पटना ब्‍यूूरो। पटना के ही सोल्वर गैंग के एक सदस्य जो अब तक 20 से 25 ऐसे कॉम्पिटिटिव एग्जाम में एपीयर हो चुका है ने दैनिक जागरण आईनेक्स से बातचीत में कई खुलासे किये। सोल्वर ने बताया कि वह 2000 में मैट्रीक पास कर पटना आया था। पढ़ाई के लिए वह अक्सर सेंट्रल लाइब्रेरी जाया करता था। जहां सेटरों के ऐसे ग्रुप से उसकी पहचान हुई और वर्ष 2002 में पहली बार ग्रुप डी एग्जाम में एससी-एसटी कैंडिडेट के बदले परीक्षा दी थी। जिसके एवज में उसे 50 हजार का भुगतान किया गया था। इसके बाद यह सिलसिला बढ़ता ही गया और दर्जनों के बदले परीक्षा दी। पढिय़े पूरी रिपोर्ट

एससी-एसटी पर विशेष फोकस


सोल्वर के अनुसार उनके निशाने पर ज्यादातर एससी-एसटी कैंडिडेट होते हैं। इसके पीछे वजह यह है कि उनका कटऑफ कम जाता है। ऐसी स्थिति में सोल्वर और स्कॉलर के लिए यह बेहद ही मुफिद होते हैं। मेन सेटर खुद ऐसे एससी-एसटी कैंडिडेट की तलाश में होते हैं। जो पैसा देने में कैपेबल हो।

सोल्वर और स्कॉलर में अंतर


उसने बताया कि सोल्वर और स्कॉलर में कुछ बेसिक अंतर है। सोल्वर वह होते हैं जो एग्जाम सेंटर से लिक प्रश्न पत्रों का अंसर हल करते हैं। जिसे फिर छात्रों तक अलग-अगल तरीके से पहुंचाया जाता है। जिसमें ऑफलाइन से लेकर ऑनलाइन मोड तक में इसे पहुंचाने की व्यवस्था होती है। वहीं स्कॉलर की बात करें तो यह सीधे तौरपर परीक्षार्थीयों के बदले में बैठकर एग्जाम देते हैं। सोल्वर के अपेक्षाकृत स्कॉलर के तौपर परीक्षा देने वाले मुन्ना भाइयों के लिए ज्यादा रिश्क होता है।

कैसे पहुंचता है प्रश्न


सोल्वर के अनुसार परीक्षा में धांधली के बारे में जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि प्रश्न पत्र सोल्वर के पास पहुंचता कैसे है। इसके लिए मुख्य सेटर सेंटर सुप्रिटेंडेंट को मैनेज करते हैं। हर एग्जाम सेंटर पर प्रश्न पत्र एक घंटा पहले पहुंच जाता है। प्रश्न पत्र की कोडिंग होती है। जो ए, बी, सी, डी ग्रुप में विभाजित होती है। प्रश्न पत्र की फोटो खींचकर एक घंटे पहले मेन सेटर के पास इसे पहुंचाना होता है। इसके बाद इसे सोल्वर को दिया जाता है। एक प्रोफेशनल सोल्वर इसे 15 से 20 मिनट में हल कर देता है। फिर इसे छात्रों तक पहुंचा दिया जाता है। प्रश्न पत्र सेट को फिर से नकली सिल के साथ इसे छात्रों तक पहुंचाया जाता है और उनके सामने खोली जाती है। जिसके पहले छात्रों का कन्सेंट लेना होता है। ताकि किसी प्रकार की गड़बड़ी का खुलासा न हो सके।

चार चैनल के थ्रू छात्रों से संपर्क


सोल्वर के अनुसार छात्रों और एक सोल्वर के बीच में चार चैनल काम करता है। सोल्वर के खुद का छात्रों से कोई कांटेक्ट तक नहीं होता है। बीच में चार चैनल काम कर रहा होता है। पकड़े जाने की स्थिति में एक सोल्वर छात्र के बारे में बहुत ज्यादा कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं होता है। वहीं अगर छात्र पकड़ा जाता है तब वह भी सोल्वर के बारे में कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं होता है।

ऑफलाइन के लिए अगल तैयारी


ऑफलाइन के लिए अलग लेवल पर तैयारी की जाती है। जिसमें छात्रों को हल प्रश्न पत्र का अंसर छोटी-छोटी चीट के माध्यम से दी जाती है। या फिर एग्जाम के पहले अगर कुछ समय और मिल जाता है तब छात्रों को सेट के अनुसार अंसर कि उपलब्ध कराई जाती है।

स्कॉलर के लिए फोटो मिक्सिंग तकनीक का सहारा


कैंडीडेट के बदले जो दूसरे स्कॉलर या मुन्ना भाई बैठ कर एग्जाम देते हैं, उसके लिए हर लेवल पर तैयारी की जाती है। जिसकी शुरुआत परीक्षा फार्म भरने के समय से ही हो जाता है। छात्र और स्कॉलर के अलग-अगल तस्वीरों को मिक्स कर उसे तैयार किया जाता है। एक्स सोल्वर के अनुसार इसमें तीस प्रतिशत चेहरा स्कॉलर या मुन्ना भाई का होता है वहीं 75 प्रतिशत आकृति छात्र की होती है।

कुल डील का फिफ्टी प्रतिशत तक मिलता है सोल्वर को


सॉल्वर के अनुसार कुल डील का पचास प्रतिशत तक सोल्वर और स्कॉलर बैठने वाले को मिलता है। यहां तक सभी प्रकार का रिश्क भी सोल्वर नेटवर्क की ओर…