पटना (ब्यूरो)। यह बातें बुधवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह एवं लघुकथा-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि प्रेमयोगी जी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे, किंतु कविता और हिन्दी उनकी आत्मा में समायी हुई थी। जीवन-पर्यंत हिन्दी के ध्वज-वाहक बने रहेङ पूरे संसार में हिन्दी का संवर्धन हो, इसके लिए सचेष्ट रहेङ उनकी भाषा प्रांजल, मधुर और मोहक थी।
नेको लेखक लघुकथा की ओर प्रेरित हुए
लघुकथा-आंदोलन के पुरोधा डॉ। सतीश राज पुष्करणा को भी आदरपूर्वक स्मरण किया गया। डॉ। सुलभ ने उन्हेंलघुकथा-पुरुष की संज्ञा देते हुए, कहा कि यह उनकी ही देन है कि बिहार में अनेको लेखक लघुकथा की ओर प्रेरित हुए और इस विधा को बल प्रदान किया।
अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डॉ। शंकर प्रसाद ने कहा कि पुष्करणा जी उनके साहित्यिक-सहयोगी रहे तथा पत्रिका-प्रकाशन में भी बड़ा योगदान दिया। उन्होंने लघुकथा में अपने योगदान से देश में अपना नाम कमाया। वे लघुकथा में नए आयाम जोड़े।
सुप्रसिद्ध लघुकथाकार और पत्रकार डा ध्रुव कुमार ने कहा कि पुष्करणा जी ने चार दशकों से अधिक समय तक लघुकथा की साधना की।