पटना (ब्यूरो)। वर्ष 2015 में पटना शहर के 117 स्थानों पर स्टील बस क्यू शेल्टर लगाए गए थे। मकसद था यहां की ट्रैफिक व्यवस्था में सभी बस शेल्टर लगने से ट्रैफिक सेंस में थोड़ा बदलाव होगा। बस केवल यहां से ही खुलेंगी और रुकेंगी । लेकिन ऐसा नहीं हुआ। करीब 13.72 करोड़ की लागत से इस प्रोजेक्ट का पटनाइट्स के लिए कोई यूटिलिटी ही नहीं था। क्योंकि करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी न तो ट्रैफिक व्यवस्था में सुधार हुआ, न ही लोगों के बीच जागरूकता रही कि बसों से चढऩे और उतरने का यही 'स्टॉप प्वाइंटÓ होगा। अब ये बस शेल्टर गाडिय़ों के पार्किंग स्टैंड या ऑटो स्टैंड के तौर पर रह गए हैं। इसलिए यहां पर बैठना भी मुश्किल है। पास ही में स्टैंड की आड़ में लोग इसके पीछे गंदगी फैलाते हैं। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने इसके विभिन्न पहलूओं की पड़ताल की।

क्या होगा स्टील वाले शेल्टरों का?
वर्ष 2015 में बुडको के द्वारा स्टील से बने बस क्यू शेल्टर में लगभग 60 प्रतिशत हटाए जा चुके हैं। पटना के स्मार्ट सिटी में चयनित हो जाने के बाद वर्तमान में बस क्यू शेल्टर का पूरा जिम्मा पटना स्मार्ट सिटी लिमिटेड को दे दिया गया है। अब नए बस क्यू शेल्टर पुराने वाले स्टील बस क्यू शेल्टर की जगह पर रिप्लेस किया जा रहा है। लेकिन पुराने वाले बस क्यू शेल्टर का क्या होगा? इसकी आधिकारिक तौर पर कोई जानकारी नहीं दी गई है। इस बारे में दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की ओर से बुडको और पटना स्मार्ट सिटी लि। से संपर्क किया गया। लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई।

117 स्थानों पर लगाया गया था
राजधानी पटना में स्टील वाले बस क्यू शेल्टर 117 स्थानों पर लगाए गए थे। यह सभी प्रमुख सार्वजनिक स्थानों, जहां बस का आना-जाना था, वहां पर लगाए गए थे। इसमें बोरिंग रोड, गांधी मैदान, एग्जीबिशन रोड, फ्रेजर रोड, स्टेशन, पाटलिपुत्र कॉलोनी, बेली रोड, जगदेव पथ समेत अन्य जगह शामिल थे।

क्यों बेकार होने लगे बस क्यू शेल्टर बुडको की ओर से मिली जानकारी के अनुसार, शहर में बस क्यू शेल्टर सभी जगहों पर लगाना बुड़को का काम था। इसके बाद इसकी बेहतर यूटिलिटी और इसके प्रति जागरूकता का जिम्मा ट्रैफिक पुलिस का था। यह काम नहीं हो सका। लोगों के बीच न तो जागरूकता रही और न ही ट्रैफिक पुलिस की ओर से इसका इनफोर्समेंट ही। इसके कारण दिनों-दिन बस क्यू शेल्टर खराब स्थिति में आने लगे।

कई खूबियों से था लैस
इससे भी पहले पटना में बस स्टैंड अंग्रेजी के 'टीÓ अक्षर के जैसा आकार में था। जो लोहे का बना था। लेकिन यह पूरी तरह से स्टील का बना था। इसमें विज्ञापन के लिए डिस्प्ले फीचर, बस नंबर के लिए डिस्पले स्पेश, दिव्यांगजन को चढऩे, उतरने के लिए रैंप और कूड़ा फेंकने के लिए स्टील डस्टबीन भी साथ में लगा हुआ था। यह काफी आकर्षक और कई दशकों तक टिकाऊ रहने लायक था। लेकिन एक बार इसे लगा देने के बाद से इसकी मानिटरिंग और मेनटेनेंस पर ध्यान नहीं दिया गया।

दिल्ली की तर्ज पर पटना
देश में पटना से पहले दिल्ली में ठीक इसी प्रकार के बस क्य शेल्टर दिल्ली के विभिन्न चौक-चौराहों पर लगाए गए थे। ऐसे बस क्यू शेल्टर लगाने का मुख्य उदेश्य शहर को एक आकर्षक लुक देने के साथ ही लोगों के लिए यूटिलिटी के लिहाज से भी यह अच्छा था।

सीएजी ने भी लिया था संज्ञान
लगभग 14 करोड़ रुपये की लागत से पटना में स्टील के बस क्यू शेल्टर लगाए गए थे। लेकिन इसकी यूटिलिटी को लेकर अगस्त, 2016 में सीएजी ने बस क्यू शेल्टर के 60 जगहों पर सर्वे कराया था। सर्वे रिपोर्ट में बताया गया था कि 60 लोकेशन में 29 जगहों पर इनक्रोचमेंट था।