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PATNA : डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन का बनाया बायो डाइजेस्टर टॉयलेट अब पलिक के इस्तेमाल में भी लाया जा सकेगा। सीनियर साइंटिस्ट और डीआरडीई, ग्वालियर (डीआरडीओ की शाखा) के डारेक्टर डॉ। लोकेंद्र सिंह ने ब् साल के रिसर्च के बाद इसे ग्लेशियर में ड्यूटी कर रहे जवानों के लिए बनाया गया था। अब इसे आम नागरिकों के लिए भी बनाया जा रहा है। मिनिस्ट्री ऑफ अरवन डेवलपमेंट ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत इसे देश के भ्00 शहरों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लगवाने का फैसला किया है। मिनिस्ट्री ने लेटर इश्यू कर राज्य सरकारों को इसकी जानकारी दे दी है। इस काम में डीआरडीओ सरकार के साथ सहयोग करेगी।

ह्यूमन वेस्ट से बनेगा गैस

इस टॉयलेट में एक खास तरह का बैक्टिरिया डाला जाता है, जो ह्यूमन वेस्ट को खाकर पूरी तरह खत्म कर देती है। इसके बदले पानी और गैस का निर्माण होता है। पानी इतनी साफ होती है कि इसका दोबारा इस्तेमाल भी किया जा सकता है। यह तकनीक कुछ-कुछ गोबर गैस से मिलती जुलती है लेकिन ह्यूमन वेस्ट मैनेजमेंट के लिए अब तक ऐसी तकनीक उपलध नहीं थी।

ग्लेशियर में बनी थी तकनीक

इस तकनीक को विकसित करने वाले डीआरडीओ के साइंटिस्ट डॉ। लोकेंद्र सिंह के मुताबिक सेना के लिए इसे बनाया गया था। सियाचिन के ग्लेशियर में -ब्0 डिग्री तापमान में ह्यूमन वेस्ट का डिस्पोजल काफी मुश्किल था। हमारी चुनौती थी कि इस तरह की कोई टेक्नीक विकसित करें। बायो डायजेस्टिव की मदद से ह्यूमन वेस्ट पूरी तरह खत्म हो जाता है। इसे टैंक से वापस निकालने की जरूरत नहीं होती।

अंटार्टिका से लाए बैक्टेरिया

डॉ। लोकेंद्र बताते हैं कि इस रिसर्च में शुरुआत में चार साल का वक्त लगा था। उस वक्त अंटार्टिका के नो मेन्स लैंड से लेकर सियाचन में भी इसे खोजा गया। सभी को मिक्स कर ऐसा मिक्सचर बनाया गया। एनवायर्नमेंट के मुताबिक अलग- अलग तरह का मिक्सचर बनाकर इसे तैयार किया जाता है।

रेलवे में भ्म् हजार बायो टॉयलेट

इंडियन रेलवे ने सेना के बाद सबसे पहले इस तकनीक को इस्तेमाल में लाया। उन्होंने डीआरडीओ के साथ एमओयू साइन कर अपने सभी कोचेज में इसे लगाने का टारगेट बनाया। अबतक रेलवे के भ्म् हजार कोट बायो टॉयलेट से लैस हैं। इस एमओयू के मुताबिक ख् अक्टूबर ख्0क्9 तक ऐसा कोई भी कोच नहीं मिलेगा जिसमें बायो-डायजेक्टर टॉयलेट न लगे हों।

यह है आधुनिक तकनीक

साइंटिस्ट डॉ। लोकेंद्र सिंह के मुताबिक इस तकनीक को उन्होंने इंडस्ट्री और सरकार से शेयर किया है। भ्भ् सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं देशभर में तकनीक का इस्तेमाल कर रही है। फिलहाल इसे पलिक यूज के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। कुछ ही दिनों बाद इस तरह की तकनीक से आम घरों में भी बायो डायजेस्टिव टॉयलेट लगाए जा सकेंगे।