-सीएम ने किया इंटरनेशनल सेंमिनार का इनॉगरेशन

PATNA: गंगा पर बराज रहे या नहीं, बिहार की समस्या का अंत होना चाहिए। गंगा की अविरलता से हम कोई समझौता नहीं कर सकते हैं। देश ने सोन की अविरलता को खत्म होते देखा है। हमें डर लगता है कि कहीं गंगा की अविरलता भी समाप्त न हो जाए। यह बातें सीएम नीतीश कुमार ने बिहार सरकार के वाटर रिर्सोस डिपार्टमेंट की ओर से गंगा की अविरलता पर आयोजित इंटरनेशनल सेमिनार के इनॉगरेशन पर कही। सीएम ने कहा कि यह भ्रम नहीं रहना चाहिए कि सेमिनार फरक्का बराज को डीकमीशन करने के लिए है। फरक्का बराज रहे या टूटे इससे मतलब नहीं है। जल संसाधन मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने सेमिनार के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की।

गंगा पर निर्भर है देश की समृद्धि

गंगा और हिमालय हमारी संस्कृति के केंद्र में है। गंगा हमारी प्रकृति की पोषक रही है। देश की समृद्धि गंगा और हिमालय पर निर्भर है। यह बातें चंडी भट्ट ने कही। उन्होंने कहा कि गंगा की अविरलता व हिमालय में गड़बड़ी रोकने के लिए हिमालय के किनारे बसे भारत, नेपाल, भूटान और चीन एक मोर्चा बनाए। गंगा और ब्रह्मपुत्र को बचाने के लिए वनस्पति लगानी चाहिए। गंगा की अविरलता के लिए हरियाली बढ़ाने की जरूरत है।

व‌र्ल्ड में में भ्0 हजार से अधिक डैम

कर्नाटक कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ। राजेन्द्र पोद्दार ने कहा कि नदियों की अविरलता में डैम सबसे बड़ी रुकावट हैं। जिस तरह शरीर में रक्त का संचार होता है उसी तरह नदियों में भी पानी का प्रवाह होता है। रक्त प्रवाह अवरुद्ध होने से हार्ट अटैक हो जाता है, उसी तरह डैम बना पानी रोकने से नदियां भी मौलिक रूप खोती जा रही हैं। डैम से पर्यावरण संतुलन बिगाड़ रहा है। उन्होंने कहा कि व‌र्ल्ड में भ्0 हजार से अधिक डैम हैं।

बराज की योजना खतरनाक

गंगा पर बराज बनाने की योजना काफी खतरनाक है। बिहार को इसकी स्वीकृति नहीं देनी चाहिए। यह बातें जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कही। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार गंगा में जलमार्ग विकसित करने के लिए बिहार को सर्वाधिक अनुकूल मानती है। फरक्का बराज को डीकमीशन की बात सही तरह से होनी चाहिए। बिहार में फरक्का बराज के कारण बड़े इलाके में बाढ़ की प्राब्लम है। नदी मिट्टी से ढंकेगी तो पानी ऊपर आएगा ही।

इकोलॉजिकल संदर्भ में देखें

प्रख्यात पर्यावरणविद वंदना शिवा ने कहा कि गंगा की अविरलता पर बात करने के क्रम में यह विचार जरूरी है कि गंगा को हम कैसे देखते हैं। जरूरत गंगा को इकोलॉजिकल संदर्भ में देखने की है। गंगा मेकैनिकल आइडेंटिटी नहीं। यह हमारी सभ्यता है। गंगा किनारे ठेकेदारी प्रथा बढ़ रही है। कोई डैम के ठेके की बात कर रहा तो कोई ट्रांसपोर्ट के ठेके की।