- लाइफ साइंसेज पर बामेती, पटना में नेशनल सेमिनार आयोजित

- डॉल्फिन संरक्षण के लिए कदम कदम उठाने की है जरूरत: प्रो। सिन्हा

PATNA : आपके आसपास के झील या किसी बड़े गड्डे में पनपने वाले पानी की सघन घांस एजोला कितनी काम की चीज है, इस बात से आम लोग बहुत कम ही परिचित है। यह एक बॉयोफर्टीलाइजर, नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाने वाला एक नायाब जलीय पौधा है। लेकिन इसमें लवणता की मात्रा बढ़ने से इसके विस्तार पर असर पड़ता है। उक्त बातें इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली के डॉ जी अब्राहम ने 'करेंट ट्रेंडस इन लाइफ साइंसेज' के नेशनल सेमिनार में कही। बामेती कैंपस, पटना में आयोजित इस सेमिनार के पोस्ट लंच सेशन के दौरान उन्होंने 'प्रोटीओमेटिक्स ऑफ सैलिनिटी स्ट्रेस इन अजोला' शीर्षक प्रजेंटेशन में अजोला की विशेषताओं के बारे में जानकारी दी।

बेहद तेजी से बढ़ता है एजोला

एजोला पानी में बेहद तेजी से बढ़ने वाला एक जलीय पौधा है। मात्र तीन से दस दिनों में इसका बायोमास दोगुना हो जाता है। प्रोटीन, अमीनो एसीड, विटामिन, मिनिरल की मात्रा एजोला में भरपूर होती है। प्रजेंटेशन के दौरान डॉ अब्राहम ने इसके प्रोटीन के प्रकार और उसे प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में बताया। इससे पहले कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि आरएमआरआईएमएस पटना के निदेशक डॉ। प्रदीप दास, विशिष्ठ अतिथि जोलोजी डिपार्टमेंट के हेड एवं पद्मश्री प्रोफेसर आर के सिन्हा एवं सीयूएसबी के प्रति कुलपति प्रोफेसर ओम प्रकाश राय, सीबीएस के विभागाध्य्क्ष एवं सेमिनार के पैट्रन डॉ। रिज़वानुल हक़, स्कूल ऑफ अर्थ, बायोलॉजिकल एंड एनवायर्नमेंटल साइंसेज के डीन प्रोफेसर रबिन्द्र सिंह राठौर ने दीप प्रज्जवलित कर किया।

कड़े कानून से बचेगा डॉल्फिन

डॉल्फिन संरक्षण के लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत है.वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की तजऱ् पर गांगेय डॉल्फिन को संरक्षित करना होगा। यह दिनो-दिन घटती जा जा है और विलुप्त जीवों की श्रेणी में शामिल है। अन्य विलुप्त प्रजातियों की भांति यह भी लुप्त हो सकता है। उक्त बातें सेमिनार के दौरान गंगा नदी में डॉल्फिन के संरक्षण के बारें में की- नोट एड्रेस देते हुए पीयू के जोलोजी डिपार्टमेंट के हेड प्रो। आरके सिन्हा ने कहा। प्रजेंटेशन के दौरान प्रो। सिन्हा ने गांगेय डॉल्फिन प्रजाति के जीवन चक्र की चर्चा की और इस दुर्लभ प्रजाति के अस्तित्व की चुनौतियों पर प्रकाश डाला। मछुआरों की अज्ञानता और नदी प्रदूषण के कारण इसके अस्तित्व पर संकट है।

शोध से नई बीमारियों का भी इलाज

राष्ट्रीय सेमिनार के शुभारंभ के बाद सेमिनार के पैट्रन डॉ रिजवानुल हक़ ने अपने स्वागत भाषण में अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत करने के बाद सीयूएसबी के सीबीएस विभाग के शोधकायरें पर प्रकाश डाला। प्रोफेसर रबिन्द्र सिंह राठौर ने युवा प्रतिभागियों को पूरी निष्ठा और लगन के साथ शोध कायरें में समर्पित रूप से काम करने के लिए प्रेरित किया। जबकि सीयूएसबी के प्रति कुलपति प्रो। ओम प्रकाश राय ने लाइफ साइंस क्षेत्र में होने वाले नए - नए अविष्कारों से कई तरह की जानलेवा बीमारियों का इलाज़ संभव हो पाया है और ये बहुत बड़ी उपलब्धि है।

कालाजार में मिली उपलब्धि

सेमिनार के चीफ गेस्ट एवं आरएमआरआई इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉ प्रदीप दास ने कहा कि वे लगातार तीन दशकों से जीव विज्ञान क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं और इन वषरें में उन्होंने कई प्रकार के शोध करते हुए विभिन्न रोगों के इलाज के तरीकों को भी ढूंढा है। इसमें कालाजार प्रमुख है। उन्होंने कालाजार पर किये गए कार्य पर आधारित 'एलेमिनेशन ऑफ कालाजार फ्रॉम वैशाली - ए मेजर अचीवमेंट ऑफ आरएमआरआईएमएस' शीर्षक पर अपना प्रेजेंटेशन प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि कई वर्षो की मेहनत का ही परिणाम है कि वर्ष ख्0क्म् में कालाजार से पीडि़त किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई जो बहुत बड़ी उपलब्धि है। सेमिनार में प्रो। आरके सिन्हा, प्रो। एस गौरीनाथ, डॉ जी अब्राहम, डॉ सुबोध सिन्हा और डॉ लेशीराम सिंह ने प्रजेंटेशन दिया। यह कार्यक्रम मंगलवार को भी जारी रहेगा।