन सिंह हस्तिनापुर विधानसभा सीट से विधायक रहे और 1985 में नानक चंद सिवालखास सीट से विधायक रहे। इसके अलावा 1980 में किठौर विधानसभा सीट पर भीम सिंह और 1980 में सैय्यद जकीउद्दीन सरधना से कांग्रेस के विधायक रहे। 1985 के बाद से कांग्रेस का वनवास खत्म नहीं हो रहा है। 2012 के परिसीमन से पहले मेरठ में छह विधानसभा सीट थी, इन सभी सीटों पर 1985 के बाद से कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी थी। कांग्रेस के लिए इस बार का चुनाव भी आसान रहने वाला नहीं है, क्योंकि कांग्रेस अभी तक जनता तक अपनी बात पहुंचाने में नाकाम रही है।

वेस्ट यूपी में लगातार गिरा ग्राफ

नवंबर माह में राहुल गांधी द्वारा निकाली गई किसान यात्रा में भीड़ तो जुटी, लेकिन भीड़ कितनी वोटों में तब्दील होगी यह देखना दिलचस्प होगा। कांग्रेस की स्थिति वेस्ट यूपी में लगातार गिरती हुई दिख रही है और कांग्रेस जनता के बीच पहुंचने में नाकाम साबित हो रही है। इस बार प्रदेश की सत्ता में काबिज होने के लिए कांग्रेस पीके फार्मूला के तहत रणनीति बना रही है। पीके फॉमूले की बात करें तो पुराने कांग्रेसियों को यह फॉर्मूला पसंद नहीं हो रहा लेकिन युवा कांग्रेसियों में जोश दिख रहा है।

जिताऊ प्रत्याशी की तलाश

कांग्रेस इस बार मेरठ में सात विधानसभा सीट में एक कम से कम एक सीट तो जीतना चाहती है। इसके लिए कांग्रेस हर विधानसभा सीट पर जिताऊ प्रत्याशी की तलाश कर रही है। इस बार कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने के लिए कार्यकर्ताओं में जोश फूंकने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसे में अब देखना है कि क्या इस बार कांग्रेस अपना 32 वर्ष का सूखा समाप्त कर पाएगी या फिर स्थिति जस की तस रहेगी। हालांकि समाजवादी पार्टी के गठबंधन की अटकलें तो चल रही है। लेकिन अभी इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा।