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PATNA : इन दिनों हरियाणा की फोगट बहनों का 'दंगल' चर्चा में है। देश का मान बढ़ाने वाली इन बहनों की तरह बिहार की बेटियों में भी जज्बा है लेकिन सरकार की अनदेखी उनकी मेहनत पर भारी पड़ रही है। आई नेक्स्ट आपको बताने जा रहा है कि किस तरह व्यवस्था की बेडि़यों से प्रदेश की बेटियों का दम रेसलिंग के ट्रैक पर टूट रहा है।

पटना में शर्मा बहनें

हरियाणा की गीता और बबीता फोगट की तरह पटना में भी दो बहनें प्रदेश और देश का नाम रोशन करने के लिए संघर्ष कर रही है। पटना सिटी निवासी और अपने समय की पावर लिफ्टिंग चैम्पियन रही हदीपाली नंदी और बॉडी बिल्डर राज कुमार शर्मा की दोनों बेटियों का सपना देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने का है। रिमी शर्मा बीए प्रथम वर्ष में पढ़ाई करने के साथ रेसलिंग में शिखर तक पहुंचना चाहती हैं तो छोटी बहन रीमा शर्मा भी रेसलिंग में मामले में पीछे नहीं रहना चाहती हैं।

जाना पड़ता है ख्0 किमी दूर

दोनों बहनों की मानें तो रेसलिंग की तैयारी के लिए पटना सिटी और आस पास कोई जगह नहीं है। वह टूट रही हैं लेकिन हिम्मत बरकरार है। यही कारण है कि प्रतिदिन पटना सिटी से ख्0 किमी दूर बिहार सैन्य पुलिस के कैम्पस में अभ्यास करती हैं। यहां तक आने के लिए साधन भी नहीं है। लिहाजा, टैक्सी से प्रतिदिन क्00 रुपए खर्च कर आती हैं। रिमी बताती है कि दो और छोटी बहनें हैं जो रेसलिंग में तेज हैं और अवसर मिले तो कामयाबी का परचम लहरा सकती हैं.रिमी और रीमा का कहना है कि दो घंटे रास्ते में तो म् घंटे रेसलिंग की प्रैक्टिस में ही चला जाता है। इससे उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है। अगर पटना सिटी के आस पास प्रशिक्षण की व्यवस्था होती तो सफर की जगह अभ्यास पूरा हो जाता।

बिना मैट कैसे हो तैयारी

दंगल फिल्म की कहानी रिमी और रीमा के पास से होकर गुजरती हैं। क्योंकि फिल्म में फोगट बहनों को मैट के लिए जूझना पड़ता है। ऐसा ही हाल इन बहनों का भी है। बीएमपी में जो मैट है वह पूरा नहीं है बावजूद दोनों बहनों के साथ अन्य खिलाड़ी अभ्यास करते हैं।

घर से शुरू हुई प्रैक्टिस

माता-पिता खेल से जुड़े थे इसलिए शर्मा बहनों को खेल की बारीकियां विरासत में मिली। शुरुआत घर से हुई। और कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। रीमा ने ख्0क्ख् में हिमांचल के नालागढ़ सब जूनियर खेला और कई बार नेशनल जूनियर में भाग लिया। फिर ख्0क्भ् में झारखंड में खेला। इसी वर्ष रिमी ने जूनियर वर्ग में खेला। दोनों बहनों ने कई बार गोल्ड और अन्य पदक जीते हैं। लेकिन इनकी नजर ओलम्पिक पर है। उनका कहना है कि सरकार से मदद मिले तो सबकुछ संभव है।

बिहार में कुश्ती या अन्य खेलों को भी नौकरी से जोड़ने की जरूरत है। लेकिन उन्हें अपने स्तर पर मजबूत होना होगा तभी वे टिक सकते हैं।

- कामेश्वर सिंह, सचिव बिहार कुश्ती संघ

राज्य स्तर की प्रतियोगिता

15-17 वर्ष तक सब जूनियर प्रतियोगिता

17-20 वर्ष तक जूनियर कुश्ती प्रतियोगिता

18 वर्ष से उपर सीनियर कुश्ती प्रतियोगिता