PATNA CITY : निशांत गृह में फिलहाल करीब क्08 लड़कियां रह रही हैं। सभी ऐसी लड़कियां हैं, जो भूली-भटकी, दिव्यांग या परिजनों से भटकीं हैं। यहां लड़कियां होम अधीक्षक और अन्य को मां, मम्मी या मइया कहकर बुलाती हैं और कोई भी तकलीफ होने पर उनसे लिपट सी जाती हैं।

पढ़ने और सीखने का मौका

जिला समाज कल्याण की उपनिदेशक ममता झा बताती हैं कि गायघाट स्थित निशांत गृह में इन लड़कियों को विभिन्न संस्था या पुलिस वाले भेजते हैं। अधीक्षक डेजी कुमारी के अनुसार वर्ष ख्0क्म् जनवरी से दिसंबर के बीच ख्फ्ख् लड़कियां यहां भेजी गई। जिसमें से काउंसिलिंग कर क्म्म् को उनके परिजनों को सौंप दिया गया।

आर्ट एंड क्राफ्ट की ट्रेनिंग

निशांत गृह में क्08 लड़कियों में से नौ दिव्यांग हैं। यानी ये न तो सुन और न ही बोल सकती हैं। इसके अलावा फ्फ् लड़कियां मानसिक या शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं। ब्ख् लड़कियों को संभालना बड़ा चैलेंज है। सभी को सुबह में तैयार करना, खाना खिलाना, पढ़ाई से लेकर अन्य गतिविधियों में शामिल कराना चुनौती से कम नहीं है। लड़कियों को किलकारी द्वारा भी हुनरमंद बनाया जा रहा है। सभी को आर्ट एंड क्राफ्ट की ट्रेनिंग दी जाती है।

विशेष अभिरक्षा में रहती हैं बच्चियां

उपनिदेशक ममता झा ने बताया कि लड़कियों कि प्रॉपर काउंसिलिंग कर नाम, मां-पिता का नाम और घर का पता पूछने की कोशिश की जाती है। सही नाम और पता बताने पर उस एरिया के पुलिस से संपर्क कर उसके परिजनों को बताने और भेजने को कहा जाता है। यदि परिजन पटना जिला से बाहर हैं, तो उन्हें बुलाया जाता है। नहीं आने पर बच्ची को विशेष अभिरक्षा में उस जिले के जिला बाल कल्याण विभाग के माध्यम से बच्ची को सौंप दिया जाता है।

अखबार में देते हैं सूचना

निशांत गृह के माध्यम से लड़कियों के बारे में कोई जानकारी नहीं होने पर उसकी तस्वीर के साथ अखबार में सूचना भी दी जाती है। इससे भी सफलता मिलती है। कोलकाता की एक लड़की को उनके परिजन अखबार में छपी तस्वीर के आधार पर पहचान कर ले गए। एक बच्ची केवल मां बोलती थी, विज्ञापन छपने के बाद उनके पेरेंट्स आकर ले गए।

ऐसे बच्चों को संभालना बड़ी चुनौती है। स्टाफ कम है और प्रॉपर देखभाल करना होता है। यहां आने वाली लड़कियों की प्रॉपर काउंसिलिंग कर फैमिली से मिलाने की पूरी कोशिश की जाती है। अब एडॉप्शन भी शुरू होने जा रहा है।

-ममता झा, डिप्टी डायरेक्टर, जिला समाज कल्याण