- एक्सपर्ट ने कहा, प्रदूषण से ऑक्सीजन की कमी से होता है बुरा असर

- प्रदूषण केवल पर्यावरण की नहीं, व्यवहारिक समस्या भी

PATNA : देश के प्रदूषित शहरों में पटना लगातार टॉप पर रह रहा है। आमतौर पॉल्यूशन को केवल पर्यावरण की समस्या बताया जाता है। लेकिन एक स्टडी से यह बात सामने आयी है कि यह पॉल्यूशन की समस्या से मनुष्यों के सोचने की क्षमता प्रभावित हो रही है। हाल के दिनों में जिस प्रकार से पॉल्यूशन बढ़ता जा रहा है उसे देखते हुए यह अलर्ट करने वाला ट्रेंड है। पटना का एयर क्वालिटी इंडेक्स हर दिन औसतन 400 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रिकार्ड किया जा रहा है, जो बेहद घातक स्तर है। बढ़ते शहरीकरण, कचरे की समस्या और मॉर्डन लाइफ स्टाइल ने इस समस्या को जटिल बना दिया है। एक्सपर्ट से जब इस बारे में बातचीत की तो उन्होंने इसे पर्यावरण की चिंता से कहीं बड़ी चिंता बताया।

क्यों होता है माइंड पर असर

पॉल्यूशन से हमारे मस्तिष्क की सोचने की क्षमता और उसमें अपेक्षित निर्णय लेने पर असर पड़ता है। साइकोलॉजिस्ट डॉ। विनय कुमार ने बताया कि शरीर के साथ मन भी पॉल्यूशन के असर को महसूस करता है। पॉल्यूशन के कारण हवा में मौजूद ऑक्सीजन में कमी आ जाती है। इसके कारण मस्तिष्क को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है। इससे न केवल चिड़चिड़ापन महसूस होता है बल्कि सोचने और निर्णय लेने पर भी असर पड़ता है। वहीं, यह हार्ट पर भी असर करता है। क्योंकि जब फेफडे़ में पर्याप्त आक्सीजन नहीं जाता है तो सांस लेने में भी तकलीफ महसूस होती है।

बिहेवियर की समस्या

पॉल्यूशन को तकनीकी समस्या बताकर इसके समाधान को भी उसी दायरे तक सीमित कर दिया जाता है। लेकिन यह एक पक्षीय है। इस बात पर जोर देते हुए डॉ विनय कुमार ने बताया कि है पॉल्यूशन का मतलब सिर्फ गाडि़यों से निकलने वाला धुआं से ही नहीं, लोगों की गलत एक्टिविटी से भी होता है। मसलन, बेवजह हार्न बजाना, सड़क या पब्लिक प्लेस पर कूड़ा फेंकना और सार्वजनिक स्थानों पर जाम के कारण वाहनों का धुआं निकलते रहना। इस प्रकार, कही न कहीं, बेवजह धुएं से अनेक लोगों का प्रभावित होना भी समस्या है।

पटना का मामला खास

जहां देश के कई शहर पॉल्यूशन से प्रभावित है। वहीं, पटना शहर की बात इससे थोड़ी अलग है। प्रदूषण के क्षेत्र में काम कर रही संस्था सीड्स की सीनियर प्रोग्राम मैनेजर अंकिता ज्योति ने बताया कि गंगा के किनारे बसे शहरों में पटना की स्थिति थोड़ी भिन्न है। क्योंकि यहां इंडस्ट्रियल पाल्यूशन बेहद कम है और मानव जनित प्रदूषण की समस्या बेतरतीब है। कानपुर में उद्योग का असर ज्यादा है और प्रदूषण भी। लेकिन यहां के मामले में सड़क से लेकर घर तक, हर जगह मानवीय कारण अधिक हैं। इसका अर्थ है इसे नियंत्रण करने से स्थिति बेहतर हो सकती है।

हवा सिर्फ फेफडे़ को ही नहीं मन के मैल को भी साफ करती है। प्रदूषण के असर के कारण मस्तिष्क की कार्यक्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है। प्रसन्नता, अवसाद और कार्यक्षमता सभी इससे जुडे़ हैं।

- डॉ विनय कुमार, साइकोलाजिस्ट