क्कन्ञ्जहृन्: ठीक तीन दिनों बाद यानी 3 दिसंबर को पूरा देश भारतीयता की सजीव मूर्ति भारतरत्न डॉ। राजेंद्र प्रसाद का जन्मदिन मनाएगा। वहीं दूसरी तरफ उनके द्वारा लिखित मशहूर किताब 'चंपारण में गांधी' विवादों के घेरे में है। विवाद का कारण है रॉयल्टी। जिसे लेकर इस पुस्तक को दो प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित किया गया है। एक प्रकाशक है बिहार राष्ट्रभाषा परिषद तो दूसरा है प्रभात प्रकाशन। जबकि कॉपी राइट के तहत एक ही किताब को दो प्रकाशक नहीं छाप सकते हैं। आई नेक्स्ट ने विवादों की पड़ताल की चौंकानेवाला मामला सामने आयापेश है खास रिपोर्ट

कैसे हुई शुरुआत

28 जुलाई 1962 को डॉ। राजेन्द्र प्रसाद ग्रंथावली ट्रस्ट के मंत्री विश्वनाथ वर्मा ने 'चंपारण में महात्मा गांधी' पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए बिहार राष्ट्रभाषा परिषद को पत्र लिख करार किया था। इसके बाद से अब तक परिषद की ओर से इस पुस्तक को 5 बार प्रकाशित किया गया। फिर वर्ष 2010 में सूबे के मुखिया नीतीश कुमार के कथानुसार 'चंपारण में महात्मा गांधी' पुस्तक को संशोधित किया गया। नाम रखा गया 'चंपारण में गांधी'।

कब बढ़ा विवाद

इसी बीच 6 वर्ष पहले यानी 2010 में राजेंद्र बाबू की 125वीं जयंती पर देशरत्न की पोती तारा सिंह ने पुस्तक को प्रकाशित करने का जिम्मा प्रभात प्रकाशन को दे दिया। ऐसा उन्होंने क्यों किया इस बाबत पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि पिछले 6 दशक से राष्ट्रभाषा परिषद किताब प्रकाशित कर रही है लेकिन आज तक रॉयल्टी नहीं दी गई। जबकि प्रभात की ओर से 10 प्रतिशत रॉयल्टी दी जा रही है।

कोर्ट की शरण में जाएंगे

एक तरफ करार के बाद भी रॉयल्टी नहीं देने का आरोप है तो दूसरी तरफ कॉपी राइट एक्ट उल्लंघन करने का मामला गर्माता जा रहा है। जिसकी कीमत चुका रहे हैं वे लोग जो इस किताब के शौकिन हैं। पहले की अपेक्षा इस किताब का मूल्य दोगुना हो चुका है। आज इस पुस्तक की कीमत 500 रुपए हो चुकी है। क्योंकि राष्ट्रभाषा परिषद जहां 2014 के बाद से किताब का प्रकाशन करना बंद कर दिया है वहीं प्रभात प्रकाशन 2010 से अब तक प्रकाशित करता आया है। ऐसे में परिषद का कहना है कि वे कॉपी राइट एक्ट उल्लंघन को लेकर प्रभात के खिलाफ हाईकोर्ट जा सकते हैं। वहीं प्रभात प्रकाशन का कहना है कि हम विवाद में नहीं पड़ना चाहते हैं। कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे। फिर किताब प्रकाशित करेंगे।

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- 60 वर्ष की सेवा को अनदेखी कर तारा सिंह ने प्रभात प्रकाशन से हाथ क्यों मिलाया। आइए जानते हैं उन्हीं की जुबानी

रिपोर्टर - क्या आपको पता है कि प्रभात प्रकाशन 'चम्पारण में गांधी' का प्रकाशन कर रहा है?

तारा सिंह- जी हां। पता है। राजेन्द्र प्रसाद की 125 वीं जयंती पर हम लोगों ने प्रभात प्रकाशन से किताब छापने का करार किया था।

रिपोर्टर - लेकिन इस किताब को तो पहले से राष्ट्र भाषा परिषद छाप रही है?

तारा सिंह- हां पता है। राष्ट्र भाषा परिषद बहुत पहले से छाप रही है

रिपोर्टर - फिर प्रभात प्रकाशन से आपने करार क्यों किया?

तारा सिंह- क्योंकि राष्ट्रभाषा परिषद् मनमाने ढ़ंग से किताब प्रकाशित कर रही है। संस्था की ओर से आज तक रॉयल्टी नहीं दी गई।

रिपोर्टर- ऐसे तो किताब की कीमत काफी महंगी हो गई है?

तारा सिंह- ये प्रकाशक और सरकार जाने।

-6 दशक से किताब को प्रकाशित करनेवाली राष्ट्रभाषा परिषद् के निदेशक सतेन्द्र कुमार का क्या कहना है।

रिपोर्टर - चंपारण में गांधी पुस्तक को प्रभात प्रकाशन भी छाप रहा है? ऐसा क्यों?

सत्येन्द्र कुमार- सब पैसे का खेल है।

रिपोर्टर- जी, मैं कुछ समझा नहीं?

सतेन्द्र कुमार- प्रभात प्रकाशन रॉयल्टी ज्यादा दे रहा है।

रिपोर्टर - तो क्या आप इसका विरोध नहीं करेंगे?

सतेन्द्र कुमार - क्यों नहीं करेंगे। हम प्रभात प्रकाशन के खिलाफ न्यायालय जाने की सोच रहे हैं ।

रिपोर्टर- क्या परिषद राजेन्द्र प्रसाद के परिवार वालों को रॉयल्टी नहीं दे रही है?

सतेन्द्र कुमार -हमेशा रॉयल्टी दी गई है। किसी कारण से वर्ष 2014 में जो किताब प्रकाशन हुआ था उसकी रॉयल्टी नहीं मिली है।

रिपोर्टर - आप लोगों ने बात नहीं की तारा सिंह से?

सतेन्द्र कुमार - वे कुछ दिनों पहले ऑफिस आई थीं। अब फोन नहीं रिसीव करती हैं तो मैं क्या करूं।

प्रभात प्रकाशन के पटना केयर टेकर महेश शुक्ला ने क्या कहा। आइए जानते हैं।

रिपोर्टर -आप चम्पारण में गांधी को किस आधार पर छाप रहे हैं?

महेश शुक्ला- राजेन्द्र प्रसाद के परिवार के साथ हमारा करार हुआ है।

रिपोर्टर - लेकिन कॉपी राइट तो बिहार राष्ट्र भाषा परिषद् के पास सुरक्षित है। फिर कैसे छाप रहे हैं?

महेश शुक्ला - जब से पता चला है कि कॉपी राइट राष्ट्रभाषा परिषद् के पास सुरक्षित है उसके बाद से प्रकाशन करना बंद कर दिया है। ।

रिपोर्टर - जो किताब बाजार में है उसका क्या होगा?

महेश शुक्ला- हम लोग हर स्टॉल से किताब मंगाने का प्रयास कर रहे हैं। जो भी प्रकाशन हुआ है उसकी पूर्ण रॉयल्टी राजेन्द्र प्रसाद के परिवारवालों को दी गई है।