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PATNA : पटना को स्मार्ट सिटी बनाने की चर्चा चारो तरफ चल रही है। इस शोर में शहर में रह रहे हजारों ऐसे लोगों की आवाज दब रही है जिन्हें एक-एक कदम चलने पर असहनीय तकलीफों का सामना करना पड़ता है। हम बात कर रहे हैं प्रदेश के लाखों दिव्यांग की। इनके लिए पब्लिक प्लेस एक्सेसिबल यानी सुगम्य हो इसकी कोशिश केंद्र की ओर से की गई। सुगम्य भारत अभियान की जमीनी हकीकत जानेंगे तो आप भी चौंक जाएंगे। शहर में अबतक एक भी बिल्डिंग को सुगम्य नहीं बनाया गया है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट कई भवनों की पड़ताल कर बिहार में 'सुगम्य भारत अभियान'के बुरे हाल का खुलासा कर रहा है।

नर्क बना पब्लिक प्लेस

सुगम्य भारत अभियान के शुरू हुए ख् साल से अधिक हो गए हैं, लेकिन शहर की एक भी इमारत या पब्लिक प्लेस को पूरी तरह से एक्सेसिबल नहीं बनाया जा सका है। ऑडिट के नाम पर खाना पूर्ति के अलावा यहां कोई काम नहीं हुआ है। इस हकीकत का खुलासा हुआ है केंद्र सरकार तक पहुंची प्रोग्रेस रिपोर्ट में। समाज कल्याण विभाग की वेबसाइट पर पटना के लिए एक्सेसिबल ऑडिट रिपोर्ट के अलावा काम के नाम पर कुछ नहीं दिख रहा। फ‌र्स्ट फेज में शहर के ख्8 स्थानों को एक्सेसिबल बनाने का लक्ष्य रखा गया था। इनमें से किसी एक में भी काम शुरू तक नहीं हुआ है। इन स्थानों में एएन कॉलेज, पटना यूनिवर्सिटी, पटना कॉलेज जैसे मोस्ट क्राउडेड पब्लिक प्लेसेज हैं।

जहां होती दिव्यांगों की बात, वही सुगम्य नहीं

इस पूरी लेटलतीफी में सबसे अधिक हास्यास्पद बात सरकारी दफ्तरों का सुगम्य न होना है। यहां तक की जहां से पूरे प्रदेश भर के दिव्यांगों के कल्याण की योजनाएं बनती है वही दफ्तर सुगम्य नहीं है। बेली रोड स्थित विभाग के दफ्तर सक्षम में जाने के लिए ब्8 सीढि़यां चढ़ कर जाना होता है। यहां रैंप की सुविधा नहीं। वहीं निशक्कता निदेशालय में जाने के लिए ख्ख् सीढि़यां चढ़ना पड़ता है।

क्या है सुगम्य भारत अभियान

इस अभियान के तहत साल ख्0क्भ् में केंद्र सरकार ने देश के पब्लिक प्लेस को एक्सेसिबल यानी सुगम्य बनाने का निश्चय किया था। इसके लिए पहले चरण में देश के चुनिंदा शहरों के कुछ जिलों को शामिल कर वहां के पब्लिक प्लेस चिंहित किए गए। पटना शहर की ख्8 इमारतों का चुनाव किया गया। अभियान के तहत इन इमारतों का एक्सेसिबल ऑडिट कर इनमें जरूरी बदलाव करने थे ताकि दिव्यांग आसानी से वहां जा सकें।

दर्द न जाने कोई

पटना में कलेक्ट्रेस ऑफिस हो या हॉस्पिटल। वहां जाने के लिए न रैंप बना है न सहारे के लिए रैलिंग। सीढि़यों से ऊपर तक जाना मुश्किलों से भरा है। ऐसी ही कई परेशानियां बताते हुए दिव्यांग राकेश कुमार परेशान हो उठते हैं।

उन्होंने दैनिक जागरण आई नेक्स्ट से अपने साथियों की परेशानी साझा की। बिहार दिव्यांग अधिकार मंच के राज्य सचिव के रूप में वे अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। राकेश के मुताबिक दिन ख्8 स्थानों का एक्सेस ऑडिट हुआ वे स्थान बेहद क्राउडेड हैं। वहां हर रोज क्0 प्रतिशत दिव्यांग का आना जाना होता है। शारीरिक कष्ट के साथ हमें मानसिक प्रताड़ता और अपमान से भी गुजरना होता है। हम नहीं चाहते कि किसी को हमारी मदद करनी पड़े। लेकिन सरकार ने हमें पर्याप्त संसाधन नहीं दिया तो अपमान सहना पड़ता है।

मैं यहां जब से हूं, तब से काफी रफ्तार से काम-काज हुआ है। हमने भवन निर्माण विभाग के ख्8 स्थानों की लिस्ट दे दी है। इनमें से तीन स्थान जो विभाग के अंडर हैं उनको बहुत जल्द एक्सेसिबल बनाया जाएगा। बाकी स्थानों के संबंधित विभाग को सूचना और फंड देकर काम को आगे बढ़ाया जाएगा। प्रमुख सचिव से हाई लेवल मीटिंग कर सुगम्य भारत अभियान को जल्द से जल्द पूरा करने का प्रयास किया जाएगा।

- आरएसपी दफ्तौर, डायरेक्टर, सोशल सेक्योरिटी एंड डिसेबिलिटी

कामों में हो रही देरी को लेकर अब आंदोलन करने वाले हैं। मुख्यमंत्री से पत्र लिखकर हम मांग करेंगे कि हमारा अधिकार हमें दिया जाए। केंद्र की योजनाओं तो तुरंत लागू किया जाए। पीडब्लूडी नियमों के मुताबिक नई बिल्डिंग्स को एक्सेसिबल बनाया जाएगा।

- राकेश कुमार, राज्य सचिव, बिहार दिव्यांग अधिकार मंच