पटना (ब्यूरो)।श्रम विभाग और स्वयं सेवी संगठनों के तमाम प्रयासों के बावजूद सिटी में चलने वाले विभिन्न छोटे-बड़े उद्योगों में अब भी दस हजार से अधिक च्च्चे श्रम की आग में झुलस रहे हैं। अपने परिवार की जीविका के साधन के रूप में सुबह से देर रात कड़ी मेहनत करने वाले ज्यादातर चप्पल-जूता, रंग-अबीर, ग्रील, बेकरी, गत्ता, मोटर-गैरज, होटल व चाय की दुकानों में सस्ते मजदूर और घरेलू नौकर के रूप में अपना बचपन गवां रहे हैं।
एसएसपी बोले, होगी कार्रवाई
पिछले दिनों चौक थाना क्षेत्र में हत्या के मामले में 20 अप्रैल को तीन अव्यस्क गिरफ्तार हुए। सभी 14 से 17 वर्ष के थे और वे किसी दुकान में कार्यरत थे। एसएसपी सरदार मानवजीत ङ्क्षसह ढिल्लों ने कहा कि कम उम्र केच् बच्चों से काम करना कानूनी अपराध है। एसएसपी ने कहा कि बड़े अपराधी कम उम्र केच् बच्चों से अपराध भी करा रहे हैं। बड़े अपराधी जानते हैं कि कम उम्रवालों से अपराध कराने पर उन्हें सजा कम होगी। कम उम्रवालों को यह पता नहीं होता कि वे थोड़ी रकम की लालच में बड़ा अपराध करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा था कि श्रम विभाग से अभियान चलाकर फैक्ट्रियों, दुकानों में काम करनेवालों के खिलाफ अभियान चलाकर कम उम्रवालों से काम करानेवालों पर कार्रवाई की जाएगी।

दस हजार से अधिक हैं बाल मजदूर
बाल मजदूरों व उनकी जीवन शैली का अध्ययन करने वाली एक सामाजिक संस्था के अधिकारियों ने बताया कि सिटी अनुमंडल में बाल मजदूरों की संख्या दस हजार से अधिक है। इनमें से ज्यादातर गरीबी के कारण असमय कड़ी मेहनत करने को विवश हैं। इनमें सैकड़ों अपने परिवार में कमाने वाले इकलौते हैं तो सैकड़चें बच्चे परिवार की आय में मददगार सदस्य हैं। संस्था के अनुसार कार्य स्थल पर शुद्ध वायु और पर्याप्त रोशनी का अभाव है और इसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है।

एक दशक पहले चले अभियान मेंच्300 बच्चे हुए थे मुक्त
लगभग एक दशक वर्ष पूर्व सिटी अनुमंडल में बाल श्रम उन्मूलन अभियान चलाया गया था। जिसमें लगभच् 300 बच्चे मुक्त कराए गए थे। श्रम पदाधिकारियों का मानना था कि गरीबी व अशिक्षा के कारण माता-पिता स्वयंच्अपने बच्चों को काम पर भेजते हैं। छापामार दल के श्रम निरीक्षकों ने बताया था कि फैक्ट्रियों, दुकानों व घरेलू कामगार के रूप में काचर््रत बच्चों की संख्या सर्वाधिक है।