किन लोगों को भरना चाहिए कौन सा फॉर्म :

1. नौकरी करने वाले लोगों के लिए :

सैलरीड क्लॉस के लोगों को ITR-1 सहज फॉर्म ही भरना है। यह फॉर्म उन लोगों कें लिए जरूरी होता है जिनकी सालाना इनकम 2.5 लाख रुपये से 50 लाख रुपये तक है और इनकम का स्रोत सैलरी या एक घर, या जमा पूंजी पर मिलने वाली ब्याज है।

2. संयुक्त हिंदू परिवार के लिए :

वहीं ITR-2 ऐसे व्यक्ति और संयुक्त हिंदू परिवार के लिए है जिनकी आय का साधन कोई बिजनेस या प्रोफेशन की बजाए प्रोपेराइटरशिप है।

3. प्रोपरेटरी बिजनेस :

ITR-3 फॉर्म ऐसे लोगों को भरना है जिनकी इनकम प्रोपरेटरी बिजनेस या किसी प्रोफेशन से हो रही है।

4. बिजनेस या प्रोफेशन :

फॉर्म ITR-4 उन लोगों को भरना है कि जिन्हें बिजनेस या प्रोफेशन से प्रिजंपटिव इनकम हो रही है।

5. फर्म या एसोसिएशन :

फॉर्म ITR-5 किसी फर्म, एलएलपी, एसोसिएशन ऑफ परसन, बॉडी ऑफ इंडीविजुअल, कोऑपरेटिव सोसाइटी और स्थानीय अथॉरिटी को भरना होता है।

6. बड़ी कंपनियों के लिए :

वहीं ITR-6 और ITR-7 बड़ी कंपनियों या कंपनी के समूहों के लिए होते हैं।

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क्या होता है गलत फॉर्म भरने पर

जरूरी फॉर्म के अलावा किसी और फॉर्म को भरकर रिटर्न फाइल करते हैं तो आईटी डिपार्टमेंट इनकम टैक्स ऐक्ट एक्ट 139(9) के तहत आपको नोटिस भी भेज सकता है। जिसमें आपको तय समय में दोबारा आईटीआर भरने के लिए कहा जा सकता है। यदि आप तय समय में रिवाइज्ड आईटीआर नहीं भर पाते हैं तो आपका आईटीआर रिटर्न फाइल नहीं माना जाएगा।

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इन बातों का भी रखें ध्यान :

ब्याज आय का खुलासा न करना:

हर करदाता के लिए टैक्स फाइलिंग के दौरान बीते वित्त वर्ष के दौरान प्राप्त हुईं सभी ब्याज आय का खुलासा करना जरूरी होता है। करदाता आमतौर पर सेविंग बैंक अकाउंट, फिक्स्ड डिपॉजिट और रेकरिंग डिपॉजिट पर मिलने वाली ब्याज आय का खुलासा करना भूल जाते हैं। इसका उल्लेख इनकम फ्रॉम अदर सोर्स में उल्लेख करना होता है। फिक्सड और रेकरिंग डिपॉजिट पर मिलने वाला ब्याज पूरी तरह से टैक्सेबल होता है, हालांकि सेविंग बैंक अकाउंट पर मिलने वाला ब्याज एक लिमिट तक छूट के दायरे में आता है, यह लिमिट सालाना 10,000 रुपये की है।

इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल न करना:

काफी सारे लोग आईटीआर रिटर्न दाखिल नहीं करते हैं। ये कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन्हें लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन की प्राप्ति होती है जो कि कर छूट के दायरे में आती है। हालांकि आपको बता दें कि कुछ लॉन्ग टर्म गेन ही छूट के दायरे में आते हैं। इसके बिना उनकी ग्रॉस टोटल इनकम टैक्स छूट सीमा से नीचे ही रहती है। हालांकि सेक्शन 139 (1) में किए गए संशोधन के मुताबिक अगर आपकी लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन की राशि और आपकी ग्रॉस टोटल इनकम का जोड़ मिनिमम एग्जेंप्शन लिमिट को पार कर जाता है तो आपको इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करना ही होगा।

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गलत टीडीएस अमाउंट का क्लेम करना:

अगर आप अपने आईटीआर में गलत टीडीएस अमाउंट को क्लेम करते हैं तो इस बात की संभावना तेज हो जाती है कि आयकर विभाग आपको इसके लिए नोटिस भेज दे। इसलिए बेहतर रहेगा कि आप ऐसा न करें।

नोटबंदी के दौरान जमा की जानकारी न देने पर:

केंद्र सरकार की ओर से बीते साल 8 नवंबर को लिए गए नोटबंदी के फैसले के बाद काफी सारे लोगों ने भारी मात्रा में नकदी बैंकों में जमा की है। आपको इस बार इसका भी उल्लेख करना होगा। ऐसा न करने की सूरत में विभाग आपको नोटिस भेज सकता है।

रिटर्न को वेरिफाई न कराने की सूरत में:

बतौर करदाता आपके लिए सिर्फ आईटीआर भरना ही काफी नहीं होता, आपके लिए इसे वेरिफाई करवाना भी जरूरी होता है। इसलिए अपने आईटीआर को वेरिफाई करवाना न भूलें। आईटीआर वेरिफिकेशन के बारे में विस्तार से जानकारी हमने अपनी पिछली खबर के माध्यम से दी है।

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