पटना (ब्यूरो)। प्लास्टिक वेस्ट के बेहतर तरीके से निपटारे की समस्या की शुरूआत कलेक्शन प्वाइंट से ही होती है। पटना में भले ही नगर निगम की ओर से डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन किया जा रहा है। लेकिन यह उपाय प्लास्टिक कलेक्शन को समुचित और बेहतर ढंग से निपटारे के लिए उपयुक्त साबित नहीं हुआ है। दूसरी ओर, घर को छोड़ सार्वजनिक स्थानों पर भी कचरे का निपटारा करने के लिए जागरूकता का अभाव है। स्टेशन रोड, कंकड़बाग और अन्य स्थानों पर भी दुकानदारों के बीच इसे लेकर लापरवाही बरती जाती है। सामान का पैकेट बाहर ही फेंक दिया जाता है। जहां नियमित सफाई है तो ठीक नहीं तो वहां प्लास्टिक वेस्ट बना रहता है।

सभी वार्ड में कलेक्शन लेकिन
पटना नगर निगम की ओर से प्लास्टिक वेस्ट के कलेक्शन का काम डोर -टू -डोर कचरा कलेक्शन के दौरान ही किया जाता है। जिसके लिए सभी वार्ड में निगम की गाडिय़ां चलती है। लेकिन कलेक्शन का तरीका मिला-जुला है। अलग से प्लास्टिक वेस्ट कलेक्ट करने के लिए मोटिवेशन की कमी है। यह देखा गया है कि लेकिन लोग कूडा-कचरा गाड़ी में कचरा तो डालते ही है। लकिन अवेयरनेस के अभाव में प्लास्टिक वेस्ट के साथ ही दूसरा कचरा मिल जाता है। एनआईटी पटना के सिविल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रोफसर एनएस मौर्या ने कहा कि प्राइमरी सोर्स से ही प्लास्टिक वेस्ट अलग कर लिया जाना चाहिए। इससे प्लास्टिक वेस्ट की समस्या को काफी कम किया जा सकता है।

जलीय क्षेत्र में ज्यादा नुकसान
पटना में प्लास्टिक वेस्ट का एक बड़ा पहलू जलीय क्षेत्र में प्रदूषण बढऩा है। गंगा नदी और शहर के अंदर के इलाकों में जहां बड़े नाले हैं वहां प्लास्टिक वेस्ट की समस्या गंभीर है। पानी में जाने के बाद प्लास्टिक माइक्रो प्लास्टिक में बदल जाता है और जलीय क्षेत्र में विषैले पदार्थ आने लगते हैं। यह बात अलग -अलग रिसर्च जर्नल में भी सामने लाया गया है। यह अप्रत्यक्ष तौर पर फ्रेश ग्राउंड वाटर के लिए भी खतरा है।

कम थिकनेस वाले प्लास्टिक का बड़ा खतरा
माइक्रो प्लास्टिक का पर्यावरण के लिए ज्यादा खतरा है। मानक से कम थिकनेस वाले प्लास्टिक में 100 माइक्रोन से कम वाले प्लास्टिक शामिल हैं। यदि माइक्रो प्लास्टिक की बात करें तो इसमें 5 एमएम से कम थिकनेस वाले प्लास्टिक को माइक्रो प्लास्टिक की श्रेणी में रखा जाता है। इस मामले में काली पन्नी वाली कैरी बैग का प्रयोग और अलग-अलग मैटेरियल में स्टीकर के तौर पर यूज किये जाने वाले प्लास्टिक शामिल हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए प्लास्टिक के चुनिंदा 19 आइटम को एक जुलाई से बैन करने की घोषणा की गई है।

रेग पिकर प्रदूषण घटा रहे
खुले में प्लास्टिक वेस्ट की मात्रा घटाने में रेग पिकर का बड़ा योगदान है। पटना में असंगठित रूप से अलग -अलग जगहों पर प्लास्टिक के कैरी बैग समेत अन्य प्रकार का कलेक्शन कर इसे रिसाइकिल करने वालों को भेजते हैं। इससे इन्हें कुछ आय प्राप्त होता है तो दूसरी ओर ओपन एनवायरमेंट में प्लास्टिक वेस्ट को कम करने मे मदद मिलती है। गर्दनीबाग में स्वच्छता केन्द्र में हर दिन दस टन प्लास्टिक वेस्ट का रिसाइकिल किया जाता है। यहां भी रेग पिकर की मदद से प्लास्टिक वेस्ट को घटाने में मदद मिल रही है।

एक्सपेरीमेंट से बदलाव की कोशिश
पटना में गीला और सूखा कचरा का अभियान हर वार्ड में चल रहा है। हालांकि इसमें परेशानी यह आ रही है कि गीला और सूखा कचरा कई बार मिक्स फार्म में मिल रहा है। इससे उसका वैल्यू घट जाता है। पटना नगर निगम के कमिश्नर अनिमेश कुमार पराशर ने बताया कि बड़े शहरों की तर्ज पर पटना में भी जल्द ही एक्सपेरिमेंट बेसिस पर हर दिन गीला कचरा का उठाव और सूखा कचरा का उठाव या कलेक्शन के लिए दिन निर्धारित किया जाएगा। इससे अपने आप प्लास्टिक वेस्ट के कलेक्शन और इसकी वैल्यू बढ़ाने में मदद मिलेगी।