तो लग गई  हाजरी

डॉ। अनिल सुलभ के जेल जाने के बाद साहित्य सम्मेलन के  कार्यवाहक अध्यक्ष नृपेन्द्रनाथ गुप्त बने। नियमानुसार उनकी अनुपस्थिति में किसी कार्यक्रम की अध्यक्षता उपाध्यक्ष करते हैं। लेकिन शुक्रवार को गुप्त के आने से पहले अर्थ मंत्री योगेन्द्र मिश्र ने उनकी हाजरी लगा दी थी। जो सम्मेलन के नियम के खिलाफ है. 


साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष शिवदत्त मिश्र और आई नेक्स्ट रिपोर्टर के बीच हुई बातचीत के मुख्य अंश
रिपोर्टर- शंकर प्रसाद और आपके बीच क्यों लड़ाई हुई?
शिवदत्त मिश्र - बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में अनिल सुलभ के जाने के बाद अराजकता बढ़ गई है। कोई किसी का इज्जत नहीं करता, सब कुर्सी का खेल है.
रिपोर्टर- इस तरह कब तक चलेगा?
शिवदत्त मिश्र - कुछ दिनों की बात है आगे सब ठीक हो जाएगा.
रिपोर्टर- आप दानो में सीनियर कौन है?
शिवदत्त मिश्र - यहां 7 उपाध्यक्ष हैं मैं दूसरे नंबर पर हूं और शंकर प्रसाद 7वें नंबर पर हैं.
रिपोर्टर - फिर वो कुर्सी से क्यों नहीं उठे?
शिवदत्त मिश्र - ज्ञान के अनुसार ही काम करेंगे। मैं उनसे उम्र में भी बड़ा हूं, इसका भी ख्याल करते।  
रिपोर्टर- जयंती समारोह में इतने कम साहित्यकार थे?
शिवदत्त मिश्र - ऐसे लोग रहेंगे तो साहित्यकार कैसे आएंगे.

बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की संरक्षक सदस्य और पूर्व उपाध्यक्ष सविता सिंह नेपाली से बातचीत के कुछ अंश
रिपोर्टर - आप साहित्य सम्मेलन संरक्षक मंडल की सदस्य हैं,  कुर्सी पर बैठने के लिए दो साहित्यकार भिड़ गए, आप क्या कहेंगे? 
सविता सिंह नेपाली- जिस संस्था के अध्यक्ष भ्रष्ट हो वहां की स्थिति इस तरह होना स्वभाविक है.
रिपोर्टर - एक कार्यक्रम के लिए कितने का बजट बनता है?
सविता सिंह नेपाली- सालभर में 200 सौ से ज्यादा कार्यक्रम कराए जाते हैं हर कार्यक्रम के लिए 35 से 40 हजार रुपए का बजट बनता है.
रिपोर्टर -साहित्य सम्मेलन में भीड़ कम क्यों होती जा रही है?
सविता सिंह नेपाली-साहित्यकार को बुलाने में खर्च लगता है, ये लोग 1000 से ज्यादा खर्च नहीं करते, बांकी आपस में बांट लेते हैं.
रिपोर्टर-  आप साहित्य सम्मेलन क्यों नहीं जाती हैं? 
सविता सिंह नेपाली- वहां तथाकथित साहित्यकार बैठते हैं जो हमेशा कुर्सी के लिए लड़ते रहते हैं, मैं वैसी साहित्यकार नहीं हूं.

बनेपुरीजी की जयंती पर कुर्सी के लिए दोनों उपाध्यक्षों का लडऩा दुर्भाग्यपूर्ण बात है। इससे साहित्य सम्मेलन ही नहीं बल्कि साहित्य जगत की बदनामी हुई है.
- सविता सिंह नेपाली, पूर्व अध्यक्ष सह संरक्षक मंडल सदस्य

 

तो लग गई  हाजरी

डॉ। अनिल सुलभ के जेल जाने के बाद साहित्य सम्मेलन के  कार्यवाहक अध्यक्ष नृपेन्द्रनाथ गुप्त बने। नियमानुसार उनकी अनुपस्थिति में किसी कार्यक्रम की अध्यक्षता उपाध्यक्ष करते हैं। लेकिन शुक्रवार को गुप्त के आने से पहले अर्थ मंत्री योगेन्द्र मिश्र ने उनकी हाजरी लगा दी थी। जो सम्मेलन के नियम के खिलाफ है. 

 

 

साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष शिवदत्त मिश्र और आई नेक्स्ट रिपोर्टर के बीच हुई बातचीत के मुख्य अंश

रिपोर्टर- शंकर प्रसाद और आपके बीच क्यों लड़ाई हुई?

शिवदत्त मिश्र - बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में अनिल सुलभ के जाने के बाद अराजकता बढ़ गई है। कोई किसी का इज्जत नहीं करता, सब कुर्सी का खेल है।

रिपोर्टर- इस तरह कब तक चलेगा?

शिवदत्त मिश्र - कुछ दिनों की बात है आगे सब ठीक हो जाएगा।

रिपोर्टर- आप दानो में सीनियर कौन है?

शिवदत्त मिश्र - यहां 7 उपाध्यक्ष हैं मैं दूसरे नंबर पर हूं और शंकर प्रसाद 7वें नंबर पर हैं।

रिपोर्टर - फिर वो कुर्सी से क्यों नहीं उठे?

शिवदत्त मिश्र - ज्ञान के अनुसार ही काम करेंगे। मैं उनसे उम्र में भी बड़ा हूं, इसका भी ख्याल करते।  

रिपोर्टर- जयंती समारोह में इतने कम साहित्यकार थे?

शिवदत्त मिश्र - ऐसे लोग रहेंगे तो साहित्यकार कैसे आएंगे।

 

बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की संरक्षक सदस्य और पूर्व उपाध्यक्ष सविता सिंह नेपाली से बातचीत के कुछ अंश

रिपोर्टर - आप साहित्य सम्मेलन संरक्षक मंडल की सदस्य हैं,  कुर्सी पर बैठने के लिए दो साहित्यकार भिड़ गए, आप क्या कहेंगे? 

सविता सिंह नेपाली- जिस संस्था के अध्यक्ष भ्रष्ट हो वहां की स्थिति इस तरह होना स्वभाविक है।

रिपोर्टर - एक कार्यक्रम के लिए कितने का बजट बनता है?

सविता सिंह नेपाली- सालभर में 200 सौ से ज्यादा कार्यक्रम कराए जाते हैं हर कार्यक्रम के लिए 35 से 40 हजार रुपए का बजट बनता है।

रिपोर्टर -साहित्य सम्मेलन में भीड़ कम क्यों होती जा रही है?

सविता सिंह नेपाली-साहित्यकार को बुलाने में खर्च लगता है, ये लोग 1000 से ज्यादा खर्च नहीं करते, बांकी आपस में बांट लेते हैं।

रिपोर्टर-  आप साहित्य सम्मेलन क्यों नहीं जाती हैं? 

सविता सिंह नेपाली- वहां तथाकथित साहित्यकार बैठते हैं जो हमेशा कुर्सी के लिए लड़ते रहते हैं, मैं वैसी साहित्यकार नहीं हूं।

 

बनेपुरीजी की जयंती पर कुर्सी के लिए दोनों उपाध्यक्षों का लडऩा दुर्भाग्यपूर्ण बात है। इससे साहित्य सम्मेलन ही नहीं बल्कि साहित्य जगत की बदनामी हुई है।

- सविता सिंह नेपाली, पूर्व अध्यक्ष सह संरक्षक मंडल सदस्य