-अभिनेता दिलीप कुमार के निधन से प्रशंसक दुखी

-दर्शक दिलीप को देखने के लिए लंबी लाइन में लगकर खरीदते थे टिकट

PATNA: हिंदी सिनेमा के दिग्गज कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले अभिनेता दिलीप कुमार के निधन से प्रशंसक दुखी हैं। दिलीप की फिल्में राजधानीवासियों को आकíषत करती थीं। पटना में रिक्शा तो गांव कस्बों में बैलगाड़ी से उनकी फिल्मों का प्रचार होता था। उन दिनों फिल्म का टिकट ब्लैक में भी मिलता था। दर्शक दिलीप को देखने के लिए लंबी लाइन में लगकर टिकट खरीदते थे।

मुंगेर से रहा पुराना रिश्ता

ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार का मुंगेर से पुराना रिश्ता है। योगनगरी के पीर पहाड़ी पर 1966-67 में एक फिल्म की शूटिंग करने पहुंचे थे अभिनेता दिलीप कुमार। 58 द्वार और 52 कोठी में अभिनेत्री और हीरो के बीच झगड़े का सीन शूट किया गया था। लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह महल अब खंडहर बन चुका है।

भोजपुरी बोलने पर हुई सराहना

फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम बताते हैं, 1960 के दौर में दिलीप कुमार की फिल्मों को लेकर दर्शकों में काफी उत्सुकता होती थी। वर्ष 1961 में दिलीप साहब की फिल्म गंगा जमुना रिलीज हुई थी, जिसमें वे एक ग्रामीण के किरदार में थे। वे फिल्म में पहली बार भोजपुरी बोलते नजर आए थे, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा था। इसके लिए दिलीप कुमार ने ठेठ भोजपुरी भाषा सीखी थी।

पटना में मनती थी सिल्वर जुबली

वरिष्ठ रंगकर्मी सतीश आनंद की मानें तो जब पटना में दिलीप साहब की फिल्में लगती थीं तो शहर में हल्ला मच जाता था। कई बार दिलीप साहब के पटना आने की अटकलों को लेकर शहर में हल्ला हो जाता था। उन दिनों पटना के वीणा, रूपक, पर्ल, अशोक सिनेमा हाल में दिलीप कुमार की फिल्में लगती थीं। दिलीप के प्रशंसक उनकी फिल्मों को लेकर इंतजार करते थे। पटना के सिनेमाघरों में अभिनेता दिलीप कुमार की फिल्में लगभग 25 हफ्तों तक चलती थीं। फिल्म को लेकर सिल्वर जुबली मनाई जाती थी।

70 पैसे में मिलता था टिकट

अभिनेता दिलीप कुमार की फिल्मों के प्रचार उन दिनों रिक्शा व बैलगाड़ी पर होता था। शहर के वरिष्ठ रंगकर्मी गुप्तेश्वर कुमार की मानें तो पटना शहर में रिक्शे के पीछे फिल्म के पोस्टर चिपका लाउडस्पीकर से प्रचार होता था। वहीं, गांव कस्बों में बैलगाड़ी पर पोस्टर लगा फिल्म के बारे में जानकारी दी जाती थीं। उन दिनों फिल्म के टिकट ब्लैक में भी मिलते थे। पटना के सिनेमा हाल में दिलीप कुमार की फिल्म लगने के बाद लोग घंटों लाइन लगाकर टिकट खरीदते थे। 70 पैसे से लेकर एक रुपये 25 पैसे तक टिकट मिलते थे।