उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु-महेश है' का नारा देकर दलितों और ब्राह्मणों की नई सोशल इंजीनियरिंग तैयार की और इसके सहारे सत्ता पर काबिज हुई. इस बार भी उसकी यही कोशिश है लेकिन नारा बदलकर 'ब्राह्मण भाईचारा' हो गया है.

अपने इस समीकरण को बनाए रखने के लिए बसपा ने फिर से अपने महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को आगे किया है. ब्राह्मणों को खोने की चिंता के मद्देनजर वह जगह-जगह ब्राह्मण भाईचारा सम्मेलन कर रही है और 'ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा' का नारा दे रही है.

ब्राह्मणों के बसपा से हुए कथित मोहभंग को देखते हुए भाजपा एक बार फिर से अपने इस पुराने वोट बैंक को पाने की कोशिशों में जुट गई है. पार्टी ने इसके लिए चाणक्य का सहारा लिया है और 'ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी जंगल जाएगा' का नारा बुलंद किया है.

भाजपा 'चाणक्य जनस्वाभिमान मंच' के बैनर तले प्रदेश भर में ब्राह्मणों का सम्मेलन कर रही है. अब तक ऐसे 29 सम्मेलनों का आयोजन किया जा चुका है. वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी, अनंत कुमार, संजय जोशी, करूणा शुक्ला और विनोद पांडेय जैसे ब्राह्मण नेता इस प्रकार के आयोजनों में शिरकत कर चुके हैं.

मंच के संयोजक के. के. शुक्ला कहते हैं, "बसपा ब्राह्मणों का स्वाभिमान बढ़ाने का दावा करती है लेकिन सच्चाई यह है कि उसने ब्राह्मणों का स्वाभिमान गिराया है. बसपा अध्यक्ष मायावती ने नोएडा से लखनऊ तक दलित महापुरुषों की मूर्तियां लगवाईं और पार्क बनवाए लेकिन उन्होंने एक भी ब्राह्मण महापुरुष के लिए ऐसा कुछ नहीं किया."

उन्होंने कहा, "बसपा आज ब्राह्मण भाईचारे की बात कर रही है लेकिन यह कैसा भाईचारा है कि चाणक्य, परशुराम, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे ब्राह्मण महापुरुष उसके लिए कोई मायने नहीं रखते."

पिछले चुनाव में ब्राह्मण बसपा के साथ भले हो लिए थे लेकिन इस दफे प्रदेश का ब्राह्मण मतदाता खामोश है. ब्राह्मणों का आर्शीवाद पाने के लिए भाजपा जहां जमीन पर जुट गई है वहीं कांग्रेस भी रीता बहुगुणा जोशी, प्रमोद तिवारी और मोहन प्रकाश जैसे ब्राह्मण नेताओं को सामने कर उसकी ओर टकटकी लगाए देख रही है.

उत्तर प्रदेश के मौजूदा विधानसभा चुनाव में हर दल अपनी जीत मुकम्मल करने के लिए जातीय समीकरण गढ़ कर उतरा है. समाजवादी पार्टी (सपा) ने मुसलमानों और यादवों (एमवाई) का अपना पुराना समीकरण गढ़ा है तो बसपा ने फिर से ब्राह्मणों (8 फीसदी) को जोड़कर पिछले समीकरण को आगे बढ़ाया है. भाजपा अगड़े और अन्य पिछड़ा वर्ग को साथ जोड़कर चुनावी वैतरणी पार करने में लगी है.

उत्तर प्रदेश की जातिगत राजनीति की इस प्रयोगशाला में ब्राह्मण किसे अपना आशीर्वाद देगा यह स्पष्ट नहीं दिख रहा है, लेकिन इतना तो दिख रहा है कि जिसके साथ उसका आशीर्वाद जाएगा ऊंट उसी करवट बैठेगा.

एक अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 16 फीसदी वोट अगड़ी जातियों के हैं. इसमें आठ फीसदी ब्राह्मण, पांच फीसदी राजपूत और तीन फीसदी अन्य हैं. 35 फीसदी पिछड़ी जातियों में 13 प्रतिशत यादव, 12 प्रतिशत कुर्मी और 10 प्रतिशत अन्य हैं.

इसके अलावा 25 फीसदी दलित, 18 फीसदी मुसलमान, 5 फीसदी जाट मतदाता हैं. मायावती ने पिछले चुनाव में 25 फीसदी दलित और आठ फीसदी ब्राह्मणों को जोड़कर सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला तैयार किया था और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी.

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